पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३६४

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सुधावर्ष ६०५४ मुनदने सुघावर्ष-सञ्ज्ञा पुं० [स०] अमृत की वर्षा [को॰] । सुधिति-नज्ञा स्त्री० [स०] १ कुठार । कुल्हाडी । परशु । २ वज्र । सुधावर्षी'-वि० [स० सुधावपिन्] अमृत बरसानेवाला । सुधी'--सशा पु० [स०] विद्वान् व्यक्ति । पडित । शिक्षक । सुघावर्षी - सज्ञा पु० १ ब्रह्मा । २ कपूर (को०) । ३ चद्रमा (को०) । सुधी-सज्ञा स्त्री०१ सद्बुद्धि । सुबुद्वि [को०)। ४ एक बुद्ध का नाम । सुधी'--वि० १ उत्तम बुद्धिवाला । बुद्धिमान् । चतुर । २ धार्मिक । सुधाबाप-सज्ञा पुं० [स०] १ चद्रमा। २ कपूर। कपूर (को०)। ३ खीरा । त्रपुपी। सुधीर--वि० [स०] जिसमे यथेष्ट धैर्य हो। धैर्यवान् । मुधुम्नानी--सज्ञा स्त्री० [स०] पुराणानुसार पुष्कर द्वीप के सात खडो सुघावामा--सज्ञा स्त्री॰ [ग] खीरा । त्रपुपी। मे से एक । उ०--एक सुधुम्नानी कह और मनोजल जान् । सुधावृष्टि--सञ्ज्ञा श्री० [स०] अभृत की वर्षा । सुधा की वर्षा । उ०-- चित्ररेफ है तीसरो चौथो गणि पवमानु । पचम जानि पुगेज- सुधावृष्टि में दुहु दल ऊपर।-मानस, ६।११३ । वहि ठो विमल बहु रूप। विश्वधातु है सात जो यह खुडनि सुधाशर्करा--सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] खली। खरी । सेतखरो। को रूप ।--केशव (शब्द॰) । सुधाशुभ्र-वि० [सं०] १ मुधा सदृश श्वेत। सुधामित । २ जो सुधा विशेष-यह शब्द संस्कृत के कोशो मे नहीं मिलता। द्वारा शुभ्र हो । सफेदी किया हुअा [को०] । सुधाश्रवा--सज्ञा पुं० [म० सुधा + श्रवा ( = प्रवाह), स्रव, स्रवरण सुधूपक-सज्ञा पुं० [म०] श्रीवेष्ट नामक गधद्रव्य । ( 3 गिराना, बहाना)] अमृत बरसानेवाला। उ०--चल्यो सुधूम्य-सचा पु० [स०] स्वादु नामक एक गधद्रव्य । तवा सो तप्त दवा दुति भूरिश्रवा भट । मुधाश्रवा सिर न सुधूम्रवर्णा-संज्ञा स्त्री० [स०] अग्नि की सात जिह्वानो मे मे एक हवा जब सुरथ नवा पट ।--गोपालचद (शब्द०)। जिह वा का नाम । सुधापदन--सज्ञा पु० [सं० सुधा + सदन] चद्रमा । उ०--सरद सुधा- सुधृति-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ एक राजा का नाम जो मिथिला के सदन छविहि निदै बदन अरुन अायत नव नलिन लोचन महावीर का पुत्र था । २ राज्यवधन का पुन । चारु ।--तुलसी (शब्द॰) । सुधोद्भव-सज्ञा पु० [स०] धन्वतरि । सुधासमुद्र-सज्ञा पुं० [सं०] अमृत का समुद्र । विशेष-समुद्रमयन के समय धन्वतरि मुधा लिए हुए निकले थे, सुधासागर--सज्ञा पुं० [सं०] अमृत का समुद्र । इसी से इन्हे 'सुधोद्भव' कहते है । सुधा सिंधु-सञ्ज्ञा पु० [स० सुधासिन्ध] दे० 'सुधासागर' [को०] । सुधोद्भवा-सज्ञा स्त्री० [स०] हरीतकी । हरें । हड । सुधासिक्त--वि० [स०] अमृत से सिंचित । सुधौत--वि० [स०] १ अच्छी तरह साफ किण हुा । बुला हुआ। सुधासित--वि० [स०] १ सफेदी किया हुआ। चूना पुता हुआ । स्वच्छ [को०)। २ चूना या अमृत की तरह दीप्त और श्वेत (को॰) । सुधासू---सज्ञा पु० [स०] अमृत उत्पन्न करनेवाला, चद्रमः । सुध्युपास्य-सम्रा पु० [स०] १ परमेश्वर, जो सुधी जनो के उपास्य है। २ एक प्रकार का राजप्रासाद । ३ कृष्ण का एक सखा। सुधासूति-सज्ञा पु० [सं०] १ चद्रमा । २ यज्ञ । ३ कमल । ४ बलदेव का मूसल [को०)। सुधास्पर्धी--वि० [स० सुधास्पधिन] अमृत की बराबरी करनेवाला। अमृत के समान मधुर । (भापण अादि)। सुध्युपास्या-सज्ञा सी० [स०] १ औरत । नारी । स्त्री। २ पार्वती । सुधास्रवा--सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ गले के अदर की घटी। छोटी जीभ । उमा । ३ पार्वती की एक सखी। ४ एक प्रकार का रग । कौवा । २ रुद्रवती । रुदती। सुनद-सज्ञा पुं० [स० सुनन्द] १ एक देवपुत्र । २ श्रीकृष्ण का एक सुधाहर--सज्ञा पु० [स०] गरुड ।। पार्षद् । ३ वलराम का मूसल । ४ कुजृ भ दैत्य का मूसल सुधाहर्ता-सज्ञा पु० [सं० सुधाहत] गरुड का नाम (को०] । जो विश्वकर्मा का बनाया हुआ माना जाता है। ५ वारह प्रकार के राजभवनो मे से एक। सुधाहृत्--मज्ञा पु० [स०] गरुड । विशेष--यह सुनद नामक राजप्रासाद राजाग्रो के लिये विशेष सुधाह्नद--मञ्ज्ञा पु० [सं०] अमृत का सरोवर । शुभकर माना गया है। कहते है, इसमे रहनेवाले राजा को सुधि--सज्ञा स्त्री० [सं० शुद्ध (बुद्धि) या सु+वी ( = बुद्धि) ] दे० कोई परास्त नहीं कर सकता । 'युक्तिकल्पतरु' के अनुसार इस 'सुध' । उ०--(क) वह सुधि पावत तोहिं सुदामा। जब हम भवन की लवाई राजा के हाथ के परिमारण मे २१ हाथ और तुम बन गए लकरियन पठए गुरु की भामा ।—सूर (शब्द॰) । चौडाई ४० हाथ होनी चाहिए। (ख) रामचद्र विख्यात नाम यह मुर मुनि की सुधि लीनी । ६ एक वौद्ध श्रावक ।


सूर (शब्द०)।

सुधित-वि० [सं०] १ सुव्यवस्थित। सुरक्षित । २ अच्छी तरह सुनद'-वि० अानददायक । सिद्ध । जैसे, अन्न आदि (को०) । ३ सुधा या अमृत के समान । सुनदक-सशा पु० [सं० सुनन्दन] शिव का एक गण । ४ सदय । कृपालु । साधु । भद्र (को०)। ५ लक्ष्य पर ठीक सुनदन--सज्ञा पुं० [सं० सुनन्दक] १ पुराणानुसार कृष्ण के एक पुत्र ठीक साधा हुा । जैसे, वाण, कुत आदि (को०) । का नाम । २ पुरीषभीरु का एक पुत्र । ३ भूनदन का भाई ।