पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२७२

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सावकाश ५०१२ साववय सावकाग-१ जिने मौका या फुरसत हो । अवकाशयुक्त । २ अनुन । उत्रित । योग्य [को०)। माववाग'--नि० वि० फुर्मत न । नुमीते से । सावकानए-०कि [सं० मावकाश दे० 'सावकाश' । उ०- मासारह घनी घुटनि तें विनद पुलिन मॅडराइ रुकौं ।- घनानद, पृ० ८२३ । सावगा--तश पुं० [सं० धावक] दे० 'श्रावक' । नावगी--मरा • [स० श्रावक, प्रा० सावग] दे० 'सरावगी'। नावग्रह--वि० [a] १ 'अवग्रह' चिह्न से युक्त। २ नियनित । नयमित । ३ जिमका विश्लेपण किया गया हो [को०] । सावचेत:- बुं० [अ० सा + हिं० नेत अथवा स० साव हित+ हिं० चेत] मावधान । सतकं । होशियार । चौकन्ना। उ०-अव इसमे मावचेत रहना चाहिए।-श्रीनिवास ग्र०, पृ० ६७ । मावचेती-समा रसी० [हिं० मावचेत+ई (प्रत्य॰)] सावधानी । मनकता। सबग्दारी। चौकन्नापन । मावज+--सा पुं० [स० श्वापद, प्रा० मावय] जगली जानवर जिमका शिकार किया जाता है। सावज्ञ--वि० [सं०] १ अवज्ञा या तिरस्कार युक्त । २ अरचि का अनु- भव करनेवाला । घृणा करनेवाला [को०)। मावणिक-मज्ञा पुं० [म० श्रावरिणक] श्रावण मास । सावन का महीना। (दि०)। सावतर-मज्ञा पुं० [म० सापल्य, देशी सावक्क, सावत्त, सावत या हिं० सौत] १ सौतो मे होनेवाला पारस्परिक द्वेष । सौति- यादाह । २ ईर्ष्या । डाह । उ०--तहूँ गए मद मोह लोभ अनि सराहुँ मिटति न मावत । -तुलसी (शब्द०)। सावत'-- पु० [सं० मामन्त, हिं० सावत] दे० 'सावत'। उ.--डे मावत उद्द कनकेश मारे ।-५० रासो, पृ० ४५। सारद्य'--वि० [३०] निंदनीय । दूपणीय । अापत्तिजनक । सावद्य-सज्ञा पुं० तीन प्रकार को योग शक्तियो मे से एक शक्ति जो योगियो को प्राप्त होती है । विशेप-अ य दो शक्तियों के नाम निरवद्य और सूक्ष्म है। सावधान-वि० [म०] १ सचेत । सतर्क । होशियार । खवरदार। सजग । चाकम । २ उद्यमी । परिश्रमी (को०) । ३ अवधान- युक्त । ध्यानपूर्वक । उ०-मावधान मुनु मुमुखि सुलोचनि भरत कथा नवग्ध विमोचनि ।-मानस, २।२८७ । मावधानता-मरा पी० [#०] नावधान होने का भाव । सतर्कता। नोगियारी | परदारी | सावधानी। मावधानी-मरा पी० [म० मावधान- ई (प्रत्य॰)] सावधान होने का भार।२० 'सावधानता'। माधारए-वि० [सं०] निश्चययुक्त । निश्चित । प्रतिवधित (को०] मावधि-पि० [सं०] प्रवधि अर्थात् नियन काल या मीमा से युक्न । जितके समय को मीमा निश्चित हो (को०] । सावधि आधि-सज्ञा स्त्री० [स०] वह गिरवी जो इस शर्त पर रखी जाय कि इतने दिनो के अदर अवश्य छुड़ा ली जायगी। मावन'-- सज्ञा पुं॰ [स० श्रावण] १. श्रावण का महीना। आपाढ के वाद का और भाद्रपद के पहले का महीना । श्रावण । मुहा०-सावन के अवे को हरियाली सूझना = रा ही हरा दिखाई देना या सूझना । अच्छी परिस्थितियो मे रहने या उन्हें देखनेवाले व्यक्ति का प्रतिकूल स्थितियो को भी किसी कारणवश पूर्ववत् समझना या जानना । सावन का फोडा = जल्दी ठीक न होनेवाला घाव । असाध्य रोग। उ०-पकपक कर ऐमा फूटा है, जैसा सावन का फोडा है।-आराधना, पृ० ७३ । सावन हरा न भादो सूखा = समान या तुल्य जानना । समान परिस्थिति का समझना। प्राकृतिक या लौकिक परिवर्तन के प्रभाव से रहित जीवन जीना। उ०-मगर यहाँ सावन हरे न भादो सूखे दोनो वरावर हैं।—फिसाना०, भा०३ पृ० ३७७ । २ एक प्रकार का गीत जो श्रावण के महीने मे गाया जाता है । (पूरब)। ३ कजली नामक गीत । ४ आधिक्य । प्रचुरता । राशि। सावन-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ यज्ञ कर्म का प्रत । यज्ञ की समाप्ति । २ यज्ञ कर्म का यजमान । ३ वरुण । ४ पूरे एक दिन और एक रात का समय। एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक का समय । ६० दड का समय । विशेप-इस प्रकार के ३० दिनो का एक सावन मास होता है और ऐसे बारह सावन मासो अर्थात् ३६० दिनो का एक सावन वर्ष होता है, मलमासनत्व के अनुसार-'सौर मवत्सरे दिन पटकाधिक सावनो भवति' । अर्थात् सौर और सावन वर्ष मे लगभग ६ दिनो का अतर होता है। विशेप-दे० 'वर्प' । ५ तीस दिवस का माम (को०)। ६ एक विशेप वर्प (को०)। यौ -सावन मास = तीस दिन का महीना। सावनवपं = वह साल जो सावन मास या ३६० दिनो का होता है। सावन-वि० मवन यज्ञ सवधी किो०] । सावनी'--सज्ञा पु० [हिं० मावन + ई (प्रत्य०)] १ एक प्रकार का धान जो मादो मे काटा जाता है। २ तवाकू जो मावन भादो मे बोया जाता है, कार्तिक मे रोपा जाता है और फागुन मे काटा जाता है। ३ एक प्रकार का फूल । सावनी--सशा पी० वह वायन जो सावन महीने मे वर पक्ष से वधू के यहाँ भेजा जाता है। सावनी'-सज्ञा स्त्री० [अ० थावरणी] दे० 'श्रावणी'। सावनी'-वि० मावन सबधी । सावन का। जैसे,--सावनी समां = मावन मास की शोभा। सावनी-सशास्त्री० [हिं० मावन] १ श्रावण मास का गीत । २ कजली गीत । सावमर्द-वि० [म.] परस्परविरद्ध । अरुचिकर । अप्रिय (फो० । सावयव---वि॰ [सं०] अवयव युक्त । अगोसहित । साग (को०] । 1