पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३४८

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सुर्घट किया हुमा। ६०६८ सुचरित सुघट--वि० [सं०] १ अच्छा बना हुआ। सुंदर । सुडौल । उ०--- प्रसाद (शब्द॰) । (ख) सुघ राई सुकाम विरचि की है, निय भृकुटि भ्रमर चचल कपोल मृदु बोल अमृतसम सुघट । ग्रीव रस तेरे नितवनि की छवि मे।-सुदरीमर्वस्व (शब्द०)। २ सीव कठ मुकता विघटत तम ।-हनुमन्नाटक (शब्द०)। २ सपूर्ण जाति की एक रागिनी जिमके गाने का समय दिन मे जो सहज मे हो या बन सकता हो। १० से १६ दड तक है। सुघटित--वि० [स० सुघट + इत] जिसका निर्माण सुदर हो। अच्छी सुघराई कान्हडा-सशा पुं० [हिं० मुघराई + कान्हटा] सपूर्ण जाति तरह से बना हुआ। उ०-धवल वाम मनि पुरट पट सुघटित का एक राग जिसमे मव शुद्ध स्वर लगते हैं। नाना भांति । सियनिवास सुदर सदन मोभा किमि कहि जाति। सुघराई टोडी-सशा स्त्री० [हिं० मुघगई + टोडी] सपूर्ण जाति की -तुलसी (शब्द०)। एक रागिनी। सुघट्टत--वि० [सं०] दुरस्त किया हुआ। समतल या हमवार सुघरी'-सज्ञा स्त्री० [हिं० मु+ घडी] अच्छो घटी। शुभ समय । उ०-यानंद की सुघरी उघरी सिगरे मनवाछिन काज भए है। सुघड-वि० [से? सुघट] १ सुदर। मुडौल । उ० नील परेव कठ के व्यगार्थ (शब्द०)। रगा। वृप से कध सुघड सव अगा।-उत्तररामचरित सुघरी'- वि० सी० [हिं० सुघड] सुदर । सुदौल। उ०—(क) माग (शब्द०)। २ निपुण। कुशल । दक्ष । प्रवीण। जैसे,- सोहाग भरी सुपरी पति प्रेम प्रनानी कथा अपना ।-सुंदरी- सुघडवाहु। मवम्व (शब्द॰) । (ख) सुंदरि हौ सुधरी ही सलोनी हो सील- सुघड़ई-सज्ञा स्त्री० [हिं० सुघड + ई (प्रत्य॰)] १ सुदरता। सुडौल भरी रस स्प सनाई।-देव (णन्द०)। पन। अच्छी बनावट। उ०-विषय के भोगो मे तृप्त हुए विना सुघोष'-सज्ञा पुं० [सं०] १ चौथे पाडव नकुल ये शख का नाम । ही उस (राजा) को, अधिक सुघडई के कारण विलामिनियो २ एक बुद्ध का नाम । ३ एक प्रकार का यत्न । ४ सुंदर घोप । के भोगने योग्य को, वृथा ईर्ष्या करनेवाली जरा ने स्त्रीव्यवहार मधुर ध्वनि। मे असमर्थ होकर भी हरा दिया। लक्षमण सिंह (शब्द०)। सुघोष-वि० १ जिसका स्वर सुदर हो । अच्छे गले या अावाजवाला । २ चतुरता। निपुणता। कुशलता। उ०—इसमे बडी बुद्धि २ तीन निनाद करनेवाला। ऊंची आवाजवाला। और सुघडई का काम है। -ठाकुरप्रसाद (शब्द॰) । सुघोषक-सञ्ज्ञा पु० [स०] एक वाजे का नाम (को०] । सुघड़ता-सज्ञा स्त्री० [हिं० सुघड + ता (प्रत्य॰)] १ सुघड होने का सुचंग-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] घोडा। भाव । सुदरता। मनोहरता। २ निपुणता। कुशलता। सुचचुका-सशा सी० [स० सुचञ्चुका] वडा चचुक शाक । महाचचु । दक्षता । सुघडपन । सुघडपन-सज्ञा पुं० [हिं० सुघड + पन (प्रत्य॰)] १ सुघड होने का सुचदन-सज्ञा पुं० [स० सुचन्दन] पतग या बक्कम नाम की लकडी भाव । सुघडाई। सुदरता । २ निपुणता । दक्षता । कुशलता। जिसका व्यवहार औपध और रग अादि मे होता है । रक्तसार । सुघडाई-सज्ञा स्त्री० [हिं० सुघड] दे० 'सुघडई' । सुरग। सुघड़ापा-सशा पुं० [हिं० सुघड + आपा (प्रत्य॰) । सुघडाई। मुचद्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं० सुचन्द्र] १ एक देवगधर्व का नाम। २ एक सुदरता। सुडौलपन । २ दक्षता । निपुणता । कुशलता। बोधिसत्व (को०) । ३ सिंहिका के पुत्र का नाम । ४ इक्ष्वाकु- सुघड़ी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सुघटी] अच्छी घडी। शुभ समय । वशी राजा हेमचद्र का पुन और धूम्राश्व का पिता । सुघर--वि० [स० सुघट] दे॰ 'सुघड' । उ.-(क) सयुत सुमन सुचद्रा-सश सी० [स० सुचन्द्रा] बौद्धो के अनुसार एक प्रकार की सुवेलि सी सेली सी गुणग्राम । लसत हवेली सी सुघर निरखि नवेली बाम ।-पद्माकर (शब्द०)। (ख) सुघर सौति बस सुच--वि० [स० शुचि दे० 'शुचि'। पिय सुनत दुलहिनि दुगुन हुलास । लखी सखी तन दीठि करि सुचक्षु-सञ्ज्ञा पु० [स० सुचक्षुस्] १ गूलर । उदुंबर। २ शिव का सगरव सलज सहास ।-अविकादत्त (शब्द०)। एक नाम । ३. विद्वान् व्यक्ति । पडित । सुघरई-सज्ञा स्त्री० [हिं० सुघड + ई (प्रत्य॰)] दे० 'सुघडई'। सुचक्षुः--वि• जिसके नेत्र सु दर हो । सुंदर आँखोवाला । सुघरता-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सुघड + ता प्रत्य॰)] दे॰ 'सुघड़ता' । सुचक्षु'--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] एक नदी का नाम । सुघरपन-मज्ञा पुं० [हिं० सुघड + पन (प्रत्य॰)] दे० 'सुघडपन' । सुचना-कि० स० [सं० सञ्चय] सचय करना। एकत्र करना। उ०-(क) छन मे जैहै सुघरपनो पीरो परिद तन । परकर परि इकट्ठा करना । उ०--तरुवर फल नहिं खात है सरवर कै सुकवि फर फिरि पावत नहिं मन ।-अविकादत्त (शब्द०)। पियहिं न पानि । कहि रहीम परकाज हित सपनि सुचहि सुघराई - सज्ञा स्त्री० [हिं० सुघड + आई (प्रत्य॰)] १ दे० 'सुघडई'। सुजान ।-रहीम (शब्द॰) । उ०-(क) काम नाश करने के कारण जिन्हें न मोहै सुघराई। सुचरित'--मज्ञा पुं० [सं०] १ वह जिसका चरित्न शुद्ध हो । उत्तम ऐसे शिव को किया चाहती हे अपना पति सुखदाई।-महावीर आचरणवाला । नेकचलन । २ सच्चरित्रता। ३ गुण (को०)। दीर्घपत्नी। समाधि।