पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१४६

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समराख्य ४६६४ ममत गीता ६ उन्मार । ७ गामच्य। शशित। 7TTI ८ पिचार समराख्य- सज्ञा पुं० [सं०] मगीत मे एक प्रकार का ताल 'मो०] । ममातिापन करना। Er is)! To 91177 समरागम - सशा पु० [सं०] युद्ध प्रारम होना । ०] । (को०)। 11 T TIR (2) १०मिमी हात या समराना-क्रि० स० [हिं० गारना] | मजाना । गंगाग्ना । प्राग IIT HAI (.)। पहनाना। समरा जिर-मशा ० [२०] गमरागरण । पुन भूमि ०] । गमर्थना--नमा ० (01 Afrror सनी मिस प्रयन TITI 711477 me 17 5771 समरु पु--पला पु० [म० स्मर। कामदेव । उ--माराकृति गोपान २ द० नम:' । ३ घनुराध । पामना । कै मोहत कुटल कान । धरयो मनो हिपधर मगर यौटी लगत निसान । --बिहारी र०, दो १०३ । समर्थनीय--१० (०11 गम नी गा7 TIRIT frn जामक। 112777191 समरोपित --वि० [म०] युर मे पयुत कने नायक । गुद्रोपयुक्त को०] । समरोद्देश--पडा पुं० [मं०] न डाई का मैदान । युद्ध क्षेत्र । मयित--001019 जिIT I47 लिागतान समरोद्यत-व० [40] युद्ध के लिये उग्रत या प्रस्तुत (को०] । रिया ग्रा। निति गरी जिनपर समर्घ-वि० [म०] कम दाम का । मन्ना । महर्ष या महंगा का उलटा । अच्छी तर तिलाही नुरानी मिशिरा हा समर्चक-वि० [40] उपामना करने पाना । अर्चना करनेपाना । अगा। हो। •ि किया “प्रा। प्रमाणित (२०), महो पूजक को। मरना तोजोममा माति। समर्चन- ५० [म०] [ग्गै० ममनना] प्रच्छो नगर प्रपन या ममर्य--१०जिममा नि गरे । मानाने पूजन सरना। समर्चना -मझा [स० दे० 'ममन' । गमईक, समय--पया ई० [40] ' ना देने का प्रादि । सम-वि० [मं०] १ कप्टाम्न । पीडित । २ प्रापित। याग्नि (पो०] । 777-17T17111111 समर्थ - वि० [म०१ १ जिममे गोई काम करने का समय हो । मोई पमपंक -11० [10] नोगा। काम करने की योग्यता या ताकत बनवाना। उपयुक्त। ममर्पण-- F० [सं०] १ गिनी रो ले चीन र भेट योग्य । जैने,-याप सर कुछ करने मे ममत्र हैं। २ नया करना । मिष्टाम देना । जीपा पुमानी जा चौडा । प्रगन्न । ३ जो अभिनपित हो। अभीष्ट । या मना गमपगा। मान देना ।- ४ युक्ति के अनुकुन । ठीक । ५ लगान् । गक्त (को०)। ६ योग्य या प्रान्मगमपा रिना1 १ म्यातिमा। ग्यापना। ४ उपयुक्त बताया हुआ । ७ममान प्रपंचाना। नाटक पात्रानागपासना (PO) समानार्थी (को०)। ८ तारक (को०)। ६ अन्वा न गाली समपना कि०म० (म० गमपा देना। ममपाता। भेट (को०)। १० पाम पाम विद्यमान (को०)। ११ अर्थन या पर्थ करना। पिताना। द्वागन (ो समर्पयिता-[20 मारा प्रदान करने वाग। ममर्थ--मणा पुं० १ हित । भनाई। २ व्यापण मे गागर शन्द ममपा. पो.)। : मायक वारय म मिनाकर ये हुए गोली ममकित (को०)। ४ योग्यता 'गो.) । ५ बोधगम्यता (को०)। समर्पित - वि० [40] १ जा मगपग लिया गया हो। मारा किया समर्थक'-वि० [मं०] जो समर्थन करता हो। ममर्थन करनेवाला। हमा । २ ग्मिती स्थापना गपिन । ३ पूरी २ मक्षम । योग्य (को०)। यामाहुया IY FIf (20) समर्थंक--मघा ० नदन की लकड़ी। ममय-वि० [म. जो नमपंग nि ना गरे । जो समर्पण कने के योग्य हो। ममर्थता--मघा म्ली० [म०] १ ममर्थन होने का भार या धर्म । सामव्य । गस्ति । ताात । अग्रादि की समानता। समर्याद' --मि० [सं०1१ निर । पार ।। २ जिनान्न समर्थत्व--सज्ञा पुं॰ [म०] दे० 'समर्थता' को०) । गनन । मनग्निाला । ३ जो गोमा गांटा समर्थन--सरा पुं० [म०] १ यह निश्चय करना कि अमुक वात मे हो । ४ नमानपुरण । गिर गो०। उनित है या अनुचित । वाजिन और गैरवाजिब का मला समर्याद'-ससा पु० मोनिन । पगिन । २ जादा । मामी l करना। २ यह कहना कि अमुक वात ठीव है। किमी विषय समर्याद'-प्रव्य निशिाप से [को०)। मे सहमत होना। किसी के मत का पोपण क ना । जैसे,—-मैं समहंग-मज्ञा पुं० [सं०] १ अादर । ममान । २ भेट । उपहार ! आपके इस कथन का ममथन करता हूँ। ३ विवेचन । समलकृत-वि० [सं० गमतडकत] भन्नोभाति अल कृन । अच्छी तरह ४. निषेध । वर्जन । मनाही। ५ सभावना। सज्जित । गुमज्जित फो०] । - मीमासा।