पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२८२

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सिंदूरकारण ६००२ सिंधु पोता और चढाया जाता है। आयुर्वेद मे यह भारी, गरम, सिंध'---मणा पु० [स० सिन्ध] भारत के पश्चिम प्रात का एक प्रदेश टूटी हड्डी को जोडनेवाला, घाव को शोधने और भरनेवाला जो ववई प्रात के अतर्गत था। अब यह पाकिस्तान का एक तथा कोढ, खुजली और विप को दूर करनेवाला माना गया है। प्रात है। यह घातक और अभक्ष्य है। सिधर--सज्ञा सी० १ पजाब की एक प्रधान नदी । २ भैरव राग की पर्या-नागरेण । वीरज । गणेशभूपण । सध्याराग । शृगारक । एक रागिनी। मीभाग्य । अरुण । मगल्य । सिघव-सज्ञा पु० [स० सैन्धव] दे० 'सैधव'। उ०—(क) सिंधव २ वलूत की जाति का एक पहाडी पेड जो हिमालय के निचले फटिक पपान का, ऊपर एकड रग । पानी माहं देखिए, न्यारा भागो मे अधिक पाया जाता है। न्यारा अग। -दादूदयाल (शब्द॰) । (ख) सिंधव झप आराम सिद्गकारण--मशा पु० [स० सिन्दूरकारण] मीमा नामक धातु । मवि ते अाज हेरायो श्याम । सूर (शब्द॰) । सिंदूरतिलक-सशा पु० ] स० सिन्दूरनिलक] १ सिंदूर का तिलक । सिंधवी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० मिन्ध] एक रागिनी । २ हाथी। विशेप-यह रागिनी आभीरी और प्राशावगे के मेल से बनी मानी सिदूरतिनका-सज्ञा लो० [स० सिन्दुर तिलका] सधवा स्त्री। जाती है। इसका म्वरूप कान पर कमल का फूल रखे, लाल सिदूरदान--सज्ञा पुं० [सं० सिन्दूरदान] विवाह के अवसर की एक वस्त्र पहने, जुद्ध और हाथ मे त्रिशूल लिए कहा गया है। हनुमत प्रधान रीति । वर का कन्या की मांग मे सिंदूर डालना। के मत से इस रागिनी का स्वरग्राम यह है--सा रे ग म प घ नि सा अथवा सा ग म प ध नि मा । सिदूरपुप्पी-सशा स्त्री० [स० सिन्दूरपुप्पी] एक पौधा जिसमे लाल रग के फूल लगते है । वीरपुप्पी । सदा सुहागिन । सिंधसागर-मज्ञा पु० [स० मिन्धमागर] पजाव मे एक दोग्राव । पर्या०--सिंदूरी । तृणपुष्पी । करच्छदा। शोणपुप्पी । भेलम और मिधु नदी के बीच का प्रदेश । सिंदूरवदन--मज्ञा पु० [स० सिन्दूर + वन्धन ?] विवाह मस्कार मे एक सिधारा-मज्ञा पु० [देश] श्रावण मान के दोनो पक्षो की तृतीया को प्रधान रीति जिसमे वर कन्या की मांग मे सिंदूर डालता है। लडकी की सुसराल मे भेजा हुया पकवान आदि । उ०-सिंदूरवदन, होम लावा होन लागी भाँवरी । सिलपोहनी सिधी--सज्ञा स्त्री० [हिं० सिंध+ ई (प्रत्य॰)] सिंध देश की बोली करि मोहनी मन हरयो मूरति साँवरी।-तुलसी ग्र०, पृ०५९। विशेष-यह समस्त सिंध प्रात और उसके आसपास लास वेला, सिदूररस -सज्ञा पुं० [स० सिन्दूररस] रम सिंदूर । कच्छ और बहावलपुर आदि रियासतो के कुछ भागो मे वोली जाती है। इसमे फारसी और अरवी भाषा के बहुत अधिक शब्द विशेप-यह पारे और गधक को आँच पर उडाकर बनाया जाता मिल गए है। यह लिखी भी एक प्रकार की अरवी फारसी है और चद्रोदय या मकरध्वज के स्थान पर दिया जाता है। लिपि मे ही जाती है। इसमे 'सिरकी', 'लारी' और 'थरेली' सिदूरवदन-सज्ञा पु० [स० सिन्दूरवन्दन] दे० 'सिंदूरदान' । तीन मुख्य वोलियाँ हैं। पश्चिमी पजाव की भाषा के समान सिदूरिका-सज्ञा स्त्री० [म० सिन्दूरिका] सिंदूर [को॰] । इममे भी दो म्वरो के बीच मे कही कही 'त' पाया जाता है। सिरित-वि० [स० सिन्दूरित] मिंदरयुक्त । लाल किया हुआ । सिंदूर सिवी-वि• सिंघ देश का । सिंध देश सवधी । पोता हुआ (को०] । सिधीरता पु० १ सिंध देश का निवासी । २ सिंध देश का घोडा सिदूरिया'-वि० [म० मिन्दूर + इया (प्रत्य॰)] सिंदूर के रग का। जो बहुत तेज और मजबूत होता है। अत्यत प्राचीन काल से खूब लाल । जैसे,-मिदूरिया आम । सिंध घोडे की नस्ल के लिये प्रसिद्ध है। सिदूरिया' --संज्ञा स्त्री० [म० सिन्दूर (पुप्पी)] सदा सुहागिन नाम का पौधा । सिंदूरपुप्पी। सिधु'--मज्ञा पु० [स० सिन्ध] १ नद । नदी। २ एक प्रसिद्ध नद जो पजाब के पश्चिम भाग मे है। ३ समुद्र । मागर । ४ चार सिदूरी'- वि० [स० सिन्दूर + ई (प्रत्य॰)] सिंदूर के रग का । उo- की सत्या। ५ मात की सस्या। ६ वरुण देवता। ७ सिंध भली सँझोखी सेल सिंदूरी छाए बादर ।-अविकादत्त प्रदेश। ८ मिंध प्रदेश का निवासी। अोठो का गीलापन । (शब्द०)। प्रोष्ठ की आर्द्रता। १० हाथी के सूड से निकला हुआ पानी । सिदूरी:-- २--सशास्त्री० [स० सिन्दूरी] १ धातकी । धव। २ रोचनी । ११ हाथी का मद । गजमद। १२ श्वेत टक्ण। खूब साफ हत्दी। लाल हल्दी। ३ मिदूरपुप्पी। ४ कबीला । ५ लाल सोहागा। १३ सिंदुवार का पौधा । निगुडी। १४ सपूर्ण जाति का एक राग। सिदोरा-मशा पु० [हिं० सिंघोरा] लकडी की एक डिविया जिममे विशेष--यह राग मालकोश का पुत्र माना जाता है। इसमे स्त्रियाँ सिंदूर रखती है। गाधार और निपाद दोनो स्वर कोमल लगते हैं। इसके गाने विशेप-यह सौभाग्य की मामत्री मानी जाती है। का समय दिन को १० दडसे १६ दड तक है। या भापा। वस्त्र।