पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२८६

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सिंहमुख सिहवाहिनी सिहमुख-सज्ञा पुं॰ [म०] १ शिव के एक गण का नाम । २ वह सिहलक'-वि० [म०] मिहल गंवधी। जिसका मुख सिंह के समान हो (को॰) । सिहलक-सम्रा पुं० १. पीतल । २ दारचीनी। ३ सिंहल द्वीप (को०)। सिहमुखो -सज्ञा स्त्री० [स०] १ वाँस। २ अडूसा। वामक। ३ वन सिहलद्वीप--मज्ञा पुं० [सं०] गिल नाम का टापू जो भारत के दक्षिण उरद । जगली उडद। ४ सारी मिट्टो। ५ कृष्ण निर्गु डी। मे है । विशेष द० 'निहत' । काला सँभालू। सिहल द्वीपी-वि० [म० मिहनीपिन्] १ मिहल द्वाप मे होनेवाला । सिहयाना, सिहरथा-सज्ञा स्त्री० [२०] (सिंह जिसका वाहन हो) २ सिंहलद्वीप का निवासी। उ०--कनक हाट मव कुहकुह दुर्गा। लोपी । बैठ महाजन मि. द्वीपी ।—जायसी (शब्द०)। सिहरव--सज्ञा पु० [स०] सिहनाद । सिह का गर्जन । सिहलस्थ-वि० [म०] [स्त्री० मिहलस्या] मिहत निवामी। सिहल--सज्ञा पु० [स०] १ एक द्वीप जो भारतवर्ष के दक्षिण मे है सिहलस्या--मशा ग्पी० [सं०] महतो । निहली पीपल । और जिसे लोग रामायणवाली लका अनुमान करते है । सिहलागृली-राग सी० [सं० मिहलाद नी] पिठवन । पृश्निपणी। विशेष-जान पडता है कि प्राचीन काल मे इस द्वीप में सिंह मिहला--ममा स्त्री० [सं०] १ मिहन द्वीप। नका । २ रांगा। ३ वहुत पाए जाते थे, इसी से यह नाम पडा । रामेश्वर के ठीक पीतल । ८ छान वाला। ५ दारचीनी। दक्षिण पडने के कारण लोग सिंहल को ही प्राचीन लका सिहलास्थान--सरा पुं० [म०] एक प्रकार का ताड जो दक्षिण में अनुमान करते है। पर सिंहलवासियो के बीच न तो यह नाम ' होता है। ही प्रसिद्ध है और न रावण की कथा हो । मिहल के दो इतिहास सिहली'-वि० [हि० निहल + ई (प्रत्य)] १ मिहल द्वीप का । २ पाली भाषा मे लिखे मिलते हैं - महावसो और दीपवसो, मिहन द्वीप का निवामी। जिनसे वहाँ किसी समय यक्षो की वस्ती होने का पता लगता है। विशेप-सिहली काले और भट्टे होते है। वे अधिकाश हीनयान रावण के सवध मे यह प्रसिद्ध है कि उसने लका से अपने भाई शाखा के बौद्ध हैं। पर बहुत से मिहली मुमलमान भी हो यक्षो को निकालकर राक्षसो का राज्य स्थापित किया था। बग देश के विजय नामक एक राजकुमार का सिंहल विजय करना सिहली-सला सी० १ मिहली पीपल । २ सिंहल की बोली या भी इतिहासो मे मिलता है । ऐतिहासिक काल में यह द्वीप भाषा (को०)। स्वर्णभूमि या स्वर्णद्वीप के नाम से प्रसिद्ध था, जहां दूर देशो के व्यापारी मोती और मसाले ग्रादि के लिये प्राते थे। प्राचीन सिहली पीपल-सग पी० [सं० सिंहपिप्पली] एक लता जिमके वीज अरव स्वर्ण द्वीप को 'सरनदीव' कहते थे। रत्नपरीक्षा के दवा के काम मे पाते हैं। ग्रथो मे सिंहल द्वीप मोती, मानिक और नीम के लिये प्रसिद्ध विशेप-यह मिहल द्वीप के पहाडो पर उत्पन्न होती है । इसका पाया जाता है। भारतवर्ष के कलिंग, ताम्रलिप्ति प्रादि प्राचीन रग और स सांप के समान होता है और बीज लये होते हैं । बदरगाहो से भारतवासियो के जहाज वरावर सिंहल, सुमात्रा, यह चरपरी गरम तथा कृमि रोग, कफ, श्वास और वात को जावा आदि द्वीपो की ओर जाते थे। गुप्तवशीय चद्रगुप्त पीडा को दूर करनेवाली कही गई है। (सन् ४०० ईसवी) के समय फाहियान नामक जो चीनी यानी सिहलील--ता पुं० [स०] १ सगीत मे एक ताल । २ कामशास्त्र भारतवप मे पाया था, वह हिंदुनो के ही जहाज पर सिंहल मे एक रतिवध। होता हुआ चीन को लौटा था। उस समय भी यह द्वीप स्वर्ण- सिहवन-सा पु० [स०] मिह का मुख। २ एक राक्षस का नाम । द्वीप या सिंहल ही कहलाता था, लका नही । इधर की २ एक नगर [को०)। कहानियो मे सिंहलद्वीप पद्मिनी स्त्रियो के लिये प्रसिद्ध है । यह सिह्वत्स-संश पुं० [स०] एक नाग का नाम [को०] । प्रवाद विशेपत गोरखपथी साधुग्रो मे प्रसिद्ध है जो सिंहल को एक प्रसिद्ध पीठ मानते है। उनमे कथा चली आती है कि सिहवदना--सा सी० [स०] १ अडूसा । २ मापपर्णो । वनउडदी। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्र नाथ (मछदरनाथ) सिद्ध होने के लिये ३ खारो मिट्टी। सिंहल गए, पर पद्मिनियो के जाल में फंस गए। जब गोरख सिहवल्लभा-सज्ञा सी० [स०] अडूसा । नाथ गए तव उनका उद्धार हुआ। वास्तव मे सिंहल के सिंहवाह -वि० [सं०] जो सिंह पर सवार हो । निवासी विलकुल काले और भद्दे होते है। वहाँ इस समय दो सिहवाहन--संज्ञा पुं॰ [स०] १ सिंह पर चढने या सवारी करनेवाला । जातियाँ वसती है-उत्तर की ओर तो तामिल जाति के लोग २ शिव का एक नाम [को०) । और दक्षिण की ओर आदिम सिंहली निवास करते हैं। सिहवाहना-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा देवी । २ सिंहल द्वीप का निवासी । ३ टीन । रग । राँगा (को०)। ४ सिहवाहिनी'-वि० सी० [स०] सिंह पर चटनेवाली। उ०-सकल एक धातु पीतल (को०)। ५. छाल । वल्कल (को०)। ६ पीपर । सिंगार करि सोहे अाजु सिंहोदरी सिंहासन बैठी सिंहवाहिनी पिप्पली (को०)। भवानी सी।-देव (शब्द०)। -