पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३४१

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वाला मत। सुख ख सुखेसलिल सुखमुख -सज्ञा पु० [स०] यक्षं । सुखवा -सज्ञा [म० सुख सुख । अानंद । मौद । उ० सुखवा सकल सुखमूल--वि० [स०] सुखराशि । उ०--सुखमूल दूलह देखि दपति बलविरवा के घर, दुख नैहर गवन नाहि देत। -रा० कृ० पुलक तन हुलस्यो हियो।—मानस, १।३२४ । वर्मा (शब्द०)। सुखमोद-तशा पु० [स०] लाल सहिजन । शोभाजन वृक्ष । सुखवाद संज्ञा पुं० [स०] भौतिक सुख को ही सर्वोपरि मानने- सुखमोदा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] शल्लकी का वृक्ष । सलई । सुखयता--वि० [सं० मुखयित] सुख देनेवाला । हर्पप्रद [को०] । मुखवादो--वि", पज्ञा पुं० [स० सुख + वादिन्] : वह) जो इद्रियसुख को ही सब कुछ समझता या मानता हो। (वह) जो भोग सुखरात्रि-तज्ञा श्री० [स०] १ दिवाली की रात । कार्तिक महीने की विलास आदि को ही जीवन का मुख्य उद्देश्य समझता हो। अमावस्या की रात । २ सुहागरात (को०)। ३ लक्ष्मी (को०] । बिलामी। सुखरात्रिका--सज्ञा स्त्री० [स०] लक्ष्मी [को०] । सुखवान्-वि० [स० सुखवत्] सुखी। सुखराशि--वि० [म०] जो सुन की पुजीकृत राशि हो। जो सर्वथा सखबार-वि० [म० मुख + हिं० वार (प्रत्य )] [वि॰ स्त्री० सुखवारी] सुखमय हो। सुखी । प्रसन्न। खुश । उ०-जहाँ दीन, घरहीन परी ठिठुरत सुखरास @--वि० [म० सुख + राशि] जो मर्वया सुखमय हो । जो सुख बहु नारी। रही कदाचित कबहुँ गाम मे सो सुखवारी। रोय की राशि हो । उ०--मदिर के द्वार रूप सु दर निहारो करै लग्यो चुकी ५ निरदोपिन की सुनि सुनि ख्वारी ।-श्रीधर पाठक शीत गात सकलात दई दास है। सोचे सग जाइवे की रीति (शब्द०)। को प्रमान बहै वैसे सब जानो माधवदास सुखरास है।-- भक्तमाल (शब्द०)। सुखवास--सज्ञा पुं० [स०] १ तरबूज । शीर्णवृ त । २ वह स्थान जहाँ का निवास सुखकर हो । प्रानद का स्थान । सुख की जगह । सुखरासी-वि० [स० सुख + राशि] दे० सुखरास' । उ०-पूरन काम सुखविहार-वि० [स०] सुखपूर्वक विहार करनेवाला । आनद की राम सुखरासो ।—मानस, ३।२४ । जिंदगी बसर करनेवाला। सखरूप-वि० [स०] मनोहर रूप, प्राकृतिवाला [को०] । सुखवेदन--सज्ञा पु० [स०] सुखानुभव । अानदानुभूति (को०] । मुखलक्ष्य-वि० [स०] आसानी से लक्षित होनेवाला । सुख से पहचान सुखशयन-सज्ञा सं० [पु०] सुखपूवक सोना। मे आनेवाला [को० । सखशयित-वि० [स०] जो सुख या आराम से सोया हो। सुखलभ्य-वि० [स०] जो सुखपूर्वक लभ्य हो। सुलभ । सुखशय्या--सज्ञा खो० [स०] १ सुख की नीद । २ सुखदायक शय्या। सुखलिप्सा - सज्ञा ली० [सं०] सुख की लालसा। सुखाकाक्षा । सुखशाति-मज्ञा स्त्री॰ [स० सुखशान्ति] अमन चैन । सुखलाना- क्रि० स० [हिं० सूखना का प्रे० रूप] दे॰ 'सुखाना' । सुखशायी-वि० [स० सुखशायिन्] सुखपूर्वक सोया हुआ। जो सुखवत - वि० [सं० सुखवत्] १ सुखी। प्रसन्न । खुश । २ सुखदायक । आराम से सोया हो। अानद देनेवाला। उ०-इसके कुद कली से दत । वचन तोतले सुखश्रव, सुखश्राव्य-वि० [स०] कानो को मधुर लगनेवाला। श्रुति- है सुखवत।-सगीत शा० (शब्द०)। मधुर । सुरीला [को०)। सखवत् - वि० [सं०] सुखयुक्त । सुखी । प्रसन्न । सुखश्रति-वि० [स०] दे॰ 'सुखश्रव' । सृखवती- वि० स्त्री० [सं०] सुख से युक्त । सुखी (स्त्री)। सुखमग सज्ञा पु० [सं० सुखसङग] सुख के प्रति आसक्ति । सुखवत्ता - संज्ञा स्त्री॰ [स०] सुख का भाव या धर्म । सुख । प्रानद । सुखसगी--वि० [स० सुखसङ्गिन्] सुख का साथी। सुख के समय साथ देने या रहनेवाला [को०] । सुखवना-सज्ञा पुं० [हिं० सूखना] वह फसल जो सूखने के लिये धूप सुखसह्या -सज्ञा स्त्री॰ [म० सुखसन्दूह्या] वह गाय जो सुख से दूही मे डाली जाती है। २ वह कमो जो किसी चीज मे उसके 'जाय। जिस गाय को दूहने मे किसी प्रकार की कठिनाई न हो। सूखने के कारण होती है। मुसवन'- सज्ञा पु० [हिं० सूखना| वह वालू जिसे लिखे हुए अक्षरो सुखसदोह-सज्ञा पुं० [स०] सुख की राशि । सुख का मूल। 50- मुखसदोह मोहपर ग्यान गिरा गोतीत ।-राम०, पृ० ११६ । आदि पर डालकर उनकी स्याही सुखाते है। उ०-किलक सुखसदोह्या-सज्ञा स्त्री॰ [म० सुखसन्दोह्या] दे॰ 'सुखसदूह्या' । ऊब ह जाइ मसी हू होत सुधा सी। खाजा के परतन की सी सुखसपद, सुखमपत्ति--सञ्शा स्त्री० [स० सुखसम्पद, सुखसम्पत्ति छवि पत्न प्रकासी। सुखवन की बारहू तहाँ चीनी सी ढरकी। मुख और धन दौलत। सुकवि कर किमि कविता मधुरे वधू अपर की।-अविका- सुखसयोग - सज्ञा पुं॰ [१०] लोकोत्तर अानद की प्राप्ति [को॰] । सुखसलिल -सज्ञा पुं॰ [स०] उष्ण जल । गरम पानी । सुखवर्चक-~-सञ्ज्ञा पु० [म०] सज्जी मिट्टी । सर्जिका क्षार । विशेष-पानी गरम करने से उसमे कोई दोप नहीं रह जाता। सुखवर्चस-सा पु० [सं०] सज्जी मिट्टी। वैद्यक मे ऐसा जल बहुत उपकारी बताया गया है, और इसी सुखवह--वि० [स०] जो सुखपूर्वक या आसानी से वहन किया जाय। लिये इसे 'सुखसिलल' कहा गया है। - दत्त (शब्द०)।