पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३९०

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सुरमादानी ७०१० सुरवाल' सुरमादानी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० सुरमह् + दान (प्रत्य॰) J लकडी या सुररिपु-नज्ञा पुं० [०] देवताप्रो के शत्रु, असुर । राक्षम । धातु का शीशीनुमा पान जिसमे सुरमा रखा जाता है । सुररूख, सुररूप--पग पुं० [४० सुर+ हिं० रुव ( = वृक्ष)] सुरमानी-वि० स० सुरमानिन्] अपने को देवता समझनेवाला। कल्पवृक्ष । उ०-(क) नव परलव फल सुमन मुहाए। निज सुरमा सुफेद-सशा पु० [फा०] १ एक प्रकार का खनिज पदाथ जो सपति सुररुख लजाए --मानम, १।२२७ । (ख) राम नाम 'जिपसम' नाम से प्रसिद्ध है। सज्जन सुररूपा। राम नाम कलि मृतक पियूपा ।-रघुराज विशेष-इसका रंग पीलापन लिए सफेद होता है। इससे 'पेरिस (शब्द०)। प्लास्टर' बनाया जा सकता है जिससे एलक्ट्रो टाइप और रवड सुरर्षभ-पशा पुं० [०] १. देवताग्री मे श्रेष्ठ, इद्र । २ शिव । महादेव । की मोहर के सांचे वनाए जाते हैं । यह मुख्यत शीशे और धातु सुरपि-सञ्चा पु० [सं० मुर+ ऋपि] देवनापि । देवपि । की चीजे जोडने के काम मे पाता है । सुरलता-सरा ली० [सं०] वडी माल रुगनी। महाज्योतिप्मती लता। २ एक खनिज पदार्थ जो फिटकरी के समान होता है और काबुल सुरललना--सरा सी० [म०] देववाला । देवागना । के पहाडो पर पाया जाता है। आंखो की जलन, प्रमेह, आदि सुरला--सदा सी० [म०] १ गगा। २ एक नदी का नाम । रोगो मे इसका प्रयोग होता है । सुरलामिका--सशा स्त्री० [स०] १ वशी । २ वशी की ध्वनि । सुरमृत्तिका-सशा स्रो० [सं०] गोपीचदन । सौराष्ट्रमृत्तिका । सुरली--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० नु + हिं० रली] सुदर क्रीडा । उ०-लखि सुरमेदा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] महामेदा । सु उदर रोमावली अली चली यह बात । नाग लली मुरली सुरमै--वि० [फा० सुरमई। दे० 'सुरमई' । कर मन निवली के पात ।-शृगार मतमई (शब्द०)। सुरमौर-सज्ञा पु० [स० सुर + हिं० मौर) विष्णु । उ०--जाके सुरलोक-सशा पु० [मं०] स्वर्ग । देवलोक । विलोकत लोकप होत विसोक लहैं सुरलोक सुठोरहि । सो यौ०-सुग्लोकराज्य = देवलोक का राज्य । कमला तजि चचलता अरु कोटि कला रिझवै सुरमौरहि। सुरलोक सु दरी-मशा मी० [सं० मुग्लोक सुन्दरी] १ अप्सरा । देवा- -तुलसी (शब्द०)। गना । २ दुर्गा का एक नाम फिो०] । सुरम्य-वि० [स०] अत्यत मनोरम । अत्यत रमणीय । बहुत सुदर । सुरवधू-सम्रा सी० [सं०) देवतायो की पत्नी। देवागना । सुरया सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की दाँती जो झाडी काटने के सुरवर-मज्ञा पुं० [सं०] देवतायो मे श्रेष्ठ, इद्र । काम मे आती है। सुरवत्म-सज्ञा पुं० [सं० सुरवमन्] देवतानो का मार्ग । आकाश । सुरयान-सा पुं० [म.] देवताओ की सवारी का रथ । सुरवल्लभा-मशा त्री० [मं०] श्वेत दूर्वा । सफेद दूव । सुरयुवती-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सुरयुवति] अप्सरा । सुरवल्ली-सशा स्रो० [सं०] तुलसी। सुरयोषा, सुरयोषित - सज्ञा स्त्री० [स०] अप्सरा । सुरवस-संज्ञा पुं॰ [देश॰] जुलाहो की वह पतली हलकी छडी, पतला सुरराईल-सज्ञा पुं॰ [सं० सुरराज] १ इद्र । २ विष्णु। उ०- वांस या सरकडा जिसका व्यवहार ताना तैयार करने में रानी ते बूझेउ सुरराई। मांगी जो कुछ वाको भाई। रमानाथ होता है। नारी ते भापा। मांगहू वर जो मन अभिलापा।-विश्राम विशेप-ताना तैयार करने के लिये जो लकड़ियां जमीन मे गाडी (शब्द०)। जाती है, उनमे से दोनो सिरो पर रहनेवाली लकडियाँ तो सुरराज, सुरराज, सुरराट् --सज्ञा पुं० [सं०] इद्र। मोटी और मजबूत होती हैं जिन्हें 'पारिया' कहते हैं, और यौ०-सुरराज शरासन = इद्रधनुष । इनके बीच मे थोडी थोडी दूर पर जो चार चार पतली सुरराजगुरु-सज्ञा पुं॰ [स०] वृहस्पति । लकडियाँ एक साथ गाडी जाती है, वे 'सुरवस' या 'सुरस' कह- सुरराजता-सज्ञा स्त्री॰ [स०] सुरराज होने का भाव या पद। इद्रत्व । लाती है। सुरवा'-सज्ञा पुं० [सं० श्रुवस्] छोटी करछी के आकार का लकडी सुरराजमत्री-सञ्ज्ञा पुं० [सं० सुरराजमन्त्रिन] दे॰ 'सुरराजगुरु' । का बना हुआ एक प्रकार का पात्र जिससे हवन आदि मे घी सुरराजवस्ति-सज्ञा पुं० [सं०] पिडली। इद्रवस्ति । की आहुति देते है । श्रुवा। सुरराजवृक्ष सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] पारिजात तरु । परजाता। सुरवा'-सज्ञा पुं॰ [फा० शोरवा] दे० 'शोरवा'। सुरराजा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० सुरराजन्] इद्र । सुरवाडी-सशा स्त्री० [हिं० सूअर+वाडी (प्रत्य॰)] सूअरो के रहने का स्थान । सूअरवाडा। सुरराम--सज्ञा पु० [सं० सुरराज, प्रा० सुरराय] दे० 'सुरराज' । सुरराव-सञ्ज्ञा पु० [स० सुरराज, प्रा० सुरराय] दे० 'सुरराज' । सुरवायो-सज्ञा स्त्री० [स०] देववाणी । संस्कृत भाषा । उ०- नल कृत पुल लखि सिंधु मे भए चकित सुरराव। सुरवाल'- सज्ञा पु० [फा० शलवार] पायजामा । पैजामा। पद्माकर (शब्द०)। सुरवाल --सज्ञा पु० [देश॰] सेहरा। 1 इद्रपद ।