पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३८७

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- सुर ७००७ सुरेफाँक ताल सुरद्रु--मञ्ज्ञा पुं० [स०] १ देवदाम् । २ सुरद्रुम । सुरपतिसुत-सज्ञा पु० [सं०] इद्र का पुत्र, जयत । उ०--सुरपतिसुत धरि वाइस वेखा। -मानस, ३।१। सुरद्रुम--सज्ञा पुं० [सं०] १ कल्पवृक्ष । २ देवदारु (को०)। ३ देव- नल । बडा नरकट। बडा नरसल। सुरपथ-सञ्ज्ञा पु० [सं०] आकाश । सुरद्विप--मज्ञा पुं० [सं०] १ देवतानो का हाथी । देवहस्ती। २ इद्र सुरपन--सञ्ज्ञा पु० [सं० सुरपुन्नाग] पुन्नाग । मुरगी। सुलताना चपा। का हाथी । ऐरावत। सुरपर्ण-सज्ञा पु० [म०] एक प्रकार का सुगधित शाक । सुरद्विष्--सज्ञा पु० [सं०] १ देवताओं का शत्रु । असुर । दानव । पर्या०--देवपर्ण । सुगधिक । माचीपन्न । गधपत्रक । राक्षस । २ राहु। सुरधनु. सुरधनुष-सञ्ज्ञा पु० [स० सुरधनुस्] १ इद्रधनुष । २ नख विशेष--यह क्षुप जाति की सुगधित वनस्पति है। वैद्यक के अनु- क्षत का चिह्न (को॰] । सार यह कटु, उष्ण तथा कृमि, श्वास और कास की नाशक तथा दीपन है। सुरधाम-मञ्ज्ञा पु० [स० सुरधामन्] देवलोक । स्वर्ग। उ०-तनु परिहरि र युवर बिरह राउ गएउ सुरधाम । —मानस, २।१५५ । सुरपरिणक-सञ्ज्ञा पु० [स०] पुन्नाग वृक्ष । मुहा०---सुरधाम सिधारना = मर जाना। सुरपरिणका-मज्ञा स्रो॰ [स०] पुन्नाग । सुलताना चपा। सुरधुनी--मशा री० [स०] गगा। सुरपर्णी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ पलासी । पलाशी । २ पुन्नाग । पुलाक। सुरधूप--सचा पुं० [स०] धूना । राल । सर्जरस । सुरपर्वत--सज्ञा पु० [स०] सुमेरु । सुरधेनु--सञ्ज्ञा श्री० [स० सुर+धेनु] देवताओ की गाय, कामधेनु । सुरपासुला-सच्चा आ० [स०] अप्सरा। सुरध्वज-मज्ञा पुं० [स०] सुरकेतु । इद्रध्वज । सुरपादप--सज्ञा पु० [म. देवद्रुम । कल्पतरु । सुरनदा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० सुरनन्दा] एक नदी का नाम । सुरपाल-सज्ञा पुं॰ [स० सुर+ पालक] इद्र । उ०-सुरन सहित तह सुरनगर-सञ्ज्ञा पु० [स०] स्वर्ग । आइ के वज्र हन्यो सुरपाल ।-गिरिधर (शब्द॰) । सुरनदी- सज्ञा स्त्री० [स०।१ गगा। २ आकाशगगा। सुरपालक-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] इद्र। उ०-प्रानद के कद, सुरपालक सुरनाथ-सज्ञा पु० [म०] इद्र । के बालक ये।-केशव (शब्द॰) । सुरनायक-सज्ञा पुं० [प] सुरपति । इद्र । सुरपुन्नाग-सञ्ज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार का पुन्नाग जिसके गुण पुन्नाग सुरनारी-सज्ञा स्त्री० [स०] देवागना । देवबाला । देववधू । के समान ही होते हैं। सुरनाल-सशा पु० [सं०] वडा नरसल । देवनल। सुरपुर-सञ्चा पु० [सं०] [स्त्री॰ सुरपुरी] १ देवताओ की पुरी, अमरा- वती। २ देवलोक । स्वर्ग। उ०-नृप कर सुरपुर गवनु सुरनाह-सज्ञा पु० [स० सुरनाथ] देवराज इद्र । उ०-परिघा कहें जादव हेरि हयो। सुरनाह तवे गत चेत भयो।--गिरिधर सुनावा ।---मानस, २।२४६ । (शब्द०)। मुहा०-सुरपुर सिधारना = मर जाना, गत हो जाना । सुरनिम्नगा-पञ्चा खी० [स०] गगा। सुरपुरकेतु-सचा पु० [स०] इद्र । उ०--नृप केतु बल के केतु सुर- सुरनिगंध-देश० पुं० [सं० सुरनिर्गन्ध] तेजपत्ता । तेजपन्न । पत्रज । पुरकेतु छन महें मोहही।-गि० दास (शब्द०)। सुरनिर्मरिणी-सज्ञा स्त्री० [सं०] आकाशगगा । सुरपुरी-सज्ञा स्त्री॰ [स०] दे० 'सुरपुर' । सुरनिलय-मज्ञा पु० [स०] सुमेरु पर्वत, जहाँ देवता रहते है । सुरपुरोधा-सचा पुं० [स० सुरपुरोधस्] देवताओ के पुरोहित, बृहस्पति । सुरप-सचा पु० [सं० सुरपति] इद्र। उ०-या कहि सुरप गयहु सुरपुष्प-सञ्ज्ञा पुं० [स०] देवकुसुम । स्वर्गीय पुष्प । सुरधाम । -पद्माकर (शब्द॰) । सुरप्रतिष्ठा–सञ्चा स्त्री॰ [स०] देवमूर्ति की स्थापना। सुरपति--सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ देवराज , इद्र । उ०-सुरपति निज रथु सुरप्रवीर-सद्धा पु० [स०] एक अग्नि । तुरत पठावा ।-मानस, २।८८ । २ विष्णु का एक नाम । उ०-सुरपति गति मानी, सासन मानी, भृगुपति को सुख भारी। सुरप्रिय'--सधा पुं० [स०] १ इद्र । २ बृहस्पति । ३ एक प्रकार का -केशव (शब्द०)। पक्षी । ४ अगस्त्य । अगस्तिया। ५ एक पर्वत का नाम । सुरपतिगुरु-मना पु० [स०] वृहस्पति । सुरप्रिय-वि० जो देवताओ को प्रिय हो । सुरपतिचाप--सञ्ज्ञा पु० [स० jइद्रधनुप । सुरप्रिया-सवा स्त्री॰ [सं०] १. एक अप्सरा का नाम । २ चमेली। सुरपतितनय-सना पुं० [स०] १ इद्र का पुत्र, जयत । २ अर्जुन। जाती पुष्प । ३ सोना केला । स्वर्णरभा। सुरपतित्व-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] सुरपति का भाव या पद। सुरफाँक ताल--सज्ञा पुं० [हिं० सुर+फांक (= खाली) + ताल] सुरपतिपुर-मझा पु० [स०] देवलोक । स्वर्ग। उ०--भूपति सुरपति- मृदग का एक ताल । इसमे तीन आघात और एक खाली होता पुर पगु धारेउ ।-मानस, २।१६० । है। जैसे,—धा घेडे, नागध, घेडे नाग, गद्दी, घेडे नाग धा ।