पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२५५

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सामान्य ५०७५ सामाश्रय सामान्य'--सज्ञा पुं० [म०] १ समान होने का भाव। सादृश्य । सामान्यनायिका--सज्ञा स्त्री० [स०] सामान्य वनिता । वेश्या किो॰] । समानता । बगवरी। २ वह एक वात या गुण जो किसी जाति सामान्यपक्ष-सज्ञा पु० [स०] दो अतिसीमानो के मध्य की स्थिति । या वर्ग की सब चीजो मे समान रूप से पाया जाय । मामान्यभविष्यत्-सज्ञा पु० [स०] भविप्य त्रिया का वह काल जो जातिमाधर्म्य । जैसे,—मनुप्यो मे मनुष्यत्व या गीग्रो मे गोत्व । साधारण रूप बतलाता है। जैसे,--पाएगा, जाएगा, खाएगा। विशेष--वैशेपिक मे जो छह पदार्थ माने गए है, सामान्य उनमे से सामान्यभूत--सज्ञा पु० [सं०] भूत क्रिया का वह रूप जिसमे क्रिया एक है। इसी को जाति भी कहते हैं। की पूर्णता होती है और भूतकाल की विशेषता नही पाई जाती ३ माहित्य में एक प्रकार का अलकार। यह उस समय माना है। जैसे,--खाया, गया, उठा । है, जब एक ही प्रकार की दो या अधिक ऐसी वस्तुप्रो का सामान्यलक्षएा-सा पु० [स०] वह गुण या लक्षण जो किसी जाति वर्णन होता है जिनमे देखने में कुछ भी अतर नही जान पडता। या वर्ग मे समान रूप से पाया जाय (को॰] । जैसे,—(क) एक स्प तुम भ्राता दोऊ। (ख) नाहिं फरक सामान्य लक्षण--सज्ञा स्त्री० [स०] वह गुण जिसके अनुसार किसी श्रुतिकमल पर हरिलोचन अमिसेप । (ग) जानी न जात एक सामान्य को देख कर उसी के अनुसार उस जाति के और ममाल श्री बाल गोपाल गुलाल चलावत चूक। ४ सपूर्णता । पूर्ण होने का सब पदार्थों का बोध होता है। किसी पदार्थ को देखकर उस माव (को०)। ५ किस्म। प्रकार (को०)। ६ जाति के और सब पदार्थों का बोध करानेवाली शक्ति । सार्वजनिक कार्य । ७ अनुस्पता। तुल्यता (को०) । ८ वह जैमे,--किसी एक गौ या घड़े को देखकर समस्त गौग्रो या धर्म जो मनुष्य, पशु पक्षी अादि मभी मे मामान्य रूप मे पाया घडो का जो ज्ञान होता है, वह इसी सामान्य लक्षण के जाय (को०) । ६ पहचान । लक्षण । चिह्न (को०)। १० वह - अनुसार होता है। अवस्था जिसमे किमी एक ओर झुकाव न हो। मध्य स्थिति । सामान्यवचन' वि० [म०] सामान्य लक्षण बतानेवाला। तटस्थता (को०)। सामान्य छल-ला पु० [२०] न्यायशास्त्र के अनुसार एक प्रकार का मामान्यवचन-सचा पु० वस्तु या पदार्थवोधक शब्द [को०) । छल जिसमे सभावित अर्थ के स्थान मे अति सामान्य के योग से सामान्यवनिता सज्ञा स्त्री० [स०] वेश्या । रडी किो०] । असभूत अर्थ की कल्पना की जाती है। जव वादी किसी सभूत सामान्यवर्तमान-सञ्ज्ञा पु० [स०] वर्तमान क्रिया का वह रूप जिसमे अर्थ के विप य मे कोई वचन कहे, तब सामान्य के सबध से कर्ता का उसी समय कोई कार्य करते रहना सूचित होता है। किसी असभूत अर्थ के विषय मे उस वचन की कल्पना करने की जैसे,-खाता है, जाता है। क्रिया। विशेप दे० 'छल'। सामान्यविधि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] साधारण विधि या प्राज्ञा । जैसे,- सामान्यज्ञान-सग पु० [म०] १ वस्तुप्रो के सामान्य गुणो की हिमा मत करो, झूठ मत बोलो, चोरी मत करो, किसी का जानकारी या ज्ञान । २ सव विपयो का साधारण या कामचलाऊ अपकार मत करो, आदि सामान्य विधि के अतर्गत है। परतु ज्ञान [को०] । यदि यह कहा जाय कि यज्ञ मे हिसा की जा सकती है, अथवा सामान्य ज्वर-सज्ञा पुं० [म.] साधारण ज्वर । मामूली बुखार । ब्राह्मण की रक्षा के लिये झूठ बोला जा सकता है तो इस प्रकार की विधि विशेप होगी और वह सामान्य विधि की सामान्यत ---अव्य० [सं०] सामान्य रूप से । साधारण रीति से । अपेक्षा अधिक मान्य होगी। साधारणत । जैसे,--राजनीति मे मामान्यत अपना ही स्वार्थ देखा जाता है। सामान्य शामन--मज्ञा पु० [म०] ऐसी राजाज्ञा जो सवपर समान रुप से लागू हो [को०)। सामान्यतया-अव्य० [म०] सामान्य रूप से । साधारण रीति से । सामान्य शास्त्र--सज्ञा पु० [म.] सवपर समान रूप से लागू होने- मामूली तौर से । सामान्यत । साधारणतया । वाला विधि या शारत्न । सामान्यतोदृष्ट-सज्ञा पुं० [स०] १ तर्क और न्यायशास्त्र के अनुसार सामान्या--मञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ साहित्य के अनुसार वह नायिका जो अनुमान सवधी एक प्रकार की भूल जो उस समय मानी जाती धन लेकर किसी से प्रेम करती है। है जब किसी ऐसे पदार्थ के द्वारा अनुमान करते है जो न कार्य विशेष-इस नायिका के भी उतने ही भेद होते हैं जितने अन्य हो, न कारण । जैसे,--कोई आम को वीरते देखकर यह नायिकापो के होते है। अनुमान करे कि अन्य वृक्ष मी वीरते होगे । २. दो वस्तुनो २ गणिका । वेश्या। या वातो मे ऐसा साधर्म्य जो कार्यकारण सवध से भिन्न हो । जैसे,-विना चले कोई दूसरे स्थान पर नहीं पहुंच सकता। सामायिक'--सञ्ज्ञा पु० [स०] जैनो के अनुसार एक प्रकार का व्रत या आदरण जिसमे सब जीवो पर सम भाव रखकर एकात मे इसी प्रकार दूसरे को भी किसी स्थान पर भेजना बिना उसके वैठकर प्रात्मचिंतन क्यिा जाता है। गमन के नहीं हो सकता। सामान्यत्व--पञ्ज्ञा पु० [सं०] सामान्य या साधारण होने का भाव । सामायिक-वि० मायायुक्त । माया सहित । सामान्यता। साधारणता। उ०-इस सामान्यत्व की स्थापना सामाश्रय-सज्ञा पु० [म.] वह भवन या प्रासाद आदि जिसके के कई हेतु होते है। -मा० रा० शुक्ल, पृ० ८६। पश्चिम और वीथिका या सड़क हो।