पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सिरपांव ६०३१ मिराह (गटवाल) बताती है। उ०--पुनि मिग्नेतन्ह देग निधारा । --घनानद, पृ०४४ । २ मिरवाज। निगेमगि। प्रधान कीन्हो व्याह, उछाह अपाग।-रपुराज (शब्द॰) । या श्रेष्ठ व्यक्ति । उ०--पहल गलौने गम नयन ललिा जाम मिरपावा-सा पुं० [हिं० मिर + पाव] दे॰ 'मिगेपाव' । जमे गुने तगई ग्रामि मार है ।-तुननी (मद०)। सिरपाउ@-मज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'मिरोपाव'। उ०-मिग्पाउ सिरह --मज्ञा पुं० [सं० मिन्ह दे० 'जिगर' । ३०--निग्नि भाउ नप्पे सरस्स। को गर्न द्रव्य भटार अस्म । - पृ० निररह वय चिन पिन नुमन जूष, मनि जुन मितु फनि अनीक सगि नमीप बाई 1-नसी (गदर)। रा०,४११२। सिरवा -ज्ञा पु० [हिं० मिन] वह कपका जिगो गतिमान में अनाज सिरपाव-सज्ञा पु० [हिं० मिन+पांव] दे० 'मिरोपाय' । उ०- वरमाने के समय हना करते है। योगाने में हमा करने का कीरतसिंह भी घोटे और मिपाव पाकर अपने बाप के नाय कपडा। रुखसत हुग्रा।--देवीप्रसाद (शब्द०)। मुहा०-मिरवा माला= भूमा उठाने के लिये पपरे ग्रादि मे सिरपंच, सिरपेच-सश पुं० [फा० सर + पेच] १ पगडी। २ पगडी हवा करना। के ऊपर का छोटा कपडा। ३ पगडी पर बाँधने का एक सिरवार'--मज्ञा पुं० [म० शैवान] ३० 'निवार' । याभूपण । उ०-कलगी, तुर्ग और जग मिरपेच सुकुडल । सिरवार+र--सज्ञा पुं० [हिं० मीर+कार] जमीदार का वह कारिंदा -स्दन (शब्द॰) । जो उसकी रोती का प्रब करता है। सिरपंच-सज्ञा पु० [हिं० सिरपेच] दे० 'सिरपेच'। उ०-दीठि सिरस--पग पुं० [मे० गिरीप] शीपम पी तरह का तवा एक प्रकार गई मिरपंच पै फिर हारी मैं ऐच । जो उरभी मुरझी न का ऊँचा पेट। फिर परी पैचि के पैच |--म० सप्नक, पृ० ३७६ । विशेप--उसका वृक्ष बडा नितु अनिरन्थायी होता है। इसकी सिरपोश--मज्ञा पुं० [फा० सरणेश] १ मिर पर का प्रावरण । टोप । छान भूपन लिए हा पाको रग की होनी 7। जाडी सफेद कुलाह । २. बदूक के ऊपर का कपडा । (लश्करी)। या पीले रंग की होती है, जो टिकाऊ नहीं होती। हीर की सिरफूल-सहा पुं० [हिं० सिर + फूल] सिर पर पहना जानेवाला लकडी कालापन लिए भरी होती है। पत्तियां इमली के स्त्रियो का फूल की प्राकृति का एक आभूपण। उ०—(क) पत्तियो के समान परतु उनने लवी चौड़ी होती है। मैन वैशाय छतियां पर लोल लुरै अलक सिरफूल अरुझि सो यो दुति दे । मे यह वृक्ष फूलता फलता है। उनके फन मफेद, सुगधित, --मन्नालाल (शब्द०)। (ख) वेनी चुनी चमक किरन अत्यत कोमल तथा मनोहर होते है। कनियो ने उनसे फल की सिरफूल लख्यो रवि तूल अनूपमै । --मन्नालाल (शब्द०)। कोमनता का वर्णन किया है। इनके वृक्ष से बल सिरफेटा-सा पु० [हिं० सिर+प्टा] साफा। पगडी। मुरेठा । गोद निकलता है। गकी छाल, पत्ते, फन मी वीज ग्रौपध के उ०-पीरो झग पटुका विन छोर छरी कर लाल जरी वाम में आते हैं। उनके तीन भेद होते है। काला, पीला सिरफेंटा।--मनालाल (शब्द०)। और लाल । आयुर्वेद के अनुसार यह नगपग, शीतल, मधुर, सिरवद--सज्ञा पुं० [हिं० सिर+फा० नद] साफा । कडवा, यसला, हलका तथा वात, पित्त, नफ. मजन, विगपं, खांसी, घाव, विपविकार, मधिरविकार, यो गुजली, बारी, सिरवंदी-मशा सी० [हिं० सिर + फा० वेदी] माथे पर पहनने का पनीने और त्वचा के रोगो को हरण बग्नेवाला है। यूनानी स्त्रियो का एक आभूपण। मतानुगार यह ठटा और म्या है। ३०--(क) बाम विधि सिरवदी--सग पुं० [हिं० मिर + वद] रेशम के कोटे का एक गेद । मेगे नुन मिग्न नुगन तान धुरी र जिम ले टे। सिरवोझी-सशा पुं० [हिं० गिर + वोझ] एक प्रकार के पतने वाम ---तुननी (शब्द०)। (च) फूलो के पामनारण है, जो पाटन के काम में आते है। यह मय पहले पाते है। मिस फूल ने नी मदतर, हम उनके सिरपच्चना--सज्ञा पुं० [हिं० सिर+पनाना] मिर पाना। मिर बाहु बताते है । महावीन्प्रगाद (गया)। मिरमा--मा ५० [40 शिरीष २० 'पिग्म'। सिरमगजन-ग ० [हि० सिर+अ० मग्न] माया खोटी । माथा सिरमी-गरी [२०] प्रार। पच्ची । २ सिर सपाना । उ०--चेनारे वृद्र प्रादमी को नुवह सिरहाना- पुं० [म० निम्म् + प्राधान] पापा में गिर की मे शाम तक मिग्मगजन करते गुजरता था।--ग्गभूमि, भा० पोर का भाग। पाटना गि। मारी। उ०-टीट २, पृ० ६१९। लटकै मिन्हाने पैलियो मुम्वेद या पानी (गन्द॰) । मिरमनिपुर-मग पुं० [हिं० गिर + मणि] २० शिरोमणि । पिरा-गर पुं० [१० बि] 71 कि] । सिरमा-० [रिं०] १ जिमाल मिर गया हो। २ निग। मिराचा-० [१०] r- प्रगः 7 पाना यागनिन निगोला। वियो गीगानी। पुरनियां पौर मोटे याने। मिरमौर-मा पु० [हिं० मिमी] १ मिराट। उ०---- मिराह - [म० नोन र प्रायन, मीरट, मियन] या तीर रादा गुलि पेलत राधारमा रनिक निरमौर । तीतलना। छह या छाया ने जीप है। ३०--"हो न के गमान मगजन।