पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१६४

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नदीश । समुद्वोधन ४९८२ समुद्रगामी रित । हटाया हुआ । ५ विभक्त । ६ ग्रसित । ग्रस्त । ७ दुष्ट । भिन्न भिन्न अक्षाशो मे समुद्र के ऊपरी जल का तापमान भी भिन्न उद्दड [को०) । होता है। कही तो वह ठढा रहता है, कही कुछ गरम और समुद्बोधन-सज्ञा पु० [स०] १ भली भाँति जगाना । होश मे लाना । कही बहुत गरम। ध्रुवो के आसपास उसका जल बहुत २ उत्साह देना । पुन जीवित करना [को०] । ठढा और प्राय बरफ के रूप मे जमा हुअा रहता है। परतु प्राय सभी स्थानो मे गहराई की ओर जाने पर अधिकाधिक समुद्भव-सझा पुं० [सं०] १ उत्पत्ति । जन्म। २ होम के लिये ठढा पानी मिलता है। गुण आदि की दृष्टि से समुद्र के सभी जलाई हुई अग्नि । ३ पुनरुद्धार । पुनरुज्जीवन (को॰) । स्थानो का जल विलकुल एक सा और समान रूप से खारा समुद्भूत-वि० [स०] जात । उत्पन्न [को०] । होता है। समुद्र के जल मे सब मिलाकर उन्तीस तरह के भिन्न समुद्भूति - सहा वी० [स०] उत्पन्न होने की किया। उत्पत्ति । जन्म। भिन्न तत्व हैं, जिनमे क्षार या नमक प्रधान है। समुद्र के जल समुद्भद सञ्ज्ञा पु० [स०] १ उत्पत्ति । २ विकास। ३ फाडकर से बहुत अधिक नमक निकाला जा सकता है, परतु कार्यत निकलना (को०) । ४ व्यक्त होना (को०)। अपेक्षाकृत बहुत ही कम निकाला जाता है। चद्रमा के घटने वढने का समुद्र के जल पर विशेष प्रभाव पड़ता है और उसी समुद्यत-वि० [स०] १ जो भली भांति उद्यत हो। अच्छी तरह से के कारण ज्वार भाटा पाता है। हमारे यहाँ पुराणो मे समुद्र तैयार। २ ऊपर को उठा या उठाया हुआ (को०)। ३ जो की उत्पत्ति के सवध मे अनेक प्रकार की कथाएँ दी गई हैं दिया गया हो । प्रदत्त (को०)। ४ किसी कार्य में लगा हुआ। और कहा गया है कि सब प्रकार के रत्न समुद्र से ही निकलते प्रवृत्त (को०)। है, इसी लिये उसे 'रत्नाकर' कहते हैं। समुद्यम-मला पु० [स०] १ उद्यम । चेष्टा। २ प्रारभ । शुरु । पर्या-समुद्र । अन्धि । अपार । पारावार । सरिस्पति । ३ ऊपर करना । उठाना । (को०) । ४ अाक्रमण । ५ उदन्वान् । उदधि। सिंधु । सरस्वान् । सागर । अर्णव । तयारी (को०)। रत्नाकर । जलनिधि । नदीकात । मकरालय। समुद्योग-सज्ञा पु० [स०] १ सक्रिय चेष्टा । पूरी तैयारी। २ प्रयोग। नारधि । नीरनिधि । अबुधि । पाथोधि । निधि । इदुजनक । व्यवहार । ३ ( कई कारणो का ) समवेत होना। तिमिकोष । क्षीराधि। मितद्रु। वाहिनीपति । जलधि । गगावर । तोयनिधि । दारद । तिमि । महाशय । वारिराशि । समुद्र-मज्ञा पुं० [स०] १ वह जलराशि जो पृथ्वी को चारो ओर से घेरे हुए है और जो इस पृथ्वीतल के प्राय तीन चतुर्थाश शैलशिविर । महीप्राचीर । कपति । पयोधि । नित्य । ग्रादि आदि। मे व्याप्त है । सागर । अबुधि । २ किसी विषय या गुण प्रादि का बहुत बडा आगार । ३ बहुत विशेप-यद्यपि समस्त समार एक ही समुद्र से घिरा हुआ है, बडी संख्या का वाचक शब्द (को० । ४ शिव का एक नाम तथापि सुभीते के लिये उसके पाँच बडे भाग कर लिए गए है, (को०) । ५ चार की सख्या (को०)। ६ नक्षत्रो और ग्रहो की और इनमे से प्रत्येक भाग सागर या महासागर कहलाता है । एक विशेष प्रकार स्थिति (को०)। ७ एक प्राचीन जाति का पहला भाग जो अमेरिका से यूरोप और अफ्रिका के मध्य तक नाम। विस्तृत है, एटलाटिक समुद्र ( सागर या महासागर भी) कहलाता है। दूसरा भाग जो अमेरिका और एशिया के मध्य समुद्रकटक-मसा पु० [स०] जलपोत । जहाज (को०] । मे है, पैसिफिक या प्रशात समुद्र कहलाता है। तीसरा भाग समुद्रकफ-सचा पुं० [सं०] समुद्रफेन । जो अफ्रिका से भारत और प्रास्ट्रेलिया तक है, इडियन या समुद्रकाची-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० समुद्रकाञ्ची] पृथ्वी, जिसकी मेखला भारतीय समुद्र हिंद महासागर कहलाता है। चौथा समुद्र जो एशिया, यूरोप और अमेरिका, उत्तर तथा उत्तरी ध्रुव के समुद्रकाता--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० समुद्रकान्ता] १ नदी, जिसका पति समुद्र चारो ओर है, आर्कटिक या उत्तरी समुद्र कहलाता है और माना जाता है और जो समुद्र मे जाकर मिलती है । २ अस- पाँचवा भाग जो दक्षिणी ध्रुव के चारो ओर है, एटार्कटिक वरग । पृक्का (को०)। या दक्षिणी समुद्र कहलाता है। परतु आजकल लोग प्राय समुद्रकुक्षि--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] समुद्र का किनारा [को०] । उत्तरी और दक्षिणी ये दो ही समुद्र मानते है, क्योकि शेप समुद्रग-वि० [स०] १ समुद्र की ओर जानेवाला। २ समुद्री कार्य तीनो दक्षिणी समुद्र से बिलकुल मिले हुए हैं, दक्षिण की करनेवाला (को०] । ओर उनकी कोई सीमा नही है। समुद्र के जो छोटे छोटे टुकडे स्थल मे अदर की ओर चले जाते है, वे खाडी कहलाते समुद्रग-सञ्ज्ञा पुं० १ मॉझी । २ समुद्री व्यापारी [को॰] । हैं। जैसे,-बगाल की खाडी। समुद्र की कम से कम गहराई समुद्रगमन-सज्ञा पु० [स०] समुद्र का किनारा [को०] । प्राय वारह हजार फुट और अधिक से अधिक गहराई प्राय समुद्रगा--सना स्त्री॰ [स०] १ नदी जो समुद्र की ओर गमन करती तीस हजार फुट तक है। समुद्र मे जो लहरे उठा करती है, है। २ गगा का एक नाम । उनका स्थल की ऋतृप्रो आदि पर बहुत कुछ प्रभाव पड़ता है। समुद्रगामो-वि० [स० समुद्रगामिन् ] दे० 'समुद्र' । समुद्र है।