पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२५३

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1 सामपुष्पि ५०७३ सामवेद सामपुष्पि--सज्ञा पु० [म०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋपि का नाम । सामरिकवाद-संज्ञा पु० [म० सामरिक + वाद] वह सिद्धात जिसके सामप्रधान-वि० [स०] जिसमे साम नीति मुख्य हो। मैत्रीपूर्ण । अनुसार राष्ट्र मामरिक कार्यो-सेना वढाने, नित्य नए नए दोस्ताना [को०] । भयकर और घातक युद्रोपकरण बनवाने आदि की ओर, सामप्रयोग-सा पु० [सं०] सान्त्वना प्रदायक वचन या कथन [को०] । अधिकाधिक ध्यान दे । शस्त्रसज्ज और विराट सेना रखने का सिद्धात। सामय-मज्ञा पु० [म० समय] दे॰ 'समय' । उ०--सामय समय पनीह वटा।-नद० ग्र०, पृ० ८४ । सामरेय - वि० [स०] समर सवधी । युद्ध का। सामयाचारिक-नि० [म०] [वि॰ स्त्री० सामयाचारिकी] समयाचार सामर्थ्य-सञ्ज्ञा पु० [स०] सस्तापन । सस्ती [को०] । मवधी प्रचलित व्यवस्थानो, निर्धारित मान्यतायो एव स्वीकृत सामर्थg+-मज्ञा स्त्री० [स० सामर्थ्य] समर्थता। दे० 'सामर्थ्य'। परपरानो, या विधान सबधी (को०] । उ०-~-धर हरि अस हुवे धरपत्ती। सस्त्रवध सामर्थ सकती। यौ०-सामयाचारिक स्त्र = समयाचार सबधी एक ग्रथ । --रा० १०, पृ०६। सामयिक'- वि० [म०] १ समय सबधी। समय का। २ वर्तमान सामर्थी-सज्ञा पु० [हिं० सामर्थ + ई (प्रत्य॰)] १ सामथ्य रखने- समय से सबध रखनेवाला। वाला । जिसे सामर्थ्य हो । • जो किसो काय के करने की शक्ति यो०- समसामयिक । सामयिकपन - समाचार पत्न । रखता हो । ३ पराक्रमी । बलवान । ३ समय की दृष्टि मे उपयुक्त। समय के अनुसार । समयोचित । सामर्थ्य-सशा पु०, स्त्री० [सं०] १ समर्थ होने का भाव । किसी कार्य ४ किसी एक निश्चित कालावधि का । नियतकालिक (को०) । के सपादन करने की शक्ति । वल । २ शक्ति । ताकत । ३ ५ जो तय हुआ उसके अनुसार । समय के अनुकूल (को॰) । औचित्य । उपयुक्तता। योग्यता । ४ शब्द की व्यजना शक्ति । ६ ठीक समय पर होनेगला (को॰) । ७ अल्पकालिक । शब्द की वह शक्ति जिससे वह भाव प्रकट करता है । ५ अस्थायी (को०)। व्याकरण मे शब्दो का परस्पर सबध । ६ एक लक्ष्य या सामयिक-सञ्ज्ञा पु० समय या अवधि । नियत काल को०] । समान उद्देश्य होने का भाव (को०)। ७ अभिरुचि। लगाव सामयिकपत्र--सज्ञा पु० [स०] १ शुक्रनीति के अनुसार वह इकरारनामा (को०) । १० धन (को०)। या दस्तावेज जिममे बहुत से लोग अपना अपना धन लगाकर सामर्थ्यवान-वि० [स० सामर्थ्यवत्] शक्तिशाली। समर्थ । उ०-- किसी मुकदमे की पैरवी करने के लिये लिखापढी करते है । जो श्री गुसाँई जो सर्व सामथ्यवान है ।--दो सौ वावन०, भा० २ समाचारपन्न । अखबार । १, पृ० २५८ । सामयीन--सज्ञा पु० [अ० सामिईन] श्रोतागण । श्रोतृवृद । सामर्थ्यहीन-वि० [स०] जो सामर्थ्य से रहित हो। शक्ति, बल, सुननेवाले लोग। उ०--खबर सुन सामयीन ने मिल के सारे योग्यता आदि से हीन। कल्हा भेजे हैं उमकू के। दक्खिनी०, पृ० १६० । सामर्ष-वि० [२०] अमर्पयुक्त । कोपाकुल [को०] । सामयोनि--सज्ञा पु० [म०] १ ब्रह्मा । २ हाथी। सामल-वि० [फा० शामिल] एक साथ । साथ साथ । मिल जुलकर । सामर'--मज्ञा पु० [म० समर] ३० 'समर' । उ०-सिंघ अजा सामल सलल पोवै इक याला। तसकर दबे सामर --वि० [सं०] १ समर सवधी । समर का । युद्ध का । १ अमर उलूक ज्यू ऊँगा किरणालॉ।-रघु० २०, पृ० १७० । अर्थात् देवताओ से युक्त। सामवाद-सज्ञा पु० [म.] सात्वनापूर्ण बात । मैत्रीपूर्ण वातचीत । सामर-सशा पु० [म० शम्बर, सम्बर] एक मृग । दे० 'सांभर' । सामनीति से युक्त कथन (को)। उ०--सिंह कोल गज रीछ वहुत सामर वलवते । --पृ० सामवायिक'--वि० [स०] १ समवाय सबधी। २ जो अटूट या रा०,६।६४॥ अविच्छेद्य सबध से युक्त हो । ३ समूह या मुड सबंधी। सामर"--वि० [स० श्यामल] दे० 'सॉवरा', 'साँवला' । सामवायिक:--सा पु० १ अमात्य । मत्री । वजीर । २ किसी श्रेणी, सामरथा--सशा सी० [सं० मामथ्य] दे० 'सामर्थ्य' । वर्ग, समाज या दल का प्रधान (को०)। सामरस्य-सञ्ज्ञा पु० [स०] हर स्थिति मे एक ही प्रकार की अनुभूति सामवायिकराज्य-संज्ञा पुं० [स०] वे राज्य जो जो किसी करने का भाव । समरसता। जैसे,--उनका जीवन सामरस्य युद्ध के निमित्त मिल गए हो। से भरा होता है। विशेष--कौटिल्य ने लिखा है कि सामवायिक शत्रु राज्यो से सामरा--वि" [म० श्यामल] दे० 'सॉवला'। उ०-सामर बदन कभी अकेला न लडे। पर मांवरे भरत है।-~मति० ग्र०, पृ० ३५० । सामराधिप--मचा पु० [सं०] मेना का प्रधान अधिकारी । सेनापति । सामविद्--सञ्ज्ञा पु० [स०] वह जो सामवेद का अच्छा ज्ञाता हो । सामविप्र-सञ्चा पु० [स०] वह ब्राह्मण जो अपने सब कर्म सामवेद सामरिक--वि० [स०] समर सबधी। युद्ध का। जैसे,--सामरिक के विधानो के अनुसार करता हो । सामरिकता--मज्ञा स्त्री० [स०] १ समर या समर सबधी कार्यों मे सामवेद-सज्ञा पु० [स० साम (न्) वेद] भारतीय आर्यों के चार वेदो लिप्त रहना । २ युद्ध । लड़ाई। मे से प्रसिद्ध तीसरा वेद । 1 समाचार।