पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२२

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सकर ४८३८ संकला' प्रायश्चित्त के लिये कृन्छ या अतिकृच्छ व्रत करने का विधान है । तो है, पर भूतत्व नहीं है, और आकाश मे मूतत्व है, पर २ दो पदार्थों को एक मे मिलाने की किया। ३ वर्णसकरता मूर्त्तत्व नहीं है। परतु पृथ्वी मे भूतत्व भी है और मूर्त्तत्व भी है। ५ वह जिमकी उत्पत्ति भिन्न वर्ण या जाति के पिता करना । दो विभिन्न वर्ण या जातियो मे सबध करना। और माता से हुई हो। दोगला। ६ मल । विप्ठा (को०)। सकर्प-सहा पु० [न० म] अपनी ओर खीचना । नजदीक लाना । ७ काव्यशास्त्र के अनुसार एक वाक्य मे दो या अधिक अल- समीप लाना [को०)। कारो का मिश्रण (को०)। ८ ऐसी वस्तु जो किसी वस्तु से सकर्पण-मया पुं० [२० सङ्कपण] १ खीचने की निगा । २ हल मे छू जाने पर दूपित हो जाय (को०)। ६ भिन्न जाति या वर्ण जोतने की निया। ३. कृष्ण के भाई बलराम का एक नाम । का मिश्रण । दो भिन्न वर्गों का एक मे (विवाहादि द्वारा) ४ एकादण रुद्रो मे ने एक रद्र का नाम । ५ वैष्णवो का एक मिलना (को०)। सप्रदाय जिसके प्रवर्तक निबार्काचर्य थे। ६.घार्पण (को०)। यौ०-वर्णसकर दोगला। ७ छोटा कना (को०)। शेषनाग (को०) 16 गर्व घमड। स कर-मझा पुं० [स० शङ्कर, प्रा. सकर] दे॰ 'शकर'। शिव । अहकार । (को०)। उ०-करेहु सदा सकर पद पूजा। नारि घरम पतिदेव न सकर्पण विद्या--सशास्त्री० [स०] एक प्रकार की विद्या जिमने किमी दूजा |--मानस, १११०२। स्त्री के गर्भ को दूसरी स्त्री मे स्थापित किया जाता था। स कर--सम्मा स्त्री० [स० शृङ्खल, प्रा० मकल] दे० 'सकल"। उ०- (देवकी के सातवें गर्भ को इसी विद्या द्वारा रोहिणो मे स्थापित सकर सिंघ कि छुट्टि, छुट्टि इद्रह कि गरुष गज |--पृ० किया गया था। इसी से बलराम का एक नाम सकर्षण है)। रा०,१५६ । सकपी-वि० [म० सपिन्] १ खीच लेनेवाला। पास मे कर लेने. स करक-वि० [स० सङ्करक] मिश्रण करनेवाला । वाला । २ छोटा करनेवाला। मकुचित करने या मिकोड लेने- सकरकारक--वि० [म० सङ्करकारक] मिश्रण या घालमेल करनेवाला। वाला (को०] । स करकारी--वि० [स० सङ्करकारिन्] १ किसी अन्य वर्ण की स्त्री सकल-सशास्त्री० [म० शृखला, प्रा० माल] १ दरवाजे मे लगाने से अवैध सवध रखनेवाला। २ दे० 'सकरकारक' (को०] । की सिकडी या जजीर । २ पशुओ को बांधने का सिक्कड । स करघरनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० शङ्कर+गृहणी] शकर की पत्नी, ३ सोने या चांदी को जजीर जो गले मे पहनी जाती है। जजीर। ४ शृखला। बधन । उ०-मकल ही ते सब लहे सकरज-वि० [स० सङ्करज] जो दो विभिन्न वर्गों के सयोग से माया इहि समार। ते क्यू छूट वापुढे वांधे निरजनहार। उत्पन्न हो । मिश्र जाति से उत्पन्न ।को०] । -कबीर ग०, पृ०३४॥ संकरजात--वि० [सं० सङ्करजात] दे० 'सकरज' [को॰] । सकल-सला पुं० [म० सङ्घल] १ बहुत सी चीजो को एक स्थान पर स करजाति, स करजातीय--वि० [स० सङ्करजाति, नकरजातीय] एकत्र करना। सकलन । एकत्रीकरण। २ योग। मिलाना। दे० 'सकरज' को]। ३ गणित की एक क्रिया जिसे जोड कहते हैं। योग । दे० स करता-सबा स्त्री० [सं० सदरता] १ सकर होने का भाव या धर्म । 'सालन' | ४. राशि । ढेर (को०)। २ साकर्य । मिलावट । घालमेल । सकलन-सज्ञा पु० [स० सङ्कन] [म्मी० सकलना। [वि० सकलित] स करपन-सहा पुं० [स० सडकपण] १ शेपनाग । सकर्पण । १ एकत करने की क्रिया । सत्रह करना। २ मग्रह | ढेर । उ.--सकरपन फुकरै काल हुकर उतल्लै ।--हम्मीर०, ३ गणित की योग नाम की रिया। जोड । ४ अनेक प्रथो से पृ० १३ । २ बलराम । अच्छे अच्छे विपय चुनने की निया। ५ वह ग्रथ जिसमे ऐसे सकरा सञ्चा पु० [स० शड कर एक राग । दे० 'शकरा'। चुने हुए विषय हो। ६. सपर्क। सवध । ७ योग (को०)। सकराश्व-सज्ञा पुं० [स० सङ्कराश्व] खच्चर । ८ टकर। धक्का । मुठभेड (को०)। ६ योजन । मिलाना । सकरित - वि० [म० सङ्करित] जिसमे मिलावट हो। मिला हुआ। लपेटना (को०)। संकरिया-सज्ञा पु० [स० सङ्कर+हिं० इया (प्रत्य॰)] एक प्रकार सकलना-मचा क्षी० [म० मङ्कनना] दे० 'मकलन' [को०] । का हाथी जो कमरिया और मिरगी के बीच की श्रेणी वा होता सकलप-मझा पु० [म सङ्कल्प] दे० 'सकल्प' । २०-जाइ उपाय है। इसका मूत्व कमरिया से कम होता है। रचहु नृप एहू । सवत भरि सकलप कन्हू ।-मानम, १११६८ | सकरी-सचा पु० [स० सडकरिन्] १ वह जो भिग्न वर्ण या जाति के सकलपना-nि० स० [स० सङ्कल+ हिं० ना (प्रत्य॰) अथवा पिता और माता से उत्पन्न हो। सकर। दोगला। २ मिला सकल्पना] १ किसी बात का दृढ निश्चय करना। उ०-जैसो हुआ । मिश्रित । ३ अवैध सबध रखनेवाला (को॰) । पति तेरे लिये में सकलप्यो पाप । तैसो ते पायो सुता अपने सकरी-सहा मी० [म० शङ्करी] दे० 'शकरी' । पुन्न प्रताप-लक्ष्मण सिह (शब्द॰) । २. किसी धार्मिक कार्य सकरीकरण-सज्ञा पुं० [स० सङ्करीकरण] १. नी प्रकार के पापो मे के निमित्त कुछ दान देना | सकल्प करना । से एक प्रकार का पाप जो गधे, घोडे, ऊँट, मृग, हाथो, बकरी, सकलपना-क्रि० प्र०विचार करना । इच्छा करना । इरादा करना। भेड, मीन, सॉप या भैसे का वध करने से होता है। इसके सकला-सा पु० [सं० शाक्] शक द्वीप । पार्वती।