पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४२२

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सूचक ७०४२ सूचिकाभरण सूचक'--वि० [म०] [वि० स्त्री० सूचिका] १ सूचना देनेवाला। बताने रही जो मुइ नागिन जस तूचा। जिउ पाएँ तन के भइ सूचा । वाला। दिखानेवाला। ज्ञापक। वोचक । २ भेद की खबर -जायसी (शब्द०)। देनेवाला। सूचार-वि० [स० शुद्ध] शुद्ध। साफ। सुच्चा। निखालिस । सूचक-मज्ञा पुं० १ सूई। सूची। २ सीनेवाला दरजी। ३ नाटक पवित्न । उ०--यह ससार सकल जग मैला। नाम गहे तेहि कार । सूत्रधार । ४ कथक । ५ बुद्ध । ६ सिद्ध ।७ पिशाच । सूचा |--कवीर श०, भा०, पृ०६। ८ कुत्ता । ६ बिल्ली। १० कोमा । ११ सियार । गोदड । सूचाचारी--वि० [हिं० सूचा + स० आचारी] शुद्धता और प्राचार १२. कटहरा । जंगला। १३ बरामदा। छज्जा । १४ ऊँची विचार माननेवाला । शौचाचारी । उ०--पडित मिसरा सूचा- दीवार। १५ खल । विश्वासघातक । १६ गुप्तचर । भेदिया। चारी। पाठ पढहिं अतरि अहकारी ।--प्राण०, पृ० १८०। १७ आयोगव माता और क्षत्रिय पिता से उत्पन्न पुन । १८ सूचि-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ सूई । २ एक प्रकार का नृत्य । ३ केवडा । एक प्रकार का महीन चावल । सूक्ष्म शालिधान्य । सोरो। १९ केतकी पुष्प । ४ सेना का एक प्रकार का व्यूह जिसमे थोडे चुगलखोर । पिशुन । २० शिक्षक (को०)। मे बहुत तेज और कुशल सनिक अग्रभाग मे रखे जाते हैं और यौ० - सूचक वाक्य = भेदिए द्वारा बनाई गई वात। भेदिए से शेप पिछले भाग मे होते हैं । ५ कटहरा । जंगला। ६ दरवाजे मिलनेवाली सूचना। की सिटकनी। ७ निपाद पिता और वैश्य माता से उत्पन्न सूचन---सज्ञा पु० [स०] [स्त्री॰ सूचनी] १ बताने या जताने की क्रिया। पुन । ८ एक प्रकार का मैथुन। ६ सूप बनानेवाला । शूर्पकार । ज्ञापन । २ सुगधि फैलाने की क्रिया । दे० 'सूचना' । १० करण। ११ कुशा । श्वेतदर्भ । १२ दृष्टि । नजर। सूचना--सज्ञा सी० [स०] १ वह बात जो किसी को बनाने, जताने या १३ कोई भी सूई की तरह नुकीला सिरा। जैसे, कुशसूचि सावधान करने के लिये कही जाय । प्रकट करने या जतलाने (को०)। १४ दे० 'सूची'। १५ नाटकीय कर्म । नाट्य के लिये कही हुई बात । विज्ञापन । विज्ञप्ति । अभिनय (को०)। १६ स्तूप (को०)। १७ अगचेप्टा द्वारा क्रि० प्र०--करना ।--देना।-पाना --मिलना । सकेत । हावभाव (को०)। १८ वेधन या छेदन क्रिया (को०)। २ वह पत्न आदि जिसपर किसी को बताने या सूचित करने के सूचि-वि० [स० शुचि] पवित्र । शुद्ध । (डि०) । लिये कोई बात लिखी हो । विज्ञापन । इश्तहार । ३ अभिनय। सूचिक-सञ्ज्ञा पु० [स०] सिलाई के द्वारा जीविका निर्वाह करनेवाला, ४ दृष्टि । ५ वेधना । छेदना। ६ भेद लेना। ७ हिंसा। दरजी। सीचिक । मारना। ८ गधयुक्त करना। सूचिका-सशा स्त्री० [स०] १ सूई। २ हाथी की सूंड। हस्तिशुड । सूचना--नि० अ० [स० सूचन] बतलाना । जतलाना। प्रकट ३ एक अप्सरा का नाम । ४ केवडा । केतकी। करना । उ०-हृदय अनुग्रह इदु प्रकासा । सूचत किरन मनो- सूचिकागृह, सूचिकागृहक -सज्ञा पु० [स०] दे॰ 'सूचिगृहक' । हर हासा । -तुलसी (शब्द०)। सूचिकाघर-सज्ञा पु० [म.] हाथी । हस्ती। यौ०-सूचनापट्ट == वह पट्ट या तस्ती जिसपर आवश्यक निर्देश सूचिकाभरण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक में एक प्रकार की ओपधि जो लगाए जायें । नोटिस वोर्ड । सूचनापन्न । सूचनामनी = सूचना सनिपात, विसूचिका आदि प्राणनाशक रोगो की अतिम प्रौपध विभाग का सर्वश्रेष्ठ अधिकारी । सूचना विभाग = आवश्यक मानी गई है। जानकारी एकत्र करने और उन्हें सबद्ध जनो को विभिन्न प्रकारो विशेष-इस औपव का विलकुल अतिम अवस्था मे ही प्रयोग से बतानेवाला विभाग। किया जाता है। यदि इससे फल न हुअा तो, कहते है, फिर सूचनापत्र-सज्ञा पुं० [स०] वह पत्र या विज्ञप्ति जिसके द्वारा कोई रोगी नही बच सकता। इसके बनाने की कई विधियाँ है । एक वात लोगो को बताई जाय। वह पन जिसमे किसी प्रकार की विधि यह है कि रस, गधक, सीसा, काष्ठविप और काले साँप सूचना हो । विज्ञापन । विज्ञप्ति । इश्तहार। का विष इन सवको खरल कर क्रम से रोहित मछली, भैस, सूचनिका-सज्ञा स्त्री॰ [म०] किसी ग्रथ मे क्या वणित है इसका सिल- मोर, वकरे और सूअर के पित्त मे भावना देकर सरसो के सिलेवार विवरण देनेवाली सूची। विपयनिर्देशिका । उ०- बराबर गोली बनाई जाती है, जो अदरक के रस के साथ दी या मे इतनी कथा बखानी । ताकी सूचनिका यह जानी। जाती है। दूसरी विधि यह है कि काप्ठविप, सर्पविप, दारुमुच प्रत्येक एक एक भाग, हिंगुल तीन भाग, इन सबको रोहित -व्रज०, पृ० ३। मछली, भैस, मोर, वकरे और सूअर के पित्त मे एक एक दिन सूचनी--सज्ञा स्त्री० [स०] सूचनिका । सूची । विपयमूची। भावना देकर सरसो के वरावर गोली बनाते हैं जो नारियल सूचनीय-वि० [स०] सूचना करने के योग्य । जताने लायक । के जल के साथ देते है। तीसरी विधि यह है कि विप एक पल सूचयितव्य-वि० [स०] दे॰ 'सूचनीय' । और रस चार माशे, इन दोनो को एक साथ शरावपुट मे बद सूचा-सा बी० [स०] दे० 'सूचना'। करके सुखाते है और वाद दो प्रहर तक बरावर पाँच देते है । सूचा-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० सूचित] जो होश मे हो । सावधान। उ०- सनिपात के रोगी को-चाहे वह अचेत हो या मृतप्राय-सिर पर नागमती कहें अगम जनावा । गई तपनि बरपा जनु आवा। उस्तुरे से क्षत कर सूई की नोक से यह रस लेकर उसमे भर