पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२६९

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सार्वयज्ञिक, सार्वयज्ञीय ५०८ सालना सार्वयज्ञिक, सार्वयज्ञीय--वि० [सं०] जो सभी प्रकार के यज्ञो से सबद्ध किया हुआ वह चौकोर छेद जिसमे पाटी आदि बैठाई जाती हो किो०)। है। ४ घाव । जस्म । ५, दुख । पीडा । वेदना। कमक । सायौगिक -वि० [स०] प्रत्येक रोग मे उपयोगी या उपकारक [को०] । चुभन । उ०-को जानि मात विभनी पी२ । सोति को साल सार्वरात्रिक - वि० [स०] पूरी रात चलने या टिकनेवाला । जैसे,- साल सरीर ।--पृ० रा०, ११३७५ । दीपक (को०)। साल'--सज्ञा पुं० [१०] १ जड। मून । २ कूचग्दो की परिभाषा सार्वराष्ट्रिय --वि० [स०] ३० 'सार्वराष्ट्रीय' । मे खस की जड जिमसे कृच बनती है। ३ राल। धना। ४ वृक्ष । पेड । ५. प्राकार । परकोटा । ६ दीवार । ७ एक सार्वरा ट्रीय-वि० [सं०] जिसका दो या अधिक गष्ट्रो से सवध हो । प्रकार की मछली जो भारत, लका और चीन में पाई जाती भिन्न भिन्न राष्ट्र सवधी। जैसे,—सार्वराष्ट्रीय प्रश्न । सार्व- है। ८. सियार। ६ कोट । किला। (डि०) । १० माल का राष्ट्रीय राजनीति । वृक्ष। दे० 'साल। सार्वरुह-सज्ञा पु० [स०] शोरा । मृत्तिकासार । सूर्यक्षार । साल'-मज्ञा पुं० [फा०] वर्ष । बरस । बारह महीने । सार्वरोगिक, सार्वरौगिक-वि० [सं०] दे० 'सार्वयोगिक' । साल"--सज्ञा पुं० [सं० शालि] दे॰ 'शालि'। सार्वलौकिक-वि० [स०] सब लोगो को ज्ञात । सारी दुनिया मे फैला साल'--सज्ञा स्त्री॰ [म० शाल] ० 'शाला' । हुआ । सार्वदेशिक [को०)। साल --सज्ञा पुं॰ [स० श्याल] दे० 'साला'। सार्वणिक--वि० [म०] १ हर किस्म का। हर प्रकार का। २ हर जाति या वर्ग से सबधित [को०] । साल -सज्ञा पुं० [फा० शाल] दे० 'शाल' । सार्वविद्य-मज्ञा पुं॰ [स०] सर्वज्ञता यिो०] । साल अमोनिया--पज्ञा पु० [अ०] नौसादर । सार्ववेदस्-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ वह जो यज्ञ मे अपनी सपूर्ण सपत्ति सालइलाही-सज्ञा पु० [फा०] मुगल सम्राट अकबर द्वारा प्रचारित दान कर दे । २ किसी की समग्र सपत्ति । पूरी सपत्ति [को०] । एक सवत् या वर्ष जिसका प्रारभ उसके सिहासन पर बैठने साववैद्य--मशा पुं० [३०] १ वह ब्राह्मण जिसे चारो वेदो का ज्ञान की तिथि से हुआ था [को०] । हो । सपूर्ण वेदो का ज्ञाता ब्राह्मण। २ समग्र वेद । चारो वेद सालई-मशा [हिं०] दे० 'सलई'। को०] । सालक-वि० [हिं० सालना+ क (प्रत्य॰)] सालनेवाला । दुख देने- वाला। उ०-जद्यपि मनुज दनुज कुल घालक। मुनि पालक सार्वसेन--सज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार का पचरान यज्ञ (को०] । खल सालक वालक-मानस, ३११३ । सार्पपर--सज्ञा पुं० [म०] १ सरसो। २ सरसो का तेल । ३ सरसो सालक-वि० [सं०] अलको से युक्त । वालो से सुशोभित [को०] । सानकि--सज्ञा पु० [स०] एक प्राचीन ऋपि का नाम । सार्पप-वि० सरसो सबधी सरसो ग। सालक्षण्य--मशा पुं० [स०] लक्षणो, गुणो या चिह्नो की तुल्यता [को०] । साप्ट-वि०, सशा पुं० [सं०] दे० 'साष्टि' । सालग--सञ्ज्ञा पु० [सं०] एक गग। साष्टि'--सा स्त्री० [स०] पांच प्रकार की मुक्तियो मे से एक प्रकार यो०-सालसूडक = सगीत मे एक ताल | की मुक्ति। सालगा---सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'सलई' । साष्टिर--वि० जो तुल्य या समान स्थान, पद, अधिकार, शक्ति, श्रेणी सालगिरह-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] बरस गाँठ । जन्मदिन । आदि से युक्त हो [को०)। सालग्राम--सञ्ज्ञा पुं० [म० शालग्राम] दे० 'शालग्राम' । साष्टिता--सज्ञा स्त्री० [म०] १ पद या शक्ति की समानता। २ एक सालनामी--सश सी० [स० शालग्राम] गडक नदी। प्रकार की मुक्ति [को०] । विशेष-इसका यह नाम इसलिये पडा कि उममे शालग्राम की साटय-सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'साप्टिता' [को०] । शिलाएं पाई जाती हैं। सालकार-वि० [सं० सालडकार] अलकारयुक्त । भूपित । माभूषण- सालज--सशा पुं० [सं०] सर्जरस । राल । धूना । युक्त । अलकृत [को०)। सालजक-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सालज'। सालग-सग पुं० [सं० सालङग] संगीत मे तीन प्रकार के रागो मे से सालद्रुम-सज्ञा पुं॰ [स०] सागौन । एक प्रकार का राग। वह राग जो विलकुल शुद्ध हो, जिसमे सालन-सज्ञा पुं० [स० सलवण] मास, मछली या साग सब्जी की किसी और राग का मेल न हो, पर फिर भी किसी राग का मसालेदार तरकारी। आभास जान पडता हो। सालन'--शा पुं० [सं०] सर्जरस । धूना। राल । २ गोद (को०)। सालब-वि० [सं० सालम्ब जो सहारा लिए हो । पालवयुक्त (को०] । सालना--क्रि० अ० [सं० शूल] १ दुख देना। खटकना । कसकना । साल'--संज्ञा पुं०, खी० [हि० सलना या सालना] १ सालने या सलने २ चुभना। गडना। की क्रिया या भाव । २. छेद । सूराख । ३. चारपाई के पावो मे सयो० कि०--जाना। का साग.