पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३१२

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सिरा ६०३२ सिरी काम कछू काहू सो पालत प्रान रावरी आंह। आनंदघन सिरामोक्ष-सज्ञा पुं॰ [म०] फमद सूतवाना। शरीर का दूपित रक्त दुखताप मेटिय कीजै कृपा सिरांह।-घनानद, पृ० ५०६ । निकलवाना। सिरा-मज्ञा पु० [हिं० सिर] १ लबाई का अत । लवाई के दो सिरायत-मशा री० [अ०] जज्ज होना । प्रवेश करना । घुसना [को०] । छोरो मे से कोई एक। छोर। टोक। जैसे,--एक सिरे से सिरायना--क्रि० स० [हिं० मिराना] > 'निगना' । दूसरे सिरे तक। २ ऊपर का भाग। शीर्ष भाग। ३ अतिम सिरार-सज्ञा स्त्री० [हिं० मिरा] वह लकटी जो पाई के सिरे पर भाग। आखिरी हिस्सा। ४ प्रारम का भाग । शुरू का लगाई जाती है। (जुलाहे)। हिस्मा। जैसे,—(क) सिरे से कहो, मैने मुना नही। (ख) सिराल'-वि० [स०] जिनमे बहुन नो या रेणे हो । अब वह काम नए मिरे से करना पडेगा । (ग) मिरे से ग्रासीर सिराल:--ससा पु० कमाल। ३० "मिराना' को०] । तक । ५ नोक । अनी । ६ अगभाग । अगला हिम्मा। सिरालक--सा पुं० [म०] एक प्रकार का अगूर। मुहा०-सिरे का = अव्वन दरजे का। पल्ले मिरे का। सिरे मिराला-मशा रसी० [म०] १ र पकार का पौधा। कमरख का का रग= सवसे प्रधान रग । जेठा रग । (अँगरेज)। फन । कर्मरग फन। सिरा-सशा स्त्री० [म०] १ रक्तनाडी। २ सिंचाई की नाली। ३ सिराली--मरा सी० [हिं० मिर] मयू गिजा । मोर की कलगी। खेत की सिंचाई। ४ पानी की पतली धारा। ५ गगरा । सिरालु-वि० [सं०] पहुन शिगोवाला । सिराल [को०] । कलसा। टोल। सिरावन'--नग पु० [म० नीर ( = हल] जुना हुआ खेत वरापर सिराज-सज्ञा पुं० [अ०] १ सूर्य । २ दीपक । दिया [को०] । करने का पाटा । हेगा। सिराजाल-मज्ञा पु० [म०] १ नेव का एक रोग। शिराजाल । सिरावन - वि० [हि० मिगना] १ जीनल करनेवाला। मिाने- २ छोटी रक्तनाडियो का मम्ह । नाडीजाल किो०] । वाला । २ मताप या कष्ट दूर करनेवाला। सिराजी-सञ्ज्ञा पुं० [फा० शीराज (नगर)] शीराज का घोडा । सिरावना-त्रि० स० [हिं० मिगना] दे० 'मिराना'। उ०- उल-अवलक अरवी लखी सिराजी। चौधर चाल समंद भल जोड जोइ भावे मेरे प्यारे । मोई मोइ देहा जुग्दुला । कहयौ ताजी।-जायसी (शब्द०)। है मिरावन नीग। कछु हट न करी वलवीरा।-सूर सिरात-सज्ञा स्त्री० [अ०] १ रास्ता। सीधा मार्ग। २ नर्क के (शब्द०)। आरपार वाल से भी पतला और तलवार की वार से भी तेज सिरावृत्त–ता पुं० [म०] मीना नामक धातु । पुल। सिरावेध, पिरावेधन-मश पु० [स०] २० 'सिरामोन' [को०] । विशेप-हदीस के अनसार इस पुल पर से सभी को कयामत के दिन गुजरना होगा। धर्मात्मा इसपर से पार हो जायेंगे और मिराव्यध, मिरा यवन-नन पुं० [म०] दे० 'सिरामोक्ष' यो०] । पापी कट मर जायेंगे। सिराहर्प - म पुं० [स.] १ पुलक। रोमाच । २ आँस के डोरो की लाली। सिराना-क्रि० अ० [हिं० सीरा+ ना] १ ठडा होना । शीतल होना । २ मद पडना । हतोत्साह होना। उमग न रह जाना । सिरिखg---संज्ञा पु० [म० गिरीप] दे॰ 'सिरम'। हार जाना। उ०--वज्रायुध जल वरपि सिराने। परयो सिरिन--मजा पु० [देश ] रायरीप वृक्ष । लान मिरन । चरन नब प्रभु करि जाने ।-सूर (शब्द०)। 3 ममाप्त सिरियारी-सज्ञा सी० [स० सिरियारी] मुचिपक शाक । सुसना का होना। खतम होना। ग्रत को पहुँचना । जैसे,--काम साग । हाथी गुडी। सिराना। ४ शात होना । मिटना। दूर होना । उ०--- सिरिश्ता--नशा पु० [फा० मरिश्तह ] विभाग । मुहकमा अब रघुनाथ मिलाऊँ तुमको मुदरि मोा सिराइ । —सूर सिरिश्तेदार--संज्ञा पुं० [फा०] अदालत का वह कमचारी जो मुकदमो (शब्द) । ५ व्यतीत होना। बीत जाना। गुजर जाना। के कागजपत्र रखता हे। उ०-वेई चिरजीवी अमर निधरक फिरी कहाइ । छिन बिछुरे सिरिश्तेदारो-सज्ञा मी० [फा०] मरिश्तेदार का काम या पद । जिनके न इहि पावम प्रायु सिराइ ।--विहारी (शब्द०)। सिरिम-मज्ञा पु० [म० गिरीप, प्रा० मिरिन] २० मिरम'। उ०- ६ काम मे छुट्टी मिलना । फुरसत वा अवकाश मिलना । विधि केहि भांति वरी उर धीरा। मिरिन सुमन कन वेधिय सिराना-क्रि० स०१ ठढा करना । शीरन करना । २ जल मे डुबा हीरा ।--मानम, १२५८ । कर शीतल करना । जैसे, मौर मिराना। ३ समाप्त करना सिरो' सञ्चा सी० [म०] १ करपा । २ कलिहारी। लागली। खतम करना। ४ व्यतीत करना । विताना । सिरोल--मज्ञा दी० [म० थी] १ लदमी। २ शोभा । काति । सिरापत्र--सशा पुं० [म०] १ अश्वत्थ वृक्ष ! पीपल का वृक्ष । २ एक ३ रोली। रोचना । उ.--(क) धधकी है गुलाल की धूधुर प्रकार की खजूर । मे धरि गोरी लला मुख मीडि सिरी।--शभु (शब्द०)। सिराप्रहर्प-सज्ञा पु० [म०] ३० "सिराहपं । (स) सोन स्प मल भएउ पसारा। धवल सिरी पोतहिं घर सिरामूल-सशा पु० [स०] नाभि । वारा। जायसी (शब्द०)।