पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३६८

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सुन्न ६०८८ सुपद् नाहिं क्यो चनि के पेखत । सुकवि मुन्न है जाय न प्यागे देखत सुपट'मश पुं० सु दर वस्त्र । देखन।-प्रबिकादत्त (शब्द॰) । (ग) निरपि कम की छाती मुपठ-11 [म०] गुपाट्य । जो गग्लना मे पटा जा मो। धडकी । सुन्न समान मई गति धडकी।-गिरधर (पन्द०)। सुपडा -शा पं० [देश॰] लगर का अंदा जो जमीन में धमा सुन्न -सशा पुं० शून्य । मिफर। उ०-(क) यथा मुन्न दस गुन्न जाता है। विन अक गने नहिं जात ।--श्रद्धाराम (शब्द॰) । (घ) अगनित मुपत वि० [सं० मु+ हिं० पन ( प्रतिष्ठा)] प्रतिष्ठायुता। वढत उदोत लख उ इक वेदी दीने। कयो मुल को ऐमो गुन मानयुक्न उ०- यह पूछो शशि जानि उदन विधु रच्यो विरवि को गनित नवीने ।-अविकादत्त (शद०)। है री। गौप्यो गुपन पिचारि श्याम रित मत रही टि सुन्न'-~-वि० दे० 'सुन्नसान', 'सुनमान' । लरी।-गूर (पन्द०)। सुन्नत--सज्ञा स्त्री० [अ०] १ मुमलमानो की एक रम्म जिसमे लडके सुपतिक-T पुं० [१०] रात को पानेगाना टाा (fi०) । की लिंगेद्रिय के अगले भाग का बढा हुया चमडा काट दिया मुपाय-मज्ञा पुं० [मं० गुपय] ३. "गुपय' । ३०-:न अनाम जाता है। खतना । मुसलमानी । २ तरीका । पदनि । कायदा श्रीराम लालमन वृद्ध पितु दर य को । गंगा परत निा रस्त में (को०)। ३ प्रकृति । स्वभाव (को०)। ४ मार्ग । राह । मरणि गहि रीति निगम गुपन्य की।-पधारा (जन्द०)। (को०)। ५ वह पद्वति या मार्ग जिगपर मुहम्मद चले (को०) । सुपत्नी-सरा पी० [सं०] १ वह महिला जिमका पनि पूनपूरन हो। सुन्नति पु--मज्ञा सी० [अ० मुन्नत] गतना। मुमनमानी। दे० २ मु दर पत्नी । मुगृहिणी यो०] । 'सुन्नत'। उ०---(क) मकति मनेह करि मुन्नति करिए मैं न सुपर-पशा पु० [म०] १ तेजपत्र । तेजपता। २ अादित्यण्व । दा. बढीगा भाई।--कीर ग्र०, पृ० ३३१ । (प)गुन्नति कि तुरक हुर का एग भेद। ३ पल्निवाह नाम की घास । ४ इगदी। जे होडगा औरत का क्या करिए। कबीर ग्र०, पृ० ३३१ । गोदी। हिंगोट । ५ एक पौराणिक पक्षी। सुन्नमान--वि० [मे० शून्य + स्थान] २० 'गुनमान'। मुपत्र'-पि०१ गुदर पतो मे युक्त। जिसके पर या ने सुदर सुन्ना'--क्रि० स० [हिं० सुनना] २० 'सुनना' । हो। गुदर पोगाना। ३ गुदर पक्ष या पर से युक्त । सुन्ना-सञ्ज्ञा पुं० [म० शून्य] विदी। मिफर, जैसे, - (१) पर सुन्ना जमे, वारण (को०)। (०) लगाने से (१०) होता है। सुपत्रक-सा ई० [सं०] नहिजन । शिग्रु । सुन्नी-मग पुं० [अ०] मुमलमानो का एक भेद जो चारो खलीफाओ सुपना-ममा पो० [सं०] १ रुद्रजटा । २ शतावरी। मायर । : को प्रधान मानता है। चारयारी। शालपर्णी। सग्विन । ४ शमी। छोफर। सफेद नीर। सुपख -वि० [स० मुपस] १ सुदर तीरो से युक्त । २ मु दर परो ५ पालक का साग। मुपविका [-मझा स्त्री० [.] जतुका । पयटी । सुपथ--मशा पु० [#० सुपन्या] १ उत्तम मार्ग । सुमार्ग। मत्पथ। सुपत्रित-० [सं०] पयो या तीरों मे युमा । जिनमे पत्र या सन्माग। २ सीधा रास्ता। मही रास्ता। उ०--मखहि सनेह तीर हो। विवस मग भूला। कहि सुपथ सुर बरमहि पूला।--मानस, सुपत्री-ना, मी० [सं०] एक प्रकार का पौधा । गगापत्री। २।२३७। सुपनी-वि० [सं० गुपत्रिन] पो या तीरो से भली भांनि युक्त। सुपक -० [स० मुपक्य] अच्छी तरह पका हुा । नुपक्व । उ०- गोपाल राड दधि मांगत गरु रोटी। माखन सहित देहि मेरि सुपय' - तज्ञा पुं० [सं०] १ उत्तम पय । अच्छा गस्ता । २ मार्ग । सदाचरण । ३. एक वृत्त । नाम जो एक रगण, एक नगण, जननी सुपक मुमगल मोटी।-सूर (शब्द॰) । एक मगण और दो गुर का होता है। सुपक्व'-वि० [सं०] १ अच्छी तरह पका हुग्रा (फल आदि)। २ जिसे अच्छी तरह पकाया गया हो। जैसे, अन्न (को०)। मुपथार - वि० [स० गु+पय] १ समतल । हगवार । (जमीन) । उ०-किधो हरि मनोरथ रथ को सुपय भूमि मीनरय मनहूँ सुपक्व-मज्ञा पुं० [मं०] सुगधित ग्राम । की गति न सकति छ।-केशव (शब्द०)। २ गुदर पथ सुपक्ष-वि० [म.] जिमके सु दर पख हो । सु दर पखोवाला। या मार्गवाला। सुपक्ष्मा--वि० [म० सुपथमन्] जिसकी पलकें सु दर हो। सुदर मुपथी' - -सशा पुं० [स० सुपधिन्] अच्छी राह । सन्मार्ग । पलकोवाला। सुपथी'-वि० मन्मार्गगामी । गुपययुगत किो०] । सुपच पु-ज्ञा पुं० [म० एवपच] १ चाडल । डोम । उ०-तुलसी सुपथ्य - मक्षा पुं० [स०] १ वह याहार या भोजन जो रोगी के लिये भगत सुपच भनो भज रइनि दिन राम । ऊँचो कुल केहि काम हितकर हो। अच्छा पथ्य । २ ग्राम । ३ अच्छा पय या मागं । को जहाँ न हरि को नाम । -तुलसी (शब्द०)। २ भगी। सुपथ्या-सश स्त्री० [स०] १ सफेद बयुवा । बडा बयुवा। श्वेत (डि.)। चिल्ली। २ लाल वयुवा । लघु वास्तूक । सुपट'-वि० [सं०] सु दर वस्त्रो से युक्त । अच्छे वस्त्रोवाला। सुपद्-वि० [सं०] सुदर पैरोवाला। से युक्त।