पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२३५

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मागे ५०५५ जाता है, इसलिये यह दुर्बलो और रोगियों को पानी या दूध मे साचीकृत-वि० [म०] १ टेढा बनाया हुआ। २ निग्छा । मुता उवालकर, पथ्य के रूप में दिया जाता है। इसे साबूदाना हुमा । ३ विकृत। भी कहते हैं । विशप- दे० 'सागू' । साचीगुण-सरा पु० [म०] वैदिक काल के एक देश का नाम । सागे-नि० वि० [2] प्रकट मे।-रघु० २०, पृ० २३६ । साचीन - वि० [स०] बगल से आनेवाला कि०] । सागो-मशा पुं० [अ० संगो] दे० 'सागू' । साच्छात-अव्य० [स० साक्षात्, प्रा० मान्छात] दे॰ 'माक्षात् । सागौन-सज्ञा पु० [अ० संगो द० 'शाल'-१। उ० - अर साच्यात मात को मात । सो वह कस या निहि साग्नि-वि० [स०] १ अग्नि सहित । अग्नियुक्त । २ यज्ञाग्नि को वात ।-नद० ग्र०, पृ. २१६ । रखनेवाला। ३ अग्नि सवधी को। साच्छो-सजा पु० [सं० साक्षी] ० 'माक्षी'। उ०-महा मुद्ध साच्छी चिदुरूप । परमातम प्रभु परम अनृप।-दग्यिा० बानी, साग्निक'-मज्ञा पु० [सं०] १ वह जिसके पास यज्ञ या हवन की अग्नि रहती हो। वह जो बराबर अग्निहोत्र आदि किया करता पृ० १६ । हो । अग्निहोत्री। २ अग्नि द्वारा साक्षी किया हुआ । साछन-सा पु० [स० साक्ष्य] दे० 'साख', 'साक्ष्य' । उ०-पत- गुर के सदकै करूं, दिल अपणो का माछ।- कबीर ग्र०, पृ० १। सान-वि० [स०] १. समस्त । कुल । सब। २ वचा हुअा। शेष । अधिक (को०)। साछो-सगा पुं० [म० माक्षिन्] दे० 'माक्षी' । उ० -रसिका पपीहा साछी पाछी अछरीटी के ।-घनानद, पृ० २०५ । साघल-क्रि० वि० [स० सकल, प्रा० सगल, सयल] सब । समग्र । उ.--साठ अतेवर राजकुमार साधला ऊपरि जाति पार । साज-सज्ञा पुं० [स०] पूर्व भाद्रपद नक्षन्न । -वी० रामो, पृ० ३०। साज'-मज्ञा पुं० [फा० साग, मि० स० मज्जा] १.मजावट का काम । साच-वि० [स० सत्य, प्रा० सच्च, हिं० सच] दे० 'सत्य' । उ०- तैयारी। ठाटबाट । २ वह उपकरण जिसकी यावश्यकता इस पतिया का यह परिमाण। साच सील चालो सुलतान । सजावट आदि के लिये होती हो। वे चीजे जिनकी महायता ---दक्खिनी०, पृ० २१ । से सजावट की जाती है। सजावट का सामान उपकरण । साचक-सा स्री० [तु० साचक] मुसलमानो मे विवाह की एक रस्म सामग्रो । जैसे,-घोडे का साज (जीन लगाम, तग, दुमची जिसमे विवाह से एक दिन पहले वर पक्षवाले अपने यहाँसे आदि), लहेंगे का साज (गोटा, पटा, किनारी प्रारि) वरा. कन्या के लिये मेहंदी, मेवे, फल तथा कुछ सुगधित द्रव्य आदि मदे का साज (खभे, घुडिया आदि) । यो०-साजसमाज = माज सज्जा। अलकार । उ०-ग्राए साज- समाज सजि भूपन वसन सुदेश |- तुलसी ग्र० पृ० ८२। साचय-ग्रव्य० [स० सत्यम्] वस्तुत । यथार्थत । सचमुच । उ०- साजसामान। सरन्नि राव राखि राखि मैं सरनि साचय। -ह. रासो, पृ०५१। मुहा०-साज सजना = तैयारी करना । व्यवस्था करना । उ०- मो कह तिलक साज सजि सोऊ।-मानम, २। १८२ साचरज-वि० [म० स + आश्चर्य] आश्चर्य के साथ । पाश्चर्य- युक्त । उ० - जयत (साचरज)-वाह | कार्तिकेय-वृत्रासुर ३ वाद्य । बाजा। जैसे,--तबला, सारगी, जोड़ी, सिनार, हार मोनियम प्रादि। के वचन सुनि चकित होइ सुरराइ । -पोद्दार अभि० ग्र०, पू. ४६३ . मुहा०-साज छेडना = बाजा वजना प्रारम करना। साज साचरी-मरा स्त्री॰ [म०] एक रागिनी जो कुछ लोगो के मत से भैरव मिलाना = वाजा बजाने से पहले उसका नुर आदि ठीक करना। राग की पत्नी है। ४. लडाई में काम आनेवाले हथियार । जैन,-तलवार, बदूक, साचार-वि० [स०] १ सद्व्यवहार से युक्त । २ सद् अाचार से ढाल, भाला प्रादि । उ०-करी तयारो काट मै, मजा जुद्ध यो युक्त । अच्छे प्राचरणवाला फिो। साज |-हम्मीर० पृ० २६ । ५ वइयो का एक प्रकार का साचि -कि० वि० [स०] बगल से। टेढे तिरछे [को०] । रदा जिससे गोल गलता बनाया जाता है। ६ मन जाल । साचिवाटिका-सपा सी० [सं०] सफेद पुनर्नवा । गदहपूरना । घनिष्टता। साचिविलोकित-सा पु० [स०] तिरछी निगाह । वक दृष्टि । टेढी यो०-साजवाज = हेलमेल । घनिष्ठता। चितवन (को०)। कि.प्र०—करना ।-रखना।-हाना। साचिव्य - सशा पुं० [सं०] १ सचिव का भाव या धर्म । सचिवता । साज-वि० १. बनानेवाला। मरम्मत या तैगर बरनवाला। काम २ शासन (को०) । ३ सहायता । मदद । करनेवाला । २ बनाया हुप्रा । निमित । रचित । साचिव्याक्षेप -मरा पु० [म०] अापत्ति पूर्ण स्वीकृति । आपत्ति विशेष -इस यब मे इस शब्द का प्रयाग चौगिक कान ? गुफिन स्वीकार। हाता है। जैन,--डामाज, रगसाज, पदासाज यादि। साचो कुम्हड़ा-सा पुं० [दश० साची + कुम्हडा] भतग्रा कुम्हड़ा । साज-उशा पुं० [अ०] मा या माल का वृक्ष जिम लामाग सफेद कुम्हा । पेठा। रती कामो में प्राती है। ३०-इमारती लकडी में सागौन, भेजते है।