पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३९१

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सुरवास ७०११ सुरसा सुरवास-सज्ञा पुं० [स०] देवस्थान । स्वर्ग । सुरवाहिनी-सज्ञा स्त्री० [सं०] गगा। सुरविटप-सज्ञा पुं० [स०] कल्पवृक्ष । सुरविद्विष्--सज्ञा पु० [स०] दे० 'सुग्वैरी' । सुरविलासिनी- सज्ञा स्त्री० [स०] अप्सरा को०] । सुरवीयी-सज्ञा स्त्री० [सं०] नक्षत्रो का मार्ग । सुरवीर सज्ञा पुं० [स०] इद्र। उ० --गने पदाती वीर सब अरिघाती रनधीर । दोउ आँखै राती किए लखि मोहे सुरवीर। गि० दास (शब्द०)। सरवृक्ष-सज्ञा पुं॰ [सं०] कल्पतरु । सुरवेला-सचा स्त्री० [स०] एक प्राचीन नदी का नाम। सूरवेश्म --सम्रा पु० [म० सुरवेश्मन्] स्वर्ग । देवलोक । सुरतैद्य--सज्ञा पुं॰ [स०] देवताओ के वैद्य, अश्विनीकुमार । सुरवैरी-सञ्ज्ञा पु० [सं० सुरवैरिन्] देवताओ के शत्रु, असुर । सुरशत्रु-मझा पु० [स०] असुर । सुरशत्रुहन - सा पु० [स०] असुरो का नाश करनेवाले, शिव । सुरशयनो-सज्ञा स्त्री० [स०] आणढ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी । विष्णुशयनी एकादशी। सुरशाखी-सझा पुं० [स० सुरशाखिन] कल्पवृक्ष । सुरशिल्पी-सज्ञा पुं० [स० सुरशिल्पिन्] विश्वकर्मा । सुरश्रेष्ठ-सचा पुं० [स०] १ वह जो देवताओ मे श्रेष्ठ हो। २ विष्णु । ३ शिव । ४ गणेश । ५ धर्म । ६ इद्र । सुरश्रेष्ठा सज्ञा [स०] ब्राह्मी। सुरश्वेता-सज्ञा स्त्री० [स०] एक जाति की श्वेत छिपकली । बम्हनी । सुरसंघ सज्ञा पुं० [सं० सुरसडघ] देववर्ग । देवसमूह । सुरमत--सज्ञा स्त्री० [सं० सरस्वती] दे० 'सरस्वती'। सुरसभवा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] हुरहुर । आदित्यभक्ता। मुरस-सज्ञा पुं० [स०] १. बोल । हीरा वोल। बर्वर रस। २ दालचीनी । गडत्वक् । ३ तेजपत्ता । तेजपत्र । ४ रुसा घास । गधतृण । ५ तुलसी। ६ सँभालू । सिंधुवार । ७ शाल्मली वृक्ष का निर्यास । मोचरस । ८ पीतशाल । ६ एक असुर नाग (को०)। १० धूना । राल (को०) । सुरम वि०१ सरस । रसीला । २ स्वादिष्ट । मधुर । ३ सुदर । उ०-हरि श्याम घन तन परम सुदर तडित वसन विराजई। अग अग भूपण सुरस शशि पूरणकला जनु भ्राजई।-सूर (शब्द०)। सुरस-सज्ञा पुं॰ [देश॰] दे॰ 'सुरवस' । सुरसख-सज्ञा पु० [सं०] १ देवतानो के सखा इद्र । २ गधर्व । सुरसत-सा स्त्री॰ [स० सरस्वती] सरस्वती। (डि.)। सुरसतजनक-सज्ञा पुं० [सं० सरस्वती+जनक] ब्रह्मा । (डि०) । सुरसती --सञ्ज्ञा पुं० [सं० सरस्वती] १ सरस्वती। उ०--उर उर- वी सुरसरि सुरसती जमुना मिलहिं प्रयाग जिमि ।-गि० दास (शब्द०) । २ एक प्रकार की नाव । विशेष--यह नाव तीस हाथ लबी होती है और इसका आगा तथा पीछा आठ आठ हाथ चौडा होता है। इस नाव के पेंदे मे एक कुड बना रहता है जिसमे उतरकर लोग स्नान कर सकते है। सुरसत्तम-सज्ञा पु० [स०] देवतागो मे श्रेष्ठ, विष्णु । सुरसदन-सञ्ज्ञा पुं० [स०] देवताप्रो के रहने का स्थान, स्वर्ग । सुरसम-सज्ञा पु० [म० सुरमान्] स्वर्ग । सुरस म त--सज्ञा स्रो० [सं०] देवमडली। देवसभा [को०] । सुरस मघ सज्ञा स्त्री॰ [म०] देवदारु । सुरसर--सज्ञा पु० [स० सुर+ सर] मानसरोवर। उ०-सुरसर सुभग वनज बन चारी। डावर जोग कि हसकुमारी।-तुलसी (शब्द०)। सुरसर--मज्ञा स्त्री॰ [स० सुरसरित्] दे० 'सुरसरि'। सुरसरमुता--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] सरयू नदी । उ०--तुलसी उर सुर- सरसुता लसत सुथल अनुमानि |-तुलसी (शब्द॰) । सुरसरि 1--मज्ञा स्त्री० [सं० सुरसरित्] १. गगा। उ०-सुरसरि जब भुव ऊपर पावै । उनको अपनो जल परसावं।--सूर (शब्द॰) । २ गोदावरी नदी। उ०-सुरसरि ते आगे चले मिलिहैं कपि सुग्रीव । देहैं सीता की खबरि बाढे सुख अति जीव । केशव (शब्द०)। सुरसरि' --सज्ञा स्त्री०१ कावेरी नदी। (डिं०) । २ दे० 'सुरसुरी' । सुरसरित्--संज्ञा स्त्री० [स०] गगा। यो०-सुरसरित्सुत = भीष्म । सुरसरिता-मज्ञा स्त्री० [स० सुर+सरिता दे० 'सुरसरित्' । उ०- मानहुँ सुरसरिता विमल, जल उछलत जुग मीन। -विहारी (शब्द०)। सुरसरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० सुरसरित] दे० 'सुरसरि'। सुरसर्पपक--सज्ञा ५० [स०] एक प्रकार की सरसो। देवसर्षपक । सुरसा-भज्ञा सी० [स०] १ एक प्रसिद्ध नागमाता जो समुद्र मे रहती थी और जिसने हनुमान जी को समुद्र पार करने के समय रोका था। विशेप-जिस समय हनुमान जी सीता जी को खोज मे ल का जा रहे थे, उस समय देवताओ ने सुरसा से, जो समुद्र मे रहती थी, कहा कि तुम विकराल राक्षस का रूप धारण कर उनको रोको। इससे उनकी बुद्धि और बल का पता लग जायगा। तदनुसार सुरसा ने विकराल रूप धारण कर हनुमान जी को रोककर कहा कि मैं तुम्हे खाऊँगी। यह कहकर उसने मुंह फैलाया। हनुमान जी ने उससे कहा कि जानकी जी की खवर राम जी को देकर मैं तुम्हारे पाम आऊँगा। सुरसा ने कहा ऐसा नहीं हो सकता। पहले तुम्हें मेरे मुंह मे प्रवेश करना होगा, क्योकि मुझे ऐसा वर मिला है कि सबको मेरे मुह मे प्रवेश करना पडेगा । यह कह वह मुंह फैलाकर हनुमान जी के सामने आई। हनुमान जी ने अपना शरीर उससे भी अधिक वढाया । ज्यो ज्यो 7