पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२२७

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साँवर साँस - विशेष---इसकी छाल पतली और भूरे रंग की होती है। यह विशेष--यह प्राय फागुन चैत मे बोया जाता हे और जेठ मे तैयार देहरादून, अवध, बुदेलखड और हिमालय मे ४००० फुट की होता है। कही कही इसकी बोआई पापाढ-सावन मे होती है ऊंचाई पर पाया जाता है। फागुन चैत मे पुरानी पत्तियो के और भादोतक यह काट लिया जाता है। यह वरसाती अन्न हे । झडने और नई पत्तियो के निकलने पर इसम फूल लगते हैं। इसके विपय मे यह कहावत पूर्वी जिलो मे प्रसिद्ध है कि 'साँवा इसमे से एक प्रकार का गोद निकलता है जो ओषधि के साठी साठ दिना । देव वरीस रात दिना।' यह अन्न बहुत ही रूप में काम आता ओर मछलियो के लिये विप होता है। सुपाच्य और बलवर्धक माना जाता है और प्राय चावल की इसके होर की लकडी मजबूत और कडी होती हे और मजावट भाँति उवालकर खाया जाता है। कही कही रोटी के लिये के सामान बनाने के काम मे पाती है। पशु इसकी पत्तियाँ इसका आटा भी तैयार किया जाता है। इसकी हरी पत्तियाँ वडे चाव से खाते है। और डठल पशुओ के लिये चारे की भाति काम मे पाते हे, साँवर-वि० [सं० श्यामल] [वि० सी० सांवरि या साँवरी] दे० और पजाब मे कही कही केवल चारे के लिये भी इसकी खेता 'मांवला'। उ०-काहे राम जिउ सांवर लछिमन गोर होती है। अनुमान है कि यह मिस्र या अरब से इस देश मे हो। कोदह रानि कौसिलहि परिगा भोर हो।--तुलसी आया है। ग्र०, पृ० ५। २ सलोना । सुदर। 30--सखि रोके सॉवर साँस-सज्ञा स्त्री० [म० श्वास] १ नाक या मुह के द्वारा बाहर से हवा लाल, घन घेरची मनो दामिनी ।-द० ग्र०, पृ० ३८५। खीचकर अदर फेफडो तक पहुँचाने और उसे फिर बाहर निकालने की क्रिया । श्वास । दम। साँवर-सशा पु० [म० सम्भल, साम्भल] ३० 'साँवर', 'साँभर'। उ०-जावत अहे सकल पोरगाना । साँवर लेहु दूरि हे जाना। विशेष-यद्यपि यह शब्द संस्कृत 'श्वास' (पुल्लिग) से निकला -जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० २०६ । है और इसलिये पुल्लिग ही होना चाहिए, परंतु लोग इसे स्त्रीलिंग ही वोलते हैं। परतु कुछ अवसरो पर कुछ विशिष्ट साँवरा-वि०, सशा पु० [हिं० सांवला] दे० 'सॉवला' । क्रियानो आदि क साथ यह कवल पुल्लिग भी बोला जाता है। साँवरो-वि०, सज्ञा पु० [हिं०] दे० 'साँवला'। उ०--मखन जैसे,—इतनी दूर से दौडे हुए पाए है, साँस फूलने लगा। सहित सजि सुघर सॉवरो, सुनतहि सनमुख पाए ।--नद० क्रि०प्र०--आना।--जाना। लेना। ग्र०, पृ०३८१। साँवलg:---वि०, सज्ञा पु० [म० श्यामल] दे० 'सविला'। उ०- मुहा०-सॉस अडना = दे० 'साँस रुकना' । साँस उखडना = (१) मरने के समय रोगी का देर देर पर और बडे कष्ट से अद्भत साँवल अग बन्यो अद्भुत पीतावर । मूरति धरि सिंगार प्रेम अबर अोढे हरि ।- नद० ग्र०, पृ० २८ । सॉस लेना। (२) साँस टूटना । दम टूटना । उ०--पवन पी रहा था शब्दो को निर्जनता की उखडी सॉस ।-कामायनी, पृ० १६ । साँवलताई:--संज्ञा स्त्री० [स० श्यामन, हिं० सांवल + ताई (प्रत्य॰)] (३) साँस या दमा के रोगी का जोर जोर की खाँसी आने सॉवला होने का भाव । श्यामता । श्यामलता। से श्लथ होना। सॉस उडना = प्राणात होना। जीवनलीला साँवला'--वि० [स० श्यामलक] [वि॰ स्त्री० सॉवली] जिसके शरीर का समाप्त होना । साँस ऊपर नीच होना = साँस का ठीक तरह से रग कुछ कालापन लिए हुए हो । श्याम वर्ण का । ऊपर नीचे न पाना। सांस रुकना । सॉस का अदर की अदर साँवला--नक्षा पु०१ श्रीकृष्ण का एक नाम । २ पति या प्रेमी प्रादि और वाहर की बाहर रह जाना = भौचक्का रह जाना । चकित का बोधक एक नाम। रह जाना । साँस का टूट टूट जाना = धीरज का जाते रहना । विशेष---इन अर्थों में इस शब्द का प्रयोग गीतो आदि मे होताह । उ०-पास कैसे न टूट जाती तब, सॉम जब टूट टूट जाती साँवलापन--शा पु० [हि० सॉवला+पन] साँवला होने का भाव । है।-चुभते ०, पृ०५१ । साँस खीचना = (१) नाक के द्वारा वर्ण की श्यामता। वायु अदर की ओर खीचना । साँस लेना। (२) वायु अदर खीचकर उसे रोक रखना। दम साधना। जसे,--हिरन साँम । साँवलियु-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० श्यामला, प्रा० साँवली] श्यामल वर्ण की खीचकर पड़ गया। सांस चढना अधिक वेग से या परिश्रम बदली। उ०--साँवलि कॉइ न सिरजियाँ, अवर लागि रहत । का काम करने के कारण सॉस का जल्दी जल्दी आना और वाट चलती साल्ह प्रिव, ऊपर छाँह करत ।--ढोला०, जाना । साँस चढाना = दे० 'साँस खीचना' । सास चलना = टू०, ४१५ (१) जीवित होना। जीवित रहना । (२) रोग या अवस्थता साँवलिया'--सज्ञा पु० [हिं० साँवलिया] १ कृष्ण । २ प्रिय का. को स्थिति मे जल्दी जल्दी और जोर से साँस लेना। सॉस स्वोवन । प्रिय। ३ पति । स्वामी । छोडना = नाक द्वारा अदर खोची हुई वायु को बाहर निका- साँवलिया--वि० [स० श्यामल] दे० 'सॉवला'। उ०--बैल दो लना। साँस टूटना = दे० 'साँस उखडना' । साम डकार साँवलिया और धौला।--कुकुर०, पृ० ५१ । न लेना=किसी चीज को पूणत पचा जाना । किसी चीज साँवा--सा पुं० [म० श्यामाक] कंगनी या चेना की जाति का एक को इस प्रकार छिपाकर दाव जाना कि पता त न अन्न जो सारे भारत मे वोया जाता है। चले। सॉस तक न लेना= बिलकुल चुपचाप रहना । कुछ $