पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३८६

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सुरतरुवर ७००६ सुरदोपी सुरतरुवर-सशा पुं० [सं०] कल्पवृक्ष । सुरती--सपा सी० [मूरत (नगर)+1] गाने के नगर के पत्नी का सुरतस्थ-वि० [सं०] स्त्रीप्रसग मे रत । सभोगरत [को॰] । चूग जो पान के साथ या यो ही चना मिनाकर पाया जाता है। गनी। सुरतात-सञ्ज्ञा पुं० [स० सुरतान्त] रति या सभोग का प्रत । विशेष-ग्रनुमान किया जाता है कि पुतंगा जवानों ने पहले परत सुरता'-- सच्चा स्त्री॰ [स०] १ सुर या देवता का भाव या कार्य । २ देवत्व । २. सुरसमूह । देवसमूह । देव जाति । ३ समोग का इमका प्रचार मूरत नगर मे किया था, मी मे इसका यह नाम पडा। आनद । ४ पत्नी । स्त्री। ५ एक अप्सरा का नाम । सुरतुग--सपा पुं० [सं० सुरतुरग] मुगपुग्नाग नामन वृक्ष । सुरता-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश०] एक प्रकार की बांस की नली जिसमे से दाना छोडकर वोया जाता है। सुरतोपक-सया पं० [म०। १ कौस्तुभ मणि । २ वह जो देवनाग्रा को तुष्ट करता है (को०)। सुरता---सद्या स्त्री० [सं० स्मृति, हिं० सुरत] १ चिंता । ध्यान । २ चेत। सुध । उ०--छोडि शासना बौध की अरहत को ना मानि । सुरत्न'--सपा पुं० [सं०J१ गोना । स्वण । ० मागिन्य । लान । सुरता छाडि पिशाचता काहे को करि वानि ।-(शब्द०)। सुरत्न-वि० १ गवंश्रेष्ठ । २ उत्तम रत्नी मे युक्त । सुरता@'-वि० ध्यान लगानेवाला । ध्यानी। सुरत्राए-सपा पुं० [सं०] ३० 'सुरदाता' । उ०-पाजन पोर निमान मान मरवान नजावत ।-गि० दाग (शब्द)। सुरता-वि०, सझा पुं० [सं० श्रोता] दे० 'श्रोता'। सुरता-वि० [हिं० सुरत] समझदार। होशियार । बुद्धिमान् । सुरवाए-सपा पुं० [फा० सुलतान] दे० 'मुलतान' । सयाना। चालाक। सुरवाता-सा पुं० [सं० सुर + ब्रान] १ विष्ण। श्रीरप्ण । सुरतात--समा पुं० [सं०] १ देवतागो के पिता, कश्यप । २ देवतायो के अधिपति, इद्र। सुरथ'---मज्ञा पुं० [सं०] १ एफ चद्रग्शी गजा। सुरतान' - सपा स्त्री० [हिं सुर+तान] स्वर का पालाप । सुर टीप । विशेप-पुराणो के अनुसार ये न्यारोचिष मन्वार में हुए थे और इन्होंने पहले पहल दुर्गा की प्राराधना की थी। दुर्गा के सुरतान'-सञ्ज्ञा पुं० [फा० सुलतान] दे० 'सुलतान' । वर से ये सावणि मनु के नाम से प्रसिद्ध हुए · दुर्गा मप्तशती सुरताल-सज्ञा पुं॰ [स० स्वर+ताल] स्वर और ताल (संगीत)। मे इनका विस्तृत वृत्तात है। सुरति-समा सी० [सं० सु+ रति] विहार । भोगविलास । २ द्रुपद के एक पुत्र का नाम । ३ जयद्रय के एक पुत्र का नाम । केलि । सभोग । उ०-विरची सुरति रघुनाथ कुजधाम बीच, ४ मुदेव के एक पुत्र का नाम । ५ जनमेजय के एक पुत्र का काम वस नाम करे ऐसे भाव थपनो। जपनि सो मसक नाम । ६ अधिग्ध के एक पुत्र का नाम । ७ पुडा के एक पुत्र सिकोरै नाक, ससकै मरोरै भौह हस के सरीर डार कपनो।- का नाम । ८ रएक के एक पुत्र का नाम । ६ नागपुरी के काव्यकलाधर (शब्द०)। राजा हमध्वज का पुत्र । १० सुदर रथ । अनूप रथ (को०)। सुरति'-सक्षा नी० [सं० स्मृति] स्मरण । सुधि । चेत । उ०-छिनछिन ११ पुराणानुसार एक पर्वत का नाम । सुरति करत यदुपति की परत न मन समुझायो। गोकुलनाथ सुरय'-मुदर रथ से युक्त [को०] । हमारे हित लगि लिखिहू क्यो न पठायो।—सूर (शब्द॰) । सुरय-राश पुं० [सं० सुरथम्] कुश द्वीप के अतर्गत एक वर्ग । क्रि० प्र०-करना । -दिलाना ।-लगना।- होना । सुरया-सा सी० [सं०] १ एक प्रमरा का नाग। २ पुगणानुसार सुरति'--सक्षा खी० [फा० सूरत] दे० 'मूरत' । उ०-सोवत जागत एक नदी का नाम । सपनवस रस रिस चैन कुचैन । सुरति श्यामवन को सुरति विसरेहू विसरै न |--विहारी (शब्द०)। सुरयाकार-सधा पुं० [स०] एक वर्ष का नाम । सुरतिगोपना--सज्ञा स्त्री० [सं०] वह नायिका जो रतिक्रीडा करके आई सुरयान-सा पुं० [#० सुर+ स्थान] स्वर्ग । (हिं०)। हो और अपने सखियो आदि से यह बात छिपाती हो। सुरदार - वि० [हिं० सुर+फा दार] जिसके गले के म्वर सुदर हो। सुरतिरव -सधा पुं० [सं०] रतिक्रीडा के समय होनेवाली भूपणो सुस्वर । सुरीला। की ध्वनि । सुरदार--सज्ञा पुं० [सं०] देवदार । देवदारु वृक्ष । सुरतिवत--वि० [स० सुरत+वान] कामातुर • उ०--हरि हँसि सुरदीपिका--सज्ञा स्त्री० [सं०] अाकाशगगा। भामिनी उर लाइ । सुरतियत गुपाल रीझे जानी अति सुरदुदुभी--संज्ञा स्त्री० [सं० सुरदुन्दुभि] १ देवताओ का नगाडा । सुखदाई । —सूर (शब्द०)। २ तुलसी। सुरतिविचित्रा-सधा स्त्री० [सं०] मध्या के चार भेदो मे से एक। सुरदेवी-सझा स्त्री० [सं०] योगमाया जिसने यशोदा के गर्भ मे अवतार वह मध्या जिसकी रतिक्रिया विचित्र हो। उ०--मध्या लिया था और जिसे कस पटकने चला था । आरूढयौवना प्रगलभवचना जान । प्रादुर्भूत मनोभवा सुरति- सुरदेश-सशा पुं० [सं० सुर+ देश] स्वर्ग । देवलोक । विचिना मान |--केशव (शब्द०)। सुरदोपी@--सज्ञा पुं० [सं० सुरद्विप। देवद्रोही, असुर । काम-