पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१७३

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सर ४६६१ सरगना ८ जल । सलिल (को०)। ६ वायु (को०)। १० छद मे लघु माना (को०)। सर-वि०१ गतिशील । गमनशील । २ रेचन करनेवाला । रेचक । सर@1- सना पु० [स० शर] दे० 'शर'। उ०-कागज गरे मेघ मसि खूटी सर दो लागि जरे । सेवक सूर लिखें ते आधौ पलक कपाट अरे ।—सूर (शब्द॰) । सर:--सज्ञा पुं० [फा०] १ सिर । २ सिरा । चोटी । उच्च स्थान । यो०-सरग्रजाम । सरपरस्त । सरपच । सरदार | सरहद । मुहा०-सर करना = बदूक छोडना । फायर करना । ३ प्रेम । स्नेह । प्रीति (को०)। ४ इरादा। इच्छा। विचार (को०)। ५ श्रेष्ठ । उत्तम (को०)। सर'--वि० दमन किया हुआ। जीता हुा । पराजित । अभिभूत । मुहा०-सर करना = (१) जीतना। वश मे लाना। दवाना। (२) खेल मे हराना। सर-सज्ञा पुं० [अ०] एक बडी उपाधि जो अँगरेजी सरकार 1 देती है। सरल-सज्ञा स्त्री० [म० शर] चिता। उ-पाएउ नहिं होइ जोगी जती । अब सर चढी जरी जस सती।--जायसी (शब्द०)। सर अजाम-सचा पुं० [फा०] १ सामान । सामग्री । असवाव । २ प्रबध । बदोबस्त (को०)। ३ प्रत । पूर्ति । समाप्ति । ४ परिणाम । फल । नतीजा (को०)। सरई-सञ्ज्ञा स्त्री० [हि० सरहरी] ने० 'सरहरो' । सरकडा-सला पु० [म० शरकाण्ड सरपत की जाति का एक पौधा जिसमे गांठवाली छडे होती है। सरक-सज्ञा पुं॰ [स०] १ सरकने की क्रिया। खिसकना । चलना । २ मद्यपान । शराब का प्याला। ३ गुड की बनी शराम । ४ मद्यपान । शराब पीना। ५ यात्रियों का दल । कारवाँ । ६ शराब का खुमार। उ०-वय अनुहरत विभूपन विचित्र अग जोहे जिय अति सनेह की सरक सो।-जुलमी (शब्द०)। ७ तालाव। सरोवर। तीर्थ (को०)। आकाश । स्वर्ग (को०)। ६ राजपथ की अटूट पक्ति । १० मोती । मुक्ता (को०)। सरकना-क्रि० प्र० [म० सरक, सरण] १ जमीन से लगे हुए किसी अोर धोर से वढना। किसो तरफ हटना । खिमकना । जैसे,-थोडा पीछे सरको। २ नियत काल से और आगे जाना। टलना । जैसे,—विवाह सरकना। ३ काम चलना। निर्वाह होना । जैसे,--काम सरकना । सयो० क्रि-जाना। सरकफूंदा--ससा पं० [हि० सरकना+फदा सरकनेवाला फदा । दे० 'सरकांसी'। सरक-वि० [फा० सरफर्दह्] अगुना। मुखिया । नेता (को०] । सरकवॉसी --मशा स्त्री० [हिं० सरकना+ स० पाश, पाशक] एक प्रकार का सरकनेवाला फदा जो किमी चीज मे डालकर खीचने से सरक कर उसे जकड़ लेता है। सरकश-वि० [फा०] १ उद्धत । उद्दड । अक्खड । २ शामन न माननेवाला। विरोध मे मिर उठनेवाला। ३ शरारती। सरकशी-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ उद्दडता । श्रीद्वत्य । २ नटखटी। शरारत । सरका'-सज्ञा पुं० [अ० सरका] चोरी [को०] । सरका २-सञ्ज्ञा पु० [स० सरक ( = गगन)] प्राकारा । मुहा०-सरका क्टना = (१) गगन मडल मे विहार करना। समाविस्य होना। लौ लगाना । (२) हा करना (बाजारू) । सरकार-मक्षा सी० [फा०] [वि० सरकारी) १ प्रधा।। अविति । मालिक । शासक । प्रमु। २ राज्य । राज्म सम्या । शासन- सत्ता। गवनमेट। ३ राज्य । रिमाना। जैन,-नि तान सरकार । ४ न्यायालय । न्यायसेठ (का)। ५ गजदरवार । राजसभा (को०)। ६ बडे व्यक्तिया के लिए सबोवन का शब्द (को०)। सरकारी-वि० [फा०] १ सरकार का। मानि का। २ राम का । राजकीय । जैन,-सरकागे इत जान, सरकार कागज । यौ०-सरकारो अहलकार = राज्य का कनवारा। सरकार का मुलाजिम । सरकारी कागज %D(१) गम कदपार का कागज । (२) प्रामिसरी नोट । जैसे,-उतरु पाम डड लाख रुपया के सरकारी कागज है। सरकारो सांड %3D (१) लपट । दून । मक्कार। (लाक्ष०) । (२) गाव बलो को नस्ल सुधारन क लिये रखा हुआ अच्छो जाति का सांड । सरखत-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा० सरखत] १ वह कागज या दस्तावेज जिस- पर मकान यादि किराए पर दिए जाने को शत हातो है। २ तनखाह आदि क हिसाव का कागज (का)। ३ दिए और चुकाए हुए ऋण का व्यारा। उ.-यापसु मा लाकनि मिधार लाकपाल सबै तुलसो निहाल कै के दिया सरख (प)तु ह । -तुलसी ग्र०, पृ० १९८ । सरग पु-संज्ञा पुं० [स० स्वग] १. दे० 'स्वग' । उ०-(क) मूल पताल सरग योहिं साखा । अमर वलि को पाय का चाया। -जायसो (शब्द०)। (ब) धनि वामु धनु पुर परिवार । सरगु नरकु जह लगि व्यवहार ।-मानस, २०६२ । २ आकाश । व्याम । उ०-का घूघट मुख मू दह नवला सारि । चाद सरग पर सोहत एहि अनुहारि ।-तुलसा ग्र०, पृ० २० । यो०-सरगतरु - स्वगतरु । अाकाश वृक्ष। उ०-पात पात का सीचिबो न कर सरग तरु हेत ।-तुलसा २०, पृ० १८० । सरगना-क्रि० अ० दश०] टांग मारना। शवो वधारना । व च कर बातें करना। सरगना'-सहा पु० [फा० सरगनह] मुखिया। सरदार । अगुवा । जैसे,-चोरो का सरगना। 5