पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सानुभाव ५०६८ सापाय सानुभाव-वि० [स० स+ अनुभाव] अनुभावयुक्त । कृपालु। या व्यापारवाला । ६ पद्य के शब्दो की वाक्यरचना के नियमा सदय । अनुकूल । उ०--तब यह ब्राह्मन ने कह्यो जो मो पै नुमार परस्पर कमवद्धता से युक्न [को०] । महादेव सानुभाव है।-दो सौ वावन०, भा॰ २, पृ० ४५ । साप र स्शा पुं० [२० शाप] दे० 'शाप' । उ०-ऋण छूटयो पूरयो सानभावता-सज्ञा स्त्री॰ [स० सानुभावता] अनुभाव युक्त होने की वचन, द्विजहु न दीनो नाप । -भारतेंदु ग्र०, भा० १, स्थिति या भाव । उ०—सो कछूक दिन मे इनको सानुभावता पृ०२६३ । जनाए।-दो सौ बावन०, भा॰ २, पृ० १०॥ साप-वि० [अ० साफ] दे० 'गाफ' । उ०-मना मनशा माप करो। सानुमान् -सज्ञा पु० [स० सानुमत] पर्वत [को०] । -दक्खिनी०, पृ० ५६ । सानुमानक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] पुडेरी । प्रपौड़ीक । सापणी-मज्ञा स्त्री० [सं० मपिणी] दे० 'सापिन' । उ०पयो सानुराग-वि० [म०] अनुरागयुक्त । प्रेमयुक्त । आसक्त [को०] । एक संदेसणउ, लग ढोलड पहच्चाड । निरमी वेणी सापणी, सानुरुह--वि० [स०] पहाड पर या पहाड की चोटी पर पैदा होनेवाला स्वात न वरस उपाइ।-टोला०, दू० १२५ । [को०] । सापत्न'-वि० [म०] [वि० पी० सापली] १ सपत्न या शत्रु मबधी। सानुष्टि---सञ्ज्ञा पुं० [स०] एक प्राचीन गोत्रप्रवर्तक ऋपि का नाम । २ मौत सवधी या सौत से उत्पन [को०] । सानूकर्ष-वि॰ [स०] धुरीवाला (रथ) (को०] । साफ्न'--मज्ञा पुं० एक ही पति की अनेक पन्नियो से उत्पन्न मतति । सानेयी मज्ञा स्त्री॰ [स०] वशी किो०] । सौतेली सतान किो०] । सानेरमा--वि० [सं०] निर्माता । वनानेवाला । स्रष्टा [को०] | सापत्नक-- पु० [म०] १ द्वेष । शत्रुता । २ दे० 'मापत्न्य' (को०] । सानोका-यज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार की घास । सापत्नेय-वि० [सं०] मपत्नी का । सौतेला फिो०] । सान्नत -- मशा पु० [स०] एक प्रकार का साम । साप न्य-ज्ञा पु० [स०] १ मपत्नो का भाव या वर्म । सौतपन । सान्नत्य--वि० [स०] स्वाभाविक या प्राकृतिक । प्रवृत्ति सबधी (को०] । २ सपत्नी का पुत्र। सौत का लटका। ३ शत्रु । दुश्मन । सान्नहनिक-वि०, सशा पु० [सं०] दे० 'सान्गहिक' । ४ द्वेष । शत्रुता (को०) । ५ सौतेला भाई (को॰) । सान्नाय -संज्ञा पुं० [स०] मत्रो से पवित्र किया हुअा वह घी ' जिससे सापत्न्य-वि० [सं०] मपन्नी मवधी । सपत्नी या सौत का (को॰] । हवन किया जाता है। सारल्यक-सरा पु० [म०] दे० 'सापत्नक' (को०] । सान्नाहिक'-सज्ञा पु० [स०] वह जो सन्नाह पहने हो । कवचधारी। सापत्य'-वि० [स०] १ अपत्ययुक्न । सततियुक्त । मतान युक्न । २ सान्नाहिक'–वि० १. युद्धार्थ प्रोत्साहित करनेवाला । २ कवचधारी। जिसे गर्भ हो । गर्भ से युक्न [को०] । सन्नाह से युक्त [को०] । सान्नाहुक - वि० [सं०] जो कवच, शस्त्र आदि धारण करने योग्य हो सापत्य-सशा पुं० १ सपत्नी का पुन । सौत का बेटा। २ सौतेला [को०] । माई [को०] । सान्निव्य -सज्ञा पुं० [स०] १ समीपता। सामीप्य । सन्निकटता । सापत्रप-वि० [म०] अपनप या मकोच मे पड़ा हया । लज्जित [को०] । २ एक प्रकार की मुक्ति जिसमे आत्मा का ईश्वर के समीप सापद-मचा पु० [म० श्वापद] श्वापद । पशु । पहुँच जाना माना जाता है । मोक्ष । सापन' --संज्ञा पुं० [देश॰ ?] एक प्रकार का रोग । जिममे सिर के वाल सान्निव्यता-मज्ञा स्त्री० [सं०] सान्निध्य का धर्म या भाव । गिर जाते है सान्निपातकी-सता मजा [स०] एक प्रकार का योनि रोग जो त्रिदोप सापन-सा मी[म० नर्पिणी] दे० 'सापिन' । उ०—हन्यौ सग से उत्पन्न होता है। दुअ अग निकसि दुअ अगुल सापन ।--पृ० रा०, ७/१२० । सान्निपातिक-वि० [म०] १ सन्निपात सवधी। सन्निपात का। २ त्रिदोप सबधी । त्रिदोष से उत्पन्न होनेवाला (रोग)। उ०--- सापना पु+-क्रि० स० [म० शाप, हिं० साप+ना (प्रत्य॰)] १ तीनो दोषो के लक्षण मिलते हो उसको मान्निपातिक रक्त शाप देना। बददुपा देना। उ०-चहत महामुनि जाग गयो । पित्त जानना ।-माधव०, पृ० १७ । ३ उलझा हुण। नीच निसाचर देत दुसह दुख कृस तनु ताप तयो। सापे पाप पेचीदा । जटिल (को०)। नए निदरत खल, तब यह मन ठयो। विप्र साधु सुर धेनु धरनि सान्यामिक-सज्ञा पुं० [म०] वह ब्राह्मण जो अपने धार्मिक जीवन हित हरि अवतार लयो।--तुलसी य०, पृ० २६३ । २ के चतुर्थ याश्रम मे प्रविष्ट हो। वह जिसने सन्यास ग्रहण दुर्वचन कहना । गाली देना । कोमना । किया हो । सन्यासी। सापराध-वि० [म०] दोपी । अपराधी [को॰] । सान्मातुर-सज्ञा पु० [म०] सती साध्वी स्त्री की मतान (को॰] । सापवाद-वि० [म०] लोकापवाद से युक्त । कलकपूर्ण (को०] । सान्यपुत्र -सज्ञा पु० [म.] प्राचीन काल के एक वैदिर आचार्य । सापवादक -वि० [सं०] जिसका अपवाद हो सके [को०] । सान्वय-वि० [स०] १ वशपरपरागत । २ कुल या वशजो के साथ । सापाय-वि० [म०] १ शत्रु से लडनेवाला। २ अपाययुक्त । खतरे ६ कुलविशेप से सव वित । ४. महत्वपूर्ण। ५ समान कार्य से पूर्ण (को०] । 1 । 1