पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२१७

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५०३७ सागम घपला। मह्व--सचा पु० [अ०] अनवधानता । प्रमाद । चार मुख्य विधान माने गए हैं--प्रकृति, विकृति, विकृति- सह्वम् -ग्रव्य० [अ०] प्रमाद के कारण। गलती मे । प्रकृति और अनुभव । इसमे आकाण आदि पांचो भूत और ग्यारह साकथिक -वि० [म० माथिक] बार्तापटु । वार्तालाप करने मे इद्रियाँ प्रकृति है । विकृति या विकार सोलह प्रकार के माने गए है । इसमे सृष्टि को प्रकृति का परिणाम कहा गया है, इसलिये कुशल [को०)। इसका मत परिणामवाद भी कहलाता है। विशेप दे० 'दर्शन' । साकथ्य--मज्ञा पु० [म० साइय] वातचीत । वार्तालाप [को०) । २ शिव । ३ वह जो माख्यमत का अनुयायी हो (को॰) । साकरिक-वि० [म० साइरिक] वर्णसकर (को०] । साख्य-वि० सख्या सवधी । २ अाकलनकर्ता। गणक । ३ विवेचक । साकर्य--सञ्ज्ञा पु० [म० साङ्कय] घालमेल । मिश्रण । ४ विचारक। ताकिक । मिलावट । साख्यकारिका-सझा स्त्री० [म० साडख्यकारिका] साख्यदर्शन की साकल-वि० [म० साङ्कल] [वि० सी० साङ्कली] योग या मिश्रण द्वारा पद्यवद्ध टीका जिसकी रचना ईश्वरकृष्ण ने ईसा की तीसरी उत्पन्न या निप्पादित किया हुआ किो०] । सदी मे की थी । उ.-माख्यदर्शन के प्रवर्तक कपिल ई० पू० साकल्पिक-वि० [स० साङ्कल्पिक] ६ सकल्पजन्य । सकल्प द्वारा कृत। ७-६वी सदी मे हुए होगे पर इसका पहला ग्रथ ईश्वरकृष्ण कृत २ कल्पनाजन्य । कल्पना से उत्पन्न किो०] । साख्यकारिका तीसरी ईस्वी सदी की रचना हे। -हिंदु० सभ्यता, साकाश्य - सज्ञा पु० [स० साझाश्य] जनक के भाई कुशध्वज की पृ० १६४। राजधानी का नाम [को०] । साख्यजोगg--सञ्ज्ञा पु० [म० साख्य + योग, हिं० जोग] दे० 'साख्य' । साकाथ्या-- सज्ञा स्त्री० [स० साङ्काश्या] ८० 'साकाश्य' । उ०--माख्य जोग यह धर्म है, कर्म बीज को जार।--केशव० साकूजित -सज्ञा पु० [स० साङ्क जित] पक्षियो का जोर से चहचहाना। अमी०, पृ०१। साकेतिक--वि० [म? साङ्केतिक] १ सकेत सबधी। प्रतीकात्मक । साख्यप्रसाद-सशा पु० [स० साडख्यप्रसाद] गिव [को०] । उ०--रहस्यवादियो की मार्वभौम प्रवृत्ति के अनुसार ये सिद्ध साख्यमुख्य-सज्ञा पु० [स० सडख्यमुख्य] शिव [को०) । लोग अपनी वानियो के साकेतिकता दूसरे अर्थ भी करते थे। साण्यवादी-मञ्ज्ञा पु० [म० साडख्यवादिन] साख्यदर्शन का अनुयायी। -इतिहास, पृ० १२ । २ परपरित। परपराप्राप्त । प्रचलित । उ-सास्यवादियो ने जिसको प्रकृति कहा है करीव करीव यौ०-साकेतिक हडताल = अपनी मांग के सर्मथन मे आगे की उसको वेदातियो ने माया कहा है।--हिंदी काव्य०, पृ०८। जानेवाली काररवाई की अग्रिम सूचना के प्रतीक या सकेत मे साख्यायन-सशा पु० [स० साडख्यायन] एक प्राचीन प्राचार्य । की जानेवाली हडताल । (अ० टोकेन स्ट्राइक) । विशेष-इन्होंने ऋग्वेद के साय्यायन ब्राह्मण की रचना की थी। माकेतिकता--सज्ञा स्त्री० [स० साङ्केतिक +ता (प्रत्य॰)] सूक्ष्मता । इनके कुछ श्रीत सूत्र भी है। साख्यायन कामसूत्र भी इन्ही का सकेत या प्रतीक रूप मे होने का भाव। उ०-यहाँ एकदम बनाया हुआ है। विक्षिप्तता और अत्यत साकेतिकता नहीं है।-इति०, पृ० ८६ । साग'--वि० [म० साडग] १ सब अगो महित । सपूर्ण। २ अवयव साकेत्य-सज्ञा पु० [स० साङ्केत्य] १ सहमति । राजीनामा। समझौता। या अगवाला । अगयुक्त (को०) । ३ छह, अगो या उपागो से २ प्रिय अथवा प्रिया के साथ मिलन के समय का निश्चय युक्त (को०)। किया जाना (को०] । यौ०--सागोपाग। साक्रमिक--वि० [सं० साडक्रमिक] सक्रमणशील । सक्रामक [को०] । साग-सज्ञा पु० [हिं० स्वाग] दे० 'स्वांग'। उ०--खिलवत हास साक्षेपक-वि० [स० साड् क्षेपिक] सक्षिप्त । सक्षेप या कम किया सुसामदी, सुरका दुरका साग । बाँकी ग्र०, भा० २, हुआ [को०]। पृ० ७७। साख्य'-मज्ञा पुं० [म० साडख्य] १ हिंदुनो के छह, दर्शनो मे से एक सागग्लानि-वि० [म० सादगग्लानि] थकित । क्लात [को॰] । दर्शन जिसके कर्ता महपि कपिल है। सागज-वि० [म० साड गज] रोमगजियुक्न । केशयुक्न । वालो से विशेष---इम दर्शन मे सृष्टि की उत्पत्ति का क्रम दिया गया है। ढका हुआ [को०]। इस मे प्रकृति को ही जगत् का मूल माना है और कहा गया है सागतिक' --वि० [स०] सगति, समाज या सघ मे मवढ [को०] । कि सत्व, रज और तम इन तीनो के योग से सृष्टि का और उसके मव पदार्थों आदि का विकास हुअा है। इममे ईश्वर की सागतिक'--मा पु० [न०] १ अतिथि । अभ्यागत । नवागतुक । २ मत्ता नहीं मानी गई है, और आत्मा को ही पुरुष कहा गया है। वह व्यक्ति जो व्यापार, (आदान प्रदान भुगतान प्रादि) के मिल- इसके अनुसार प्रात्मा अकर्ता, साक्षी और प्रकृति से भिन्न सिले में आया हो किो। है। आत्मा या पुरुष अनुभवात्मक कहा गया है, क्योकि इसमे सागत्य-मशा पु० [अ० साडगत्यमगति । ममागम । मगम को०] । प्रकृति मी नही है और विवृति भी नहीं है। इसमे सृष्टि के सागम--सज्ञा पु० [स० सादगम] मगम । मिलन । मपर्क (फो०] । हि १०-१०-२६