पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/१८२

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सरेखना ५००२ सरोपा सरेखना-क्रि० स० [हिं०] १ अच्छी तरह समझा देना । बिनकुल मांधा ऊपर को जाता है। इसकी टहनिया पतनी 'सहेजना। होती है और पत्तिया मे मगे हराने के कारण विद्या नहीं देती। पत्तियाँ टेटी यानी रे न केम्प म जन धनी सरेखा'-मज्ञा पुं० [स० एलेपा] दे० 'श्लेपा' (नक्षन्न) । और नु दर होती है। यह पर भाज को जानि का है, और सरेखा -वि० [स० श्रेष्ठ] दे० 'मरेख' । उ०-ततखन बोला उमी के से फल गी ममे लगने हैं। सुग्रा सरेखा। अगुवा सोड पथ जेहि देखा।-जायमा सरोई-मया पुं० [हि० गगे ?1 एक प्रकार का वा पेट । (शब्द०)। विशेप-यह वृक्ष त ऊँचा होता है। यही नवाई लिए सरेदस्त-कि० वि० [फा०] १ इस ममय । अभी। २ फिलहाल । मफेद होनी है पार चारपाच्या ग्रादि बनाने के काम मे पाती अभी के लिये। इस समय के निथे । उ०-हाँ, यो तो मेग है । इसको जल स रग मी निकाला जाता।। खयाल है, मरेदस्त पाप किसी सकट मे नही है ।-क म्हार, सरोकार-मचा पुं० [फा०] [वि० सरोकारी] १. पर प र व्यवहार का पृ० ६६ सरध। २ लगाव । पास्ता प्रयाजन | गाय। सरेनी-कि० वि० [फा०] -ए ढग से । पुन शुरू से । सरोकारी-वि० [फा०] सरोकार रानेवाला (को०] । सरेबाजार-नि० वि० [फा० सरे बाजार] बाजार में । जनता के सरोजपु-सधा पु० [१०] १ मा । २. गारम पी10).g३ सामने । २ खुलेयाम । सबके सामने । मुग। उ०-फूने सरोज यना के ऊपर वापर गुजन द्वै सरवाम-मशा पुं० [फा०] अटारी । कोठा (को०) । यिरकाइहाँ ।-भिवारी २०, मा० १, पृ० ३१। सरेरा, सरेला--सज्ञा पुं० [देश॰] १ पान में लगी हुई रस्मी जिमे यो०- सरोजपः = कमना । समूह । नयन । सरोजमुत्र । ढोना करने मे पाल की हवा निकल जाती है । २ मछली की मगेजराग पचराग । गेजन । वमी की डोरी । शिस्त। सरोजना - नि०म० [म. गायुज्यपाना । उ०- हम मालोक्य सरेश-वि०, सज्ञा पु० [फा०] दे० 'सरेस' । यस्प सराज्यो रहा नगीर महा। मा तनि राहत प्री को और तुम अलि बडे प्रदाः।--गूर (शब्द॰) । सरेशाम-सज्ञा पुं० फा०] सायकाल । सध्याकाल । मध्यामुख [को०] | सरेशीर - सहा पु० [फा०] मलाई । सरशीर । सरोजमुसी-वि० मी० [स०] कमन के समान मुबाली। नु दरी। उनी तन मनोज की ही नौज : गोजमुमो हाउभाइ सरेस'-सचा पु० [फा० सरेश] एक लसदार वस्तु जो ऊँट, गाय, मान रहे हैं सरगार के।-निवारी ०, ना० १,१०६६ । भैस, आदि से चमडे या मछली के पोटे को पकाकर निकालते हैं । सहरेस । सरेश। सरोजल-मया पुं० [म.] तानार का पानी [फो०] । सरोजिनी-सया स्त्री० [सं०] १ कमलो । भरा दृप्रा ताल । कमल- विशेप-यह कागज, कपडे, चमडे ग्रादि को आपस में जोडने या पूण सरनी। २ वमलो का गमूह। कमलयन। ३ कमल चिपकाने के काम आता है। जिल्दबदी में इसका व्यवहार का पौधा (को०) । ४ कमल या पून । बहुत होता है। सरोजी'-वि० [सं० सरोजिन् ] [स्रो० सरोजिनी] १ कमलबाला । २ सरेस'-वि० चिपकनेवाला । लसीला । जहां कमल हो। सरेसमाही-मज्ञा पुं० [फा० सरेश माही] सफेद या काले रंग का सरोजी- पुं० १ (कमल से उत्पा) ब्रह्मा । गोद के समान एक द्रव्य । एक नाम। विशेष-यह एक. प्रकार की मछली के पेट से निकलता है सरोतरा-वि० [अ० सर्वन, हिं० सरसतर] १ निरतर । लगातार । जिसको नाक लबी होती है और जिसे नदी का सुपर कहते हैं । अनवरत । उ०-रंग छनला जहां सरोतर चक । गुरुन क यह दुर्गधयुक्त और स्वाद मे कड बा होता है । बनारसी बैठक । - गुदा की० । २ साफ। सुस्पष्ट । सरौंट +-सज्ञा पुं० [स० शाट+वर्त, हिं० सिलवट] कपडो मे सरोता-सपा पुं० [हिं०] २० 'सरौता' । पडी हुई सिलवट । शिकन । वली। उ०-नट न सीस सरोत्सव-~Hशा पुं० [स०] १ वपुता । वक् पक्षी । २ सारस । सावित भई लुटी सुखन की मोट । चुप करिए चारी करति सरोद-सा पु० [फा०] १. वोन की तरह का एक प्रकार का बाजा। सारी परी सराँट । -विहारी (शब्द०)। विशेष-इसमे ताँत और नोहे के तार लगे रहते है और इसके सरो-सञ्ज्ञा पु० [फा० सर्व] एक सीधा पेड जो वगीचो मे शोभा के आगे का हिस्सा चमडा से मढा रहना है । लिये लगाया जाता है। बनझाऊ। २ नाचने गाने की क्रिया । गान और नृत्य । विशेष-इस पेट का स्थान काश्मीर, अफगानिस्तान और फारस सरोवा-सचा पुं० [स० स्वरोदय] श्वास के दाहिने या वाएँ नथने से आदि एशिया के पश्चिमी प्रदेश है। फारसी की शायरी मे निकलना देखकर भविष्य की बाते कहने की विद्या । इसका उल्लेख बहुत अधिक है। ये शायर नायिका के सीधे सरोपा-सधा पुं० [फा०] १ सिर और पैर। २. सिरोपाव। भीलडौल की उपमा प्रायः इसी से दिया करते हैं। यह पेड़ खिलमन (को०)।