पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४३१

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> २ अनुकूल। दयालु। ३ प्रिय सूपगघि--वि० [सं० नूपगन्धि] जिसमे ममाला न हो। मादा (को०)। सूना' ७०५१ सूपमरना ( शब्द०)। (य) राम कहाँ गए री माता। सून भवन सूपर-सरा पुं० [म०] १ मूग, मनूर, प्रहर ग्रादि की पकी हुई सिंहासन सूनो नाही दशरथ ताता |--सूर (शब्द०)। दाल। २ दाल का जून । रमा। ३ रने की तरकारी प्रादि क्रि० प्र०-पडना |--करना।-होना। मसालेदार व्यजन । ४ बरतन । भाड। भांडा। ५ रसोइया । मुहा० - सूना लगना या सूना मूना लगना = निर्जीव मालूम होना । पाचक । ६ वाण । तीर । ७ मनाना। उदास मालूम होना। सूप'मा पुं० [सं० शूर्य] अनाज फटयने का बना हुआ पान। सरई सूना-सा पुं० [सं० शून्य ] एकात । निर्जन स्थान । या सोक का छाज। उ०-(क) देखो अद्भुत प्रविगति की सूना-सग स्त्री० [सं०] १ पुनी। वेटी। २ वह स्थान जहाँ पशु गति कैगो रूप धरयो है हो। तीन लोक जाके उदरभवन सो मारे जाते हैं। बूचडखाना। कसाईखाना । ३ मास का गूग के कोन परयो है हो।-मूर (गन्द०)। (ख) गजन दीन्हे वित्रय। मास की विक्री । ४ गृहस्थ के यहाँ ऐसा स्थान हाथी रानिन्ह हार हो। भरिगे रतन पदारथ गुप हजार हो । या चूल्हा, चक्की, अोखली, घडा, झाड मे से कोई -तुलसी (शब्द०)। चीज जिससे जीवहिंसा की सभावना रहती है। विशेष क्रि०प्र०--फटकना। दे० 'पचमूना'। ५ गलशुडी। जीभी। ६ हाथी के अकुश मुहा०-सूपभर = बहुत सा । बहुत अधिक । मूप क्या कहे छलनी का दस्ता। ७ हत्या । घात । विघ्वसन। ८ प्रकाश की किरण को जिसमे नौ सौ छेद - जिममे खुद ऐव हो वह दूसरे के (को०)। ६ नदी। सरिता (को०)। १० गले की ग्रथियो का ऐव एव बुराई को दूर भगानेवाले से क्या कह सकता शोथ (को०)। ११ हाथी को सूंड (को०)। १२ मेखला। है। उ०—सूप क्या कहे छलनी को जिसमे नौ सौ छेद । तुम शृखला (को०)। और हमको ललकारो।-फिमाना०, भा० ३, पृ०४७१। यौ०-सूनाध्यक्ष-बूचडखाने का निरीक्षक । सूनावत् = बूचडखाने सूप:--सञ्ज्ञा पु० दिश०] १ कपड़े या मन का झाड जिमसे जहाज के का मालिक। डेक आदि माफ किए जाते हैं। (लश०) । २. एक प्रकार का सूनादोष-सबा पुं० [स०] चूल्हा, चक्की, अोखली, मूसल, झाड और काला कपडा। पानी के घडे से होनेवाली जीवहिंसा का दोप या पाप । विशेष सूपक--सज्ञा पुं० [सं० सूप] रमोइया। उ०~-धीर सूर विद्वान् जो दे० 'पचसूना'। मिष्ट बनाव अन्न । सूपक की नै ताहि जो पुन पौन सपन्न - सूनापन-संज्ञा पुं० [हिं० सूना+पन (प्रत्य॰)] १ सूना होने का सीताराम (शब्द०)। भाव । २ सन्नाटा । एकात। सूनिक-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १ मास वेचनेवाला । व्याध। २ शिकारी। सूपकर्ता--सज्ञा पुं॰ [स० सूपकत] दे० 'सूचकार'। अहेरी (को०)। सूपकार--सशा पुं० [स० भोजन बनानेवाला। रसोइया। पाचक । सूनी--सज्ञा पु० [म० सूनिन्] १ मास वचनेवाला। व्याध । बूचड । उ०-तहाँ सूपकारन मुनिराई। मनिन हेत किय पाक बनाई। २ शिकारी (को०)। -रामाश्वमेध (शब्द०)। सूतु-सज्ञा पुं० [सं०] १ पुत्र । सतान । २ छोटा भाई । अनुज । सूपकारी-सज्ञा पुं० [म० सूपकारिन] दे० 'भूपकार' । उ०प्रामन ३ नाती । दौहित्र । ४ एक वैदिक ऋषि का नाम । ५ सूर्य । उचित सबहि नृप दीन्हें । बोलि नेपकारी सव लीन्हें।--तुलसी ६ पाक । अर्क वृक्ष । ७ वह जो सोमरस चुवाता हो। (शब्द०)। सूनू--सशा स्त्री० [सं०] कन्या । पुत्री । बेटी। लडकी । सूपकृत्-सा पुं० [स०] दे० 'सूपकार' । सूनृत'--मंज्ञा पुं० [स०] १ सत्य और प्रिय भाषण (जो जैन धर्मा- सूपच--सरा पुं० [सं० श्यपच] दे० 'श्वपच'। उ०-गूपच रस नुसार सदाचरण के पांच गुणो मे से एक है)। २ आनद । स्वाद का जाने ।-विश्राम (शब्द०)। मगल । कल्यारण। सूनृत'--वि० १ सत्य और प्रिय। (को०) । ४ सदाशापूर्ण (को०)। सूपचर--वि० [सं०] १ शीघ्र नीरोग होनेवाला । २ शीघ्र प्रादचित्त होनेवाला (फो०)। सनृता-संज्ञा स्त्री० [स०] १ सत्य और प्रिय भाषण। २ मत्य । ३. धर्म की पत्नी का नाम । ४ उत्तानपाद की पत्नी का नाम । ५ सूपचार-वि० [सं०] दे० 'भूपनर'। एक अप्परा का नाम । ६ ऊपा (को०)। ७. खाद्य । पाहार सूपझरना--सरा पुं० [हिं० सूप+भरना] मृप की तरह का सरई (को०)। उत्कृष्ट सगीत । का एक बरतन। सून्मद--वि० [सं०] दे० 'सून्माद' । विशेष-सूप से इनमे प्रतर इनना ही है रि इनमे हर दो मरयों सून्माद-वि० [सं०] जिसे उन्माद रोग हुअा हो । पागल । के बीच में एक नर्स नहीं होनो जिसके कारण नूप के बीच सन्या--सग पुं० [सं० शून्य] दे० 'शून्य' । उ० सून्य मे जोति जगमग मे ही झरना ना बन जाता है। इनमे बारीप अनाज नीचे गिर जगाई।-कवीर श०, भा०४, पृ १६ । जाता है और मोटा पर रह जाता है।