पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२३६

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साजक ५०५६ साट समान वग या साज, सेमल, वीजा, हल्दुना, तिशा, शीशम, सलई प्रादि किस्म साजात्य-सशा पुं० [म०] मजाति होने का भाव जो वस्तु के दो की लकडी बहुतायत से पाई जाती है।--शुक्ल अभि० प्रकार ने धमा मे मे एक है (वस्तुग्रो का दूसरे प्रकार का ग्र० पृ० १४ ॥ धर्म वैजात्य कहलाता है)। सजातीयता। साजक-सज्ञा पु० [स०] वाजरा । वजरा। श्रेणी का होना। साजिंदा-मज्ञा पुं० [फा० माजिन्द]ि १ वह जो कोई माज बजाता साजगार- वि० [फा० साजगार] १ शुभद। अनुकूल । माफ्कि [को०] । हो। माज या बाजा बजानेवाला। २ वेश्यानो की परिभाषा सागिरी-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] सपूण जाति का एक राग जिसमे सब मे तबला, सारगी या जोडी वजानेवाला । मपरदाई । समाजी। शुद्ध स्वर लगते है। साजिश-स | स्त्री० [फा० माजिश] १ मेल मिलाप । २ किसी साजड--सज्ञा पु० [देश॰] गुलू नामक वृक्ष जिससे कतीरा गोद के विरुद्ध कोई काम करने में सहायक होना। किसी को हानि निकलता हे । विशेष दे० 'गुलू' । पहुँचाने मे किसो को सलाह या मदद देना । जैसे,—इतना साजति--सा मी० [हि० सजावट] सजावट । दे० 'सज्जा'। वडा मामला विना उनकी माजिश के हो ही नही सकता। उ०--जान तणी साजति करउ । जीरह रगावली परिहरज्यो ३ दुरभिसधि । पड्यन्न । टोप ।--बी० रासो, पृ० ११ । साजिशी-वि० [फा० साजिशी] साजिश करनेवाला। कुचकी । साजन--सज्ञा पु० [स० सज्जन] १ पति । मर्ता । स्वामी। २ प्रेमी। पडयनी (को०] । वल्लभ । ३ ईश्वर । ४ सज्जन । भला आदमी । साजीवन-वि० [सं० सह + जीवन] जीवनयुक्त । मजीव । उ०- साजनाg"-क्रि० स० [स० सज्जा] १ दे० 'सजाना' । उ०- केहि विधि मृतक होय साजीवन ।-कवीर सा०, पृ० ८ । (क) चढा यसाढ गगन धन गाजा। साजा विरह दुद दल वाजा --जायसी (शब्द॰) । (ख) वेल ताल जग हेम साजुज्य, साजोज-सजा पुं० [सं० सायुज्य] ३० 'सायुज्य' । उ०-(क) ब्रह्म अगिनि जरि सुद्ध है सिद्धि समाधि लगाइ। कलस गिरि कटोरि जिनिग्रा कुच साजा :- विद्यापति, पृ० लीन होई साजुज्य मे, जोतै जोति लगाइ।-नद० २०, पृ० ७१। २ मजाना। तैयार करना। ३ छोटे बडे पानो को उनके आकार के अनुसार प्रागे पोछे या ऊपर नीचे रखना। १७६ । (ख) मालोक सगति रहै, सामीप समुख सोड। सास्प मारीखा भया, साजोज एक होइ।-दादू०, पृ० १८६। (तमोली)। साजना'--सज्ञा पु० [सं० सज्जन] दे० 'साजन'। उ०—मिलहिं साझना@t-क्रि० स० [हिं० सजाना] दे० मजाना'। उ०- लाखां सू बधड लडाई सार प्रथम सामिया सिपाई।- जो विछुरै साजना गहि गहि भेंट गहत । तपनि मिरगिसिरा रा० ३०, पृ० २३६ । जे सहहि अद्रा ते पलुहत |--जायसी ग्र० (गुप्त), पृ० ३५४॥ साझा-मग पुं० [सं० सहायं] १ किसी वस्तु मे भाग पाने का अधिकार । सराकत । हिम्सेदारी। जैसे,-बासी रोटी मे किसी साजनाg:--सञ्ज्ञा पु० [हि० सजाना] मजावट । साज। सज्जा । का क्या साझा ? (कहा०)। उ०-कीन्हेसि सहस अठारह वरन बरन उपराजि । भुगुति क्रि० प्र०—लगाना । दिहेसि पुनि सवन कहें सकल साजना साजि |---जायसी २ हिस्सा। भाग। वांट। जैसे,—उनके गल्ले के रोजगार मे ग्र०, पृ०२। हमारा आधा साझा है। साजवाज- सज्ञा पु० [फा० साजवाज या म० साज+वाज (अन्०)] १ तैयारी। २ गठबधन । मेलजोल । घनिष्टता। ३ अभि- क्रि० प्र०-करना।—रखना। -होना। सधि । गुप्त अभिसधि। साझी-मज्ञा पु० [हिं० साझा + ई (प्रत्य॰] वह जिसका किसो सयो० क्रि०—करना ।--बढाना ।-रखना ।—होना । काम या चीज मे साझा हो । साझेदार । भागी। हिस्सेदार। साजबार-वि० [हिं० साज+फा० वार (प्रत्य॰)] शोभास्पद । साझेदार - सशा पु० [हिं० साझा+दार (प्रत्य॰)] शरीक होने- शोभनीय । उ०-वोलना सुल्ताँ उसे है साजबार । सल्तनत वाला । हिस्सेदार । साझी। जिसके दायम बरकरार ।-दक्खिनी०, पृ० १८७ । साझेदारी-सज्ञा सी० [हिं० साझेदार + ई (प्रत्य॰)] साझेदार होने साजर-मशा पु० [देश॰] गुलू नामक वृक्ष जिससे कतीरा गोद, का भाव । हिस्सेदारी । शराकत । निकलता है । विशेप दे० 'गुलू'-१ । साटर-सज्ञा सी० [हिं० सट से अनु०] दे० 'साँट' । साजसg+-सज्ञा स्त्री॰ [फा० साज़िश] दे० 'साजिश' । उ०—केता साटा-वि० [स० षष्ठि, प्रा० सदिठ, हिं० साठ] दे० 'साठ'। उ०- साजस साह सू, राजस रागो राण।-रा० रू०, पृ० ३६२ । साट घरी मो साई की बोसर, पर नही मोकू येक घरी हो । साजसामान-सज्ञा पु० [फा० साजसामान] १ सामग्री । उपकरण । -दक्खिनी०, पृ० १३२ । असबाब । जैसे,—बारात का सव साजसामान पहले से ठीक कर साट-सशा स्त्री० [हिं० गाँठ का अनु०] साजिश । षडयन । लेना चाहिए । २ ठाट वाट । उ०-शेख तकी वादशाह के पीर का विरुद्धता करना और