पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३२७

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६०४७ किया हुआ। मर्यादा। सीम सीमिक दवाना । उ०-सीम कि चापि मकै कोड तासू । वड रखवार विणेष-प्राचीन काल मे विजयादशमी को क्षत्रिय राजा अपने रमापति जासू।-मानस, १११६ । राज्य की सीमा लाँघते थे। सीम-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ धन दौलत । २ रजत । चाँदी किो॰] । सीमाधिप - सज्ञा पुं० [सं०] १ पडोसी राजा। सीमा प्रदेश का रक्षक यौ०-सीमकश । फजूलखर्च । अपव्ययी । सीमतन = सुदर । या अधिकारी [को०)। गीर। सीमानिश्चय-सज्ञा पुं० [म.] सीमारेखा या हदबदी के सबध मे सीमक-सज्ञा पुं० [स०] सीमा । हद [को०] । विविसमत निर्णय किो०] । सीमल-सज्ञा पुं० [स० शाल्मलि] दे० 'सेमल'। सीमापहारी--वि॰ [स० सीमापहारिन्] सीमा के प्रदेश पर अधिकार सीमलिंग-सज्ञा पु० [न० सीमलिडग] सीमा का चिह्न । हद करनेवाला । सीमा के चिह्न मिटानेवाला । का निशान । सीमापाल-सञ्ज्ञा पु० [स०] सीमा की रखवाली करनेवाला। सीमा- सीमात-एज्ञा पु० [स० सीमान्त] १ सीमा का अत । वह स्थान जहाँ रक्षक। सीमा का अत होता हो। जहाँ तक हद पहुँचती हो। सीमाबध--सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सीमातवध' (को० । सरहद । २ गांव की सीमा। ३ गाँव के अतर्गत दूर की सीमाव--सज्ञा पु० [फा०] पारा । जमीन । सिवाना। सीमाबद्ध--सज्ञा पु० [म०] रेखा से घिरा हुआ। हद के भीतर सीमातपूजन-सज्ञा पु० [स० सीमान्तपूजन] १ वर का पूजन या अगवानी जब वह वारात के साथ गांव की सीमा के भीतर सीमाबियत-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] पारद की तरह चचल होना । अस्थिरता । पहुँचता है । २ ग्राम की सीमा का पूजन (को०)। चचलता [को०)। सीमातप्रदेश-सज्ञा पु० [स० सीमान्तप्रदेश] १ सीमात या सरहद पर सीमाबी-वि० [फा०] पारे का । पारे से सबधित [को०] । स्थित भूभाग । २ दो देशो के बीच का प्रदेश किो०) । सीमातबध-सज्ञा पुं० [म० सीमान्तवन्ध] आचरण का नियम या सीमावरोध- सज्ञा पु० [स०] कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार सीमा स्थिर होना । हदवदी। सीमालिंग-सज्ञा पु० [स० सीमालिङ्ग] दे० 'सीमलिंग' [को०] । सीमातर-सज्ञा पुं० [स० सीमान्तर] गाँवो की सीमा [को०] । सीमावाद-सञ्ज्ञा पु० [स०] दे० 'सीमाविवाद' [को॰] । सीमातलेखा-सज्ञा स्त्री० [स० सीमान्तलेखा] आखिरी किनारा । अतिम छोर [को॰] । सीमाविनिर्णय-सज्ञा पु० [स०] सीमा सबधी झगडो का निपटारा [को०। सीमाविवाद--सज्ञा पुं० [म.] सीमा सबधी विवाद । सरहद का सीमा-मज्ञा की० [म० सीमन्] दे० 'सीमा' २। झगडा। अठारह प्रकार के व्यवहारो मे या मुकदमो मे सीमा'-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ माँग। २ किसी प्रदेश या वस्तु के मे एक। विस्तार का अतिम स्थान । हद । सरहद । मर्यादा । विशेष--स्मृतियो मे लिखा है कि यदि दो गाँवो मे सीमा सबधी आचरण व्यवहार आदि की शिष्टता । मर्यादा। भगडा हो, तो राजा को सीमा निर्देश करके झगडा मिटा डालना मुहा०-सीमा के बाहर जाना = उचित से अधिक बढ जाना। चाहिए । इस काम के लिये जेठ का महीना श्रेष्ठ बताया गया है। मर्यादा का उल्लघन करना । हद से ज्यादा बढना । सीमास्थल पर बड, पीपल, साल, पलास आदि बहुत दिन टिकने- ४ खेत, गाँव आदि की सीमा पर का वाँध या मेड (को०)। ५ वाले पेड लगाने चाहिए। साथ ही तालाब, कुना वनवा देना चिह्न। निशान (को०)। ६. किनारा । तीर । समुद्रतट (को०)। चाहिए, क्योकि ये सव चिह्न शीघ्र मिटनेवाले नही है। ७ क्षितिज (को०)। ८ उच्चतम या अधिकतम सीमा (को०) । यौ०-सीमाविवाद धर्म = सीमाविवाद सवधी नियम या कानून । ६ खेत (को०)। १० ग्रीवा के पृष्ठ भाग मे खोपडी आदि सीमावृक्ष-सञ्ज्ञा पु० [स०] वह वृक्ष जो सीमा पर हो। हद वताने- का जोड (को०) । ११ अडकोप (को०) । १२ एक आभूषण । वाला पेड। सीमाकर्पक-संज्ञा पु० [सं०] पाराशर स्मृति के अनुसार ग्राम की विशेप--मनुसहिता मे सीमा स्थान पर बहुत दिन टिकनेवाले पेड सीमा पर हल जोतने या खेती करनेवाला। लगाने का विधान है। बहुवा सीमाविवाद सीमा पर का वृक्ष देखकर मिटाया जाता था। सीमाकृपाण--वि० [सं०] मिवान की खेती करनेवाला। दे० 'सीमाकर्पक'। सीमासधि-सा खी० [स० सीमासन्धि] दो सोमायो का एक जगह मिलान । वह स्थान जहाँ सीमाएँ मिलती हैं । सीमागिरि-सज्ञा मं० [म०] सीमा पर स्थित पर्वत (को०) । सीमासेतु-सज्ञा पुं॰ [स०] वह पुश्ता, वाँध या मेड जो सीमा का निर्देश सीमाज्ञान-सशा पुं० [म० सीमा + अज्ञान] सीमा के बारे मे ज्ञान करता है। हदवदी। सीमिक-सज्ञा पुं० [स०J१ एक प्रकार का वृक्ष । २. दीमक। एक सीमातिक्रमणोत्सव- सशा पु० [म०] युद्धयाना मे सीमा पार करने प्रकार का छोटा कीडा । ३ दीमको का लगाया हुआ मिट्टी का उत्सव । विजययात्रा। विजयोत्सव । का ढेर । m का अभाव ।