पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३७

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राचाय्य सचित सचाय्य- पु० [सं०] एक प्रकार का यज्ञ । सचारित' - वि० [म० मञ्चारित] १ जिमका सचार किया गया हा सचार -मया पुं० [म० गञ्चार] १ गमन । चतना । २ फैलने या चलाया या फैलाया हुअा। २ उकसाया हुआ। वढाया हुआ विस्तृत होने की क्रिया । ३ कष्ट । विपत्ति । ४ मार्ग प्रद (को०)। ३ (व्याधि या गेग) जो सक्रमित किया जाय (को०)। र्शन । नेतृत्व । राता दिखनाने को किया। ५ चलाने की सचारित'- या पु० वह व्यक्ति जो पाने स्वामी को आकाक्षानो को क्रिया। मचान । ६ सांप की मरिण ७ देश। ८ ग्रहो कार्यान्विा करता हो को०] । या नक्षत्रो का एक राशि मे दूसरी रागि मे जाना । सचारी'-मज्ञा पुं० [म० मञ्वारिन्] १ प नामक गध द्रव्य । २ विशेष-ज्योतिप के अनुसार सचार समय मे चद्र जिस रूप का धूप का उठा हुमा धूम्र (को०)। ३ वायु । ह्वा । ३ साहित्य होता है, उसी प्रकार का फल मी होता है। यदि चद्र शुद्ध मे वे भाव जो रम के उपयोगी होकर जन की तरगो की भांति होता है, तो माथ मे जिम ग्रह का शुभ माव होता है, उस ग्रह उनमे सचरण करते है। के शुभ कन को वृद्धि होती है। यदि मचार काल मे इदु शुद्ध विशेष--ऐसे भाव मुख्य भाव की पुष्टि करते हैं और समय समय नही होता, तो शुभ भाववाले शुभ ग्रह के शुभ फन मे न्यूनता पर मुख्य भाव का रूप धारण कर लेते है । म्यायी भावो की मांति होती है। यदि कोई अशुभ ग्रह शुद्व चद्र के साथ होता है, तो ये रससिद्धि तक स्थिर नहो रहते, बल्कि प्रत्यत चच नतापूर्वक प्रशुभ फन की कमी होती है। फलित ज्योतिप मे सचार के सब रमो मे सवरित होते रहते हैं। इन्ही को व्यभिचारी भाव गवव मे इसी प्रकार की और भी बहुत सी वाते दी हुई है। भी कहते हैं। साहित्य मे नीचे लिये ३३ सचारी भाव गिनाए ६ उत्तेजन। वढावा देना । १० कष्टमय यात्रा (को०) 1 ११ गए है--निर्वेद, ग्लानि, णका, असूया, श्रम, मद, धृति, आलस्य, विपाव मार्ग । पथ । राह (को०) । १२ दूत । गुप्तचर । सदेशवाहक मति, चिंता, मोह, स्वप्न, विवोध स्मृति, आमर्प, गर्व, उत्सुकता, अवहित्या, दीनता, हर्ष, ब्रोडा, उग्रता, निंदा, (को०)। १३ दर्णन एव श्रवण द्वारा दूसरे का मोहन करना। व्याधि, मरण, अपस्मार, आवेग, त्रास, उन्माद, जदता, चप- १४ रतिमदिर की अवधि। लता और वितर्क। यो०-सचारजीवी = खानाबदोश । सचारपथ = घूमने टहलने की ४ अस्थिरता। चचलता। क्षणम्थायित्व । ५ सगीत शास्त्र के जगह । मवारव्याधि = सक्रामक रोग । अनुमार किसी गोत के चार चरणो मे से तीसरा चरण । सचारक-१०, मञा पुं० [स० सञ्चारक] १ सचार करनेवाला। ६ अागतुक । फैलानेवाला। २ वरना। ३ चलानेवाला। ४ दलपति। सचारी-वि० [वि० सी० मञ्चारिणी] १ सचरण करनेवाला। गति- नायक । नेता । ४ स्कद का एक अनुचर (को॰) । शोल । अस्थिर। २ सक्रामक । जैसे, रोग (को०)। ३ चढने मचारए -माया पुं० [म० गञ्चारण] १ पास लाना या करना। उतरनेवाला। जैमे, म्बर (को०)। ४ दुर्गम (को०) । ५ वश- २ मिलाना । एक मे करना । ३ (मदेशा) कहना [को०] । परपरागत । ग्रानुवशिक (को॰) । ६ क्षणास्थायी (को०)। पचारणी -मक्षा बी० [स० सवारिणो] बौद्धो को एक देवी [को०) । ७ सनग्न । लगा हुया (को०)। ८ प्रवेश करनेवाना (को॰) । ६ घूपने वाला । भ्रमण करनेवाला है। सचारना -क्रि० स० [म० सञ्चारण] १ सचार का सकर्मक रूप। गिनी वस्तु का सवार करना। २ प्रचार करना । व्यवहार मे सचाल-मया पु० [स० मञ्चन] १ कपन । काँपना। २ चलन । चलना। प्रचना करना । फैलाना । उत्पन्न करना । जन्म देना । उ०-नूर मुहम्मद देगि ती मा हुलास मन सोड। पुनि इवलिस सचारेउ सचालक-सज्ञा पुं० [म० मचान] १ वह जो मचानन करता हो । उरत रहे मव कोड। -जायनी (शब्द॰) । चलाने या गति देनेवाला। परिचानक । २ वह जो किमी प्रकार के उद्योग या मम्था ग्रादि के ठीक से चलते रहने का सचारयिता - सज्ञा पुं० [स० नञ्वारयितु] नायक । नेता [को०] । प्रवप करता हो (को०)। नचारिका-पना मी० [म० सवारिका] १ सदेगवाहिका । दूती। २ कुट्टनी। कुटनो । ६ नाक । नासिका। ४ युग्म । जोडा। सचालन-नशा पुं० [सं० मचानन] १ चनाने की क्रिया । परि- चालन। २ काम जारी रखना या चलाना। प्रतिपादन । ५ गय । महत (को०)। ६ नह दानी जो रुपये पैने की व्यवस्था ३ नियन्त्रण । ४. देखरेत्र। करतो रो (को०)। सचाली-सपा को [म० स्वानो] गुजा। घुघची। सचारिणी'- स्त्री० [० सञ्चारिणी] १ हसपदी नाम की लता। सचितन-मज्ञा पुं० [म० मञ्चितन] चिंतन करना । विचारना (को० । २ सात लजालू । मचितित-वि० [स० मञ्चिलिन] १ गम्प पिचारित । मुविचारित । सचारिणी'- विसी०१ हिरानी या कांपती हुई। २ भटकती हुई या २.निश्चित किया हुया । ३ अाकाक्षित। घूमती हुई। ३ परिवर्तनशील । अस्थिर । ४ प्रभाव डालने इच्छिन [को०] वाली। ५ जानुशिक चने सक्रमण करनेवाली या सम्पगं सचित-वि० [सं० सञ्चित] १. मत्रय किया हुआ। २ टेर लगाया द्वारा उत्तन्न होनेवाली बीमारी।६ प्रवृत्त करनेवाली (को०] । हुना। ३ ग्निा हुना। गणना किया हुअा (०)। ४. भरा हि. १०-१०-३ व्यवस्थित ।