पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२९१

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सिखरी ६०११ सिजदागाह सिखरोषु-ज्ञा पु० [म० शिखरिन्] १ पहाट ।--अनेकार्थ०, पृ० सिगरापु+२-सज्ञा पुं० [स० सगुरु] सगुरा। दीक्षित । उ०--अरे ५३ । २, मयूर । मोर। हाँ रे पलटू निगरा सिगरा आहि कहो कोड रोगी भोगी।- पलटू०, पृ० ७६ । सिखलाना-क्रि० स० [हिं० मिखाना] दे० 'सिखाना' । सिखवन--सञ्ज्ञा पु० [स० शिक्षण, प्रा. सिक्खवण, सिक्खावण] शिक्षा । सिगरेट--संज्ञा पु० [अ०] तवाकू भरी हुई कागज की बत्ती जिसका सीख । उ०-जो सिखवन समरथ का लेहो। ता काल हमार धुआँ लोग पीत हैं। छोटा सिगार । आगे करि देहो।-कवीर सा०, पृ० ६२८ । सिगरो, सिगरोgf वि० [स० समग्र] दे० 'सिगरा' । उ०-(क) सिगगेई दूध पियो मेरे मोहन बलहिं न देपहु वाटी । सूरदास सिखवना@t-क्रि० स० [प्रा० सिक्खवण] दे० 'सिखाना' । नंद लेहु दोहनी दुहहु लाल को नाटी।—सूर (शब्द॰) । सिखा-सशा स्रो० [स० शिखा] दे० 'शिखा' । (ख) कुल मडन छत्रसाल बुंदेला । आपु गुरू सिगरो जग चेला। सिखाना-क्रि० स० [स० शिक्षण] १ शिक्षा देना। उपदेश देना । -लाल कवि (शब्द०)। बतलाना। २ अध्ययन करना। पढाना। ३ धमकाना। दड सिगा--सज्ञा स्त्री॰ [फा. सेहगाह] सगीत मे चौवीस शोभायो मे देना। ताडन करना। से एक । यौ.-सिखाना पढाना = चालें बताना । चालाकी सिखाना। जैसे,- सिगार-सज्ञा पु० [१०] चुरुट । उसने गवाहो को सिखा पढा कर खुव पक्का कर दिया है। सिगिनला-सज्ञा [अ० सिगनल] दे० 'सिकदरा', 'सिगनल' । उ०- सिखापन - सज्ञा पुं० [सं० शिक्षा + हिं• पन या सं० शिक्षापयन एक छोटा सा टुकडा बादल का भी सिगिनल सा भुका दिखाई १ शिक्षा । उपदेश । उ०—(क) साजि कै सिँगार ससिमुखी सिगोती - सज्ञा स्त्री० [देश] एक प्रकार की छोटी चिडिया । देता है। प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० १०। काज सजनी वै ल्याई केलि मदिर सिखापन निधान सी। -प्रतापनारायण (शब्द०)। (ख) सचिव सिखापन मधुर सिगोन-सज्ञा स्त्री॰ [स० सिगता, सिकता] नालो के पास पाई जाने- सुनायौ । जुहित सदहुँ परनाम सुहायौ । -- पद्माकर (शब्द॰) । वाली लाल रेत मिली मिट्टी। २ सिखाने का काम। सिचय-सज्ञा पु० [स०] १ कपडा। परिधान । पोशाक । वस्त्र । २ फटा पुराना कपडा । चीथडा (को०] । सिखावन-सज्ञा पु० [सं० शिक्षण या स० शिक्षापयन ] सीख । शिक्षा। उपदेश । उ०—(क) का मैं मरन सिखावन सिखी । प्रायो सिचान-सञ्ज्ञा पु० [म० सञ्चान] बाज पक्षी।-उ० निति ससी मरें मीच हति लिखी।-जायसी (शब्द०)। (ख) उनको मै हमी वचतु, मानौ इहि अनुमान । विरह अगनि लपटिन सके, यह दीन्ह सिखावन । थाहहु मध्यम काड सुहावन ।--विश्राम झपट न मीच सिचान । ---बिहारी (शब्द०)। (शब्द०)। सिचाना--क्रि० स० [स० सिञ्चन] सिँचाना। सिंचित कराना। उ०-नारि सहित मुनिपद सिर नावा । चरन सलिल सब भवन सिखावनाg -क्रि० स० [स० शिक्षापयन] दे० 'सिखाना' । सिचावा ।-मानस, २०६६ । सिखिर-सज्ञा पुं० [स० शिखर] १ दे० 'शिखर'। २ पारस- सिच्छक-सज्ञा पु० [स० शिक्षक] शिक्षा देनेवाला । गुरु । उ०- नाथ पहाड जो जैनो का तीर्थ है। आवत दूर दूर सो सिच्छक गुनो सिँगारी।-प्रेमघन०, भा० १, सिखो--संज्ञा पु० [स० शिखिन्। दे० 'शिखी' । उ०--(क) धुनि पृ० ३० । २ शास्ति करनेवाला । दड देनेवाला (को०) । सुनि उतै लिखी नाच, सिखी नाचे इते, पो कर पपीहा उत इते सिच्छन--सज्ञा पु० [स० शिक्षण] पढाना। अध्यापन । उ०- प्यारी सी करै।--प्रतापनारायण (शब्द॰) । (ख) सिखी बहुदर्शी बहुतै जानत नीको सिच्छन विधि । -प्रेमघन०, सिखर तनु धातु विराजति सुमन सुगध प्रवाल । -सूर भा० १, पृ०२० । (शब्द०)। सिच्छा-मज्ञा खी० [स० शिक्षा] दे० 'शिक्षा' । उ०--सैन वैन सब सिगता-सञ्ज्ञा खो० [स०] सिकता । बालू । रेत । साथ है मन मे सिच्छा भाव। तिल आपन शृगार रस सकल सिगनल-वज्ञा पुं० [अ०] १ दे० 'सिकदरा' । २ इशारा । सकेत । रमन को राव ।--मुबारक (शब्द०)। सिगर--सञ्चा पु० [अ० सिगर] बाल्यावस्था । वचपन । सिच्छित पु-वि० पु० [म० शिक्षित] दे० 'शिक्षित' । उ०-भारत यौर-सिगरसिन - छोटी उम्र का। सिगरसिनी = शिशुता । के भुज वल जग रक्षित । भारत विद्या लहि जग सिच्छित ।-- वचपन। छोटाई। भारतेदु ग्र०, भा० १, पृ० ४६१ । सिगरा@-वि० [स० समग्र] [वि० बी० सिगरी] सव । सपूर्ण । सिजदा-सञ्ज्ञा पु० [अ० सिज्दह] प्रणाम । दडवत । माथा टेकना । सारा । उ०-(क) त्यो पदमाकर साँझही ते सिगरी निशि सिर झुकाना। (मुसल०)। उ०-सिजदा सिरजनहार को केलि कला परगासी ।-पद्माकर (शब्द०)। (ख) सिगरे मुरशिद को ताजीम । -सुदर० ग्र०, भा० १, पृ० २८६ । जग मांझ हंसावत हैं। रघुवसिन्ह पाप नसावत है। -केशव सिजदागाह-सज्ञा पुं० [अ० सिजदा + फा• गाह] पूजा का स्थल। (शब्द०)। प्राथनागृह।