पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३५२

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1 सुजानी ६०७२ मुठि सुजानी -वि० [म० सु + ज्ञान हिं० सुजान] विश। पडित । ज्ञानी । दियाना। बताना । जैगे,-पापो यह तवीर उसी ने उ०--(क) लखि विप्र सुजानी कहि मृदुवानी, अरे पुत्र । यह सुझाई है। काह मिय्यो ।--विश्राम (शब्द॰) । (ख) मै ह्या ल्याई सुवन मुझाना'-क्रि० प्र० दिवाई पड़ना । ममा । गभ, म पाना । सुजानी मुनि लखि हमि मागत नदरानी ।-गिरधर उ०--तर ते पर गारी परी मोकार 7 मुमाः।-० (शब्द०)। (राघा०), ५८६। सुजामि--वि० [स०] अनेक भाई बहनो तथा राव धियो से समृद्ध को०) । मुझाव- पुं० [हिं० गूमा+पाय (प्रत्य॰)] १frी यो युक मभाने की क्रिया। गुमारे या गाने TT भार । . किमी नई सुजावा--सज्ञा पुं० [स० सुजात] पुन (दि०)। घात, किसी विशेष पा या प्रग को मोर ध्यान लिागा। सुजावा --सज्ञा पुं० [श०] वैलगाडी में की यह लकी जो पैजनी ३ मुभागे या ध्यान दिलाने के लिये पनी हुवा।। गता। और फड मे जडी रहती है (गाडीवान) । मणविग। गय। सुजिह्व-वि० [सं०] १ जिमी जिहा या जीम मुदर हो। २ मधरमापी। मीठा बोलनेवाला। मुटक-वि० [सं० गुटन] तीन । गपंग । गोद लि। सुजिह्व-मज्ञा पुं० अग्नि । पावा । गानु । सुटकन, मुटुकुन-गरा मी० [अनु०] वांग यी केन । सुजीर्ण-वि० [स०] १ अच्छी तरह पका या पना हुअा अन । २ मुटुाना'--पि ० अ० [गनु०] १२० गुगा' । २ ३० मिटना'। (खाना) जो गूब पच गया हो । ३ जीर्णशीर्ण । जर्जर। मुटुकना --कि० ग० [अनु॰] गुटका माला । नापुर गाना । ३०- सुजीवती-भशा सी० [म० मुजीवन्नी] पोलो जीवती । सुगहरी नीन महीधर गियर मम देगि विमान बगर । चपरि नट जीवती। त्य मुटु कि नप हानि न होऊ निगह ।--गुली (२०) । विशेप -वैवाक के अनुसार यह वन-वीय-वधक, नेत्रो को हिसकागे मुटुकना-मि० अ० [पनु ०] गुपो या धोरे में नाग जाना । तथा वात, रक्त, पित्त, और दाह को दूर करोवाली है। गराना। पर्या' स्वर्णलता । स्वर्णजीवती । हेमवल्ली। हेमपुष्पी। हेमा । सुठ वि० [सं० सुद] २० 'सुठि' । ३०-गायनयाम अभिनन सौम्या । सुट वामह ते ताते हो परशुराम पोध मत जोगिए ।-हनु- सुजीवित'--सा पुं० [स०] मुखमय जीवन (को०] । मन्नाटक (शब्द०)। सुजीवित'-वि० १ जिसका जीना सफल हो। २ सुपी जीवन व्यतीत मुठहर--मरा पुं० [सं० म + स्यन, हिं० ठहर(= जगह)] अन्ना करनेवाला [को०] . स्थान । यहिया जगह । ३०-यानि मुदिन नपि निधि नित मुजेय-वि० [म०] जो मरलता मे जीना जा सके । गे ऐगि पूत गो माज मुठरर बन लायो ।-देवनामी सुजोग+ - सा पुं० [सं० सु + योग] १ अच्छा अवार। उपयुक्त (म०)। अवमर । सुयोग । २ अच्छा सयोग । अच्छा मेल । मुठहरे--वि० ० [हिं सुठहर] अन्छी जगर पर । अन् स्थान पर । सुजोधन-सज्ञा पुं॰ [स० सुयोधन] दे० 'सुयोधन' । उ०--जलत सुठान --पि० वि० [हिं० गु+ठान ( = म्यान)] अच्छे ठग से। सुजोधन कटक हलत फिल विकल सकल महि । कन्छप भारन मली प्रकार से। उ०-भौंह कमान संधान मुठान जे ना छपत नाग चिक्करत अहि ।-गिरधर (गब्द०)। विलोपन वान ते योचे ।--तु नगी म०, पृ० २२६ । सुजोर-वि० [म० मु या फा० शह + जोर] १ दृछ । मजबूत । उ०-- सुठार --वि० [#० मुप्यु, प्रा० सुळे] [२० जी० सुठाग] नुडौल । सरल बिसाल विगजहि विद्रुम पग मुजोर। चार पाटि पटि सुदर। उ०--(क) मुठि सुठार ठोटी अनि मु दर सुदर पुरट की भरकत मरकत भोर । - तुलसी (शब्द०)। २ ताको सार । चितवन चुप्रत सुधारन मानो रहि गई बूंद शक्तिशाली । शहजोर । वलवान् (को०)। मझार ।-वर (शब्द॰) । (ख) नपल नैन नामा चि शोभा सुज्ञ-वि० [स०] १ जो अच्छी तरह जानता हो । भली भांति जानने- अधर नुरग सुठार । मनो मध्य जन गुक बैठयो लुब्ध्यो विय वाला । सुविज्ञ । २ पडित । विद्वान् । विचार ।---सूर (शब्द॰) । (ग) जावक रचित अंगुरियन्ह मृदुल मुठारी हो । प्रभु कर चरन पछालत अति सुकुमारी हो । सुज्ञान' सज्ञा पु० [सं०] १ उत्तम जान । अच्छी जानकारी। २. एक --तुलसी ग्र०, पृ०५। प्रकार का साम। सुज्ञान'--० [स०] ज्ञानी। पडित । जानकार । सुविज्ञ । सुठिा--वि० [सं० सुष्ठ्] १ गुदर । वढिया। ग्रन्या । उ०—(क) तृन सरासन वान धरे तुलसी बन मारग मे सुठि सौ है।- सुज्येष्ठ --मशा पुं० [म०] भागवत के अनुसार शुगवशी राजा अग्निमित्र तुलसी (शब्द०)। (ख) सग नारि सुकुमारि सुभग सुठि के पुत्र का नाम । राजति बिन भूपन वसति ।--तुलसी (शब्द०)। (ग) सुझाना--क्रि० स० [हिं० सूझना का प्रेर० स्प] ऐसा उपाय करना बहुत प्रकार किए सव व्यजन अमित वरन मिष्ठान । प्रति जिसमे दूसरे को सूझे । दूसरे के ध्यान या दृष्टि मे लाना। उज्वल कोमल सुठि सदर रेपि महरि मन पान ।-सुर०.