पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३१५

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। सिलारस ६०३५ सिल्ली सिलारस --मज्ञा पुं० [म० शिलारस] १ सिल्हक वृक्ष । २ सिल्हक सिलीसुख-संज्ञा पुं० [स० शिलीमुख] दे० 'शिलीमुख' । उ०- वृक्ष का निर्यास या गोद जो बहुत सुगधित होता है । रावन सिर सरोज बन चारी। चलि रघुवीर सिलीमुख धारी। विशेष-यह पेड एशियाई कोचक के दक्खिन के जगलो मे बहुत -मानस, ६६१। होता है। इसका निर्यास "सिलारस' के नाम से विकता है सिलेक्ट कमिटी-तज्ञा स्त्री॰ [१०] वह कमिटी जिसमे कुछ चुने हुए और प्रौपच के काम में आता है। मेवर या सदस्य होते है और जो किसी महत्व के विषय पर विचार कर अपना निणय साधारण सभा मे उपस्थित सिलावट--सज्ञा पु० [स० शिला + पटु] पत्थर काटने और गढनेवाले । करती है। सगतराश। उ०-अली मरदान खाँ को लिखा कि खाती वेलदार और सिलावट भेजकर रस्ता चौडा करे। -देवी सिलेटा--सज्ञा स्त्री० [अ० स्लेट] दे० 'स्लेट' । प्रसाद (शब्द०)। सिलोधा-सश, स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की वडी मछली जो भारत सिलासार-सञ्ज्ञा पुं० [सं० शिलासार] लोहा । और वर्मा की नदियो मे पाई जाती है। यह छह फट तक सिलाह-सशा पु० [अ०] १ जिरह वकतर । कवच । उ०--जाली लबी होती है। की प्रॉगी कसो यो उरोजनि मानो सिपाहो सिलाह किए हूँ । सिलोच्च-मज्ञा ० [सं० शिलोच्च] एक पर्वत जो गगा तट पर -मन्नालाल (शब्द०) । २ अस्त्र शस्त्र । हथियार । विश्वामित्र के सिद्धाश्रम से मिथिला जाते समय राम को मार्ग सिलाहखाना-सज्ञा पुं० [अ० सिलाह + फा० खानह,] हथियार मे मिला था। उ०—यह हिमवत सिलोच्च नामा। शृग गग रखने का स्थान । शस्त्रालय । अस्त्रागार। तट अति अभिरामा ।-रघुराज (शब्द०)। सिलाहपोश, सिलाहवद-वि० [अ० सिलाह + फा० बद] सशस्त्र । सिलीग्रा-मज्ञा पु० [देश॰] सन के मोटे रेशे जिनसे टोकरी बनाई हथियारवद । शस्त्रो से सुसज्जित । जाती है। सिलाहर-नशा पु० [स० शिल + हर] १ खेत मे से एक एक दाना सिलौट, सिलौटा-सशा पु० [हिं० सिल+ वट्टा] १. सिल । २ सिल अन्न बीनकर निर्वाह करनेवाला मनुष्य । सिला बीननेवाला । तथा वट्टा। सिलहार । २ अकिंचन । दरिद्र । सिलौटी-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० सिल + प्रौटा (प्रत्य॰)] भॉग, मसाला आदि पीसने की छोटी सिल । सिलाहसाज-सज्ञा पुं० [अ० सिलाह + फा० साज] हथियार बनानेवाला। सिल्क--सञ्ज्ञा पु० [अ०] १ रेशम । २ रेशमी कपडा । सिलाही-सञ्ज्ञा पुं० [अ० सिलाह + ई (प्रत्य॰)] शस्त्र धारण करने- वाला । सैनिक । सिपाही । सिल्प-सज्ञा पु० [स० शिल्प] दे० 'शिल्प' । सिलिंगिया-तज्ञा स्त्री० [हिं० शिलाग+ इया (प्रत्य॰)] पूरवी हिमा- सिल्ल-सञ्ज्ञा पु० [अ०] दे॰ 'सिल' । लय के शिलाग प्रदेश मे पाई जानेवालो एक प्रकार की भेड । सिल्लकी-सज्ञा सी० [स०] शल्लको वृक्ष । सलई का पेड । सिलि-सच्या स्त्री० [हिं० सिल या सिल्लो] शिला। पत्थर की सिल्ला - सशा पु० [स० शिल] १. अनाज की बालियाँ या दाने जो पटिया। उ०-सुख के माथे सिलि पर, (जो) नाम हृदय स फसल कट जाने पर खेत मे पडे रह जाते हैं और जिन्हे चुनकर जाय । बलिहारी वा दुख की पल पल नाम रटाय।-कवीर कुछ लोग निर्वाह करते है। सा० स०, पृ०५ मुहा०--सिल्ला बीनना या चुनना = खेत मे गिरे अनाज के दाने सिलिप-सज्ञा पु० [स० शिल्प] दे० 'शिल्प' । उ०-खेतो, वनि चुनना। उ०—कविरा खेती उन लई, सिल्ला विनत मजूर विद्या, बनिज, सेवा, सिलिप सुकाज । तुलसी सुरतरु, धेनु, (शब्द०)। २ खलियान मे गिरा हुमा अनाज का दाना । महि, अभिमत भोग विलास । -तुलसो (शब्द०) । ३ खलियान मे बरसाने के स्थान पर लगा हुआ भूसे का ढेर सिलिप-सज्ञा स्त्री० [० स्लिप] कागज का छोटा टुकडा जिसपर जिसमे कुछ दाने भी चले जाते है । सिल्ली' -सज्ञा क्षी० [स० शिला] १ पत्थर का सात आठ अगुल कोई सक्षिप्त बात टॉकी जाय या लिखकर कहो भेजो जाय । लवा छोटा टुकडा जिसपर घिसकर नाई उस्तरे की धार सिलिपर-स्त्री० पु० [अ० स्लीपर] दे० 'सिलीपर'। तेज करते है। हथियार को धार चोखो करने का पत्थर । सिलिया-सच्चा स्त्री० [सं० शिला] एक प्रकार का पत्थर जो मकान सान । २ आरे से चारकर पेडी से निकाला हुआ तख्ता । बनाने के काम में आता है। फलक । पटरी। ३. पत्थर को छोटो पतलो पटिया। ४ नदी सिलियार, सिलियारा-सञ्ज्ञा पु० [स० शिल + हार या हारक] दे० मे वह स्थान जहाँ पानी कम और धारा बहुत तेज होती 'सिलाहर'। है । (माझी)। सिलिसिलिक-पज्ञा पुं॰ [सं०] गोद । लासा । सिल्ली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० सिल्ला] फटकने के लिये लगाया हुआ सिलीध्र--मज्ञा पुं० [स० शिलोन्ध्र दे० 'शिलोध्र' । अनाज का ढेर। सिलीपर-सबा पु० [अ० स्लीपर] १ लकड़ी की वह घरन जिनके सिल्ली'--सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का जलपक्षी जिसका शिकार ऊपर रेल की पटरी बिछाई जाती है। २ दे० 'स्लीपर' । किया जाता है।