पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२७३

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सावर' ५०१३ सावित्री सावर--सज्ञा पु० [स० शावर] 'शवकृत एक तन का नाम । यौ०-सावशेपजीवित = जिसकी आयु अभी बाकी हो। जिसका विशेष-इसके सवध मे इस प्रकार की कथा है--एक वार जव जीवनकाल अभी शेप हो। सावशेपवधन = जिस पर कुछ प्रतिवध शिवपार्वती किरात देश मे बन मे विचरण कर रहे थे, तव शेप हो । जो अभी भी बधन मे हो। पार्वतीजी ने प्रश्न किया कि प्रभो। आपने सपूर्ण मन सावप्टभ'-सज्ञा पु० [स० सावष्टम्भ] वह मकान जिसके उत्तरदक्षिण कोल दिए है, पर अव कलिकाल है, इस समय के जीवो का दिशा मे सडक हो । ऐसा मकान बहुत शुभ माना गया है । उपकार कैसे होगा। तव शिवजी ने उसी वेश मे नए मत्रो की सावप्टभ-वि० १ दृढ । मजबूत । २ आत्मनिर्भर । स्वावलवी। ३ रचना की जो शावर या सावर कहाते हैं। इन मत्रो को गर्वोद्धत । घमडी । शानदार । गुमानी (को०)। ४ हिम्मती। जपने या सिद्ध करने की आवश्यकता नही, ये स्वयसिद्ध है। साहसी (को०)। न उनके कुछ अर्थ ही है। यौ०-सावष्टभवास्तु = एक प्रकार का मकान । दे० 'सावष्टभ' । २ एक प्रकार का लोहे का लवा औजार जिसका एक सिरा नुकीला सावहित वि० [सं०] अवधान युक्त । सावधान [को०] । और गुलमेख की तरह होता है । इसपर खुरपा रखकर हथोडे से पीटा जाता है जिससे खुरपा पतला और तेज हो सावहेल वि० [स०] अबहेला से युक्त । घृणा या तिरस्कार करने- वाला [को०)। जाता है। सावाँ-सज्ञा पु० [स० श्यामाक] दे० 'साँवाँ' । सावर-सज्ञा पु० [स० शवर या साम्बर एस प्रकार का हिरन । साविकार-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] धात्री। दाई किो०] । उ०--चीते सु रोझ सावर दवग । गैडा गलीनु डोलत अभग । साविकार-सञ्ज्ञा पु० [अ० साविकह] आवश्यकता । व्यवहार । ---सूदन (शब्द०)। सवध । सरोकार । प्रयोजन । उ०--सुनो सपूतो साविको सावर-सज्ञा पुं० [म०] १ लोध । लोध्र। २ पाप । अपराध । सबको परै न रोज । लियो जात याही समय, हित अनहित गुनाह । ३ एक प्रकार का मृग । को खोज ।--हम्मीर०, पृ० ४४ । सावरक--सज्ञा पुं० [स०] सफेद लोध । सावित्र'-सज्ञा पुं० [सं०] १ सूर्य । २ शिव । ३ वसु । ४ ब्राह्मण । सावरण-वि० [स०] १ छिपा हुआ। गोपनीय । २ ढका हुआ । ५ सूर्य के पुत्र। ६ कर्ण । ७ गर्भ। ८ यज्ञोपवीत । बद । ३ जो घेरे के अदर हो [को०] । उपनयन सस्कार । यज्ञोपवीत । ६ हस्त नक्षत्र (को०) । १० सावरणी-सज्ञा स्त्री० [स० सम्मार्जनी] वह बुहारी जो जैन यति अग्नि का एक रूप (को०)। ११ कलछा या चम्मचभर अपने साथ लिए रहते हैं। परिमाण (को०)। १२ दसवे कल्प का नाम (को०) । १३ मेरु सावरिका--सज्ञा स्त्री० [स०] विना जहरवाली जोक । पर्वत का एक शिखर (को०)। १४ एक प्रकार की आहुति या होम (को०) । १५ एक वन का नाम (को०) । १३ एक प्रकार सावर्ण-वि० [स०] सवर्ण सवधी । समान वर्ण या जाति सवधी। का अस्त्र। साव--सशा पुं० २० 'सावणि' । सावित्र-वि० १ सविता सबधी । सविता का । जैसे,—साविन होम । सावर्णक-मज्ञा पु० [स०] दे० 'सावरिण' । २ सूर्य से उत्पन्न । सूर्यवशीय । ३ गायनी से युक्त । गायनी सावर्णलक्ष्य-सज्ञा पु० [म.] १ चमडा । चर्म । २ एक ही वर्ण और मन से दीक्षित। जाति की तुल्यता का बोधक समान चिह्न (को०)। सावित्रिका--सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक शक्ति (को॰] । सारिण-सज्ञा पु० [म०] १ आठवे मनु जो सूर्य के पुत्र थे। सावित्री-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ वेदमाता गायत्री। २ सरस्वती । ३ विशेप कहते है कि सूर्य की पत्नी छाया सूर्य का तेज सहन न कर ब्रह्मा की पत्नी जो सूर्य की पृश्नि नाम की पत्नी से उत्पन्न हुई सकने के कारण अपने वर्ण को (सवर्ण) एक छाया बनाकर थी। ४ वह सस्कार जो उपनयन के समय होता है और जिसके और उसे पति के घर छोडकर अपने पिता के घर चली गई न होने से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य व्रात्य या पतित हो जाते थी । उसी के गर्भ से सावणि मनु की उत्पत्ति हुई थी है। ५ धर्म की पत्नी और दक्ष की कन्या। ६ कश्यप की २ एक मन्वतर का नाम । ३ एक गोन का नाम । पत्नी। ७ अष्टावक्र की कन्या । ८ मद्र देश के राजा अश्वपति सावणिक-वि० [स०] समान जाति म कुल से संबद्ध किो०] । की कन्या और सत्यवान की सती पत्नी का नाम । सावण्य--सज्ञा पु० [स०] १ रग की समानता। २ वर्ग या जाति विशेप-पुराणो मे इसकी कथा यो है। मद्र देश के धर्मनिष्ठ को समानता। ३ आठवे मनु का युग अथवा मन्वतर [को०] । प्रजाप्रिय राजा अश्वपति ने कोई सतान न होने के कारण ब्रह्मचर्यपूर्वक कठिन व्रत धारण किया। वह सावित्री मत्र से सावलेप- वि० [म०] अवलेपयुक्त । गर्व से भरा हुआ । धृष्ट [को०) । प्रतिदिन एक लाख पाहुति देकर दिन के छठे भाग मे भोजन सावशेष - वि० [१०] १ जिमका कुछ अश शेप हो । २ जो पूरा करता था। इस प्रकार अठारह वर्ष बीतने पर सावित्री देवी हो। अपूर्ण । अधूरा [को०] । ने प्रसन्न होकर राजा को दर्शन दिए और इच्छानुसार वर हि० श० १०-३३ -