पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४४६

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सौभाग्यवती स्त्री द्वारा सिंदूर को एक ढग से सज्जित करने विशेष-३सकी खाने खेवडा, शाहपुर, कालानाग और कोहाट में की त्रिया। हैं । यह सब नमको मे श्रेष्ठ है। वैद्यक मे यह स्वादु, दीपक, से दुरा ---वि० [हिं० मेदुर] [वि॰ स्त्री० सेदुरी] सिंदूर के रग का। पाचक, हल्का स्निग्ध, रुचिकारक, शीतल, वीर्यवर्धक, सूक्ष्म, लाल । जैसे,-से दुरी गाय । से दुरा अाम । नेत्रो के लिये हितकारी तया त्रिदोपनाशक माना गया है। इसे सेदुरा--सज्ञा पु० [हिं० सिंदूर, सिंधोरा] सिंदूर रखने का डिब्बा। 'लाहौरी नमक' भी कहते है। सिंदूरा । से घा-वि० [स० सन्ध] १ सधान या संबधवाला। जानकार। से दुरिया -सञ्ज्ञा पु० [स० सिन्दूरिका, सिन्दूरी] एक सदावहार पौधा उ०--(क) दे नह से धानं दगो, ग्रहे कुतो ही ज्ञान । -चांकी० जिसमे सिंदूर के रंग के लाल फूल लगते है । ग्र०, भा० २, पृ० ६८ । २ मुलाकाती । मिलनेवाला । (ख) विशेष - इसके पत्ते ६-७ अगुल लवे और ४-५ अगुल चोडे, देवे से घा नू दगो साह करे सनमान ।-बांकी० ग्र०, भा०२, नुकीले और अरवी के पत्ते से मिलते जुलते हैं । फूल दो ढाई पृ०६८। अगुल के घेरे मे पांच दलो के और सिंदूर के रग के लाल होते से धानी-सज्ञा स्त्री० [सं० सज्जन, सज्ञान या सन्धान] दे० 'महिदानो' । है। इस पौधे की गुलाबी, बैगनी और सफेद फूलवाली जातियाँ उ०-यह श्रीनाय जी ने वा पटेल को हार की से धानी दोनी। भी होती हैं । गरमी के दिनो मे यह फूलता है और बरसात के -दो सौ बावन०, भा० १, पृ० २२१ ॥ अत मे इसमे फल लगने लगते हैं । फल लवोतरे, गोल, ललाई सेंध-सज्ञा स्रो॰ [देश०) दे० 'संघ'। उ०-चोर पैठि जस से घि लिए भूरे तथा कोमल महीन महीन कांटो से युक्त होते हैं। सवारी । जुग्रा पैत जेउं लाख जुग्रारी।-जायसी ग्र० (गुप्ता०), गूदे का रग लाल होता है। गूदो के भीतर जो वीज होते हैं, पृ० २६५ : २ सेंधा नमक । उन्हें पानी मे डालने से पानी लाल हो जाता है। बहुत स्थानो से घिया-वि० [हिं० सेध] सेंध लगानेवाला । दीवार मे छेद करके पर रग के लिये ही इस पौधे की खेती होती है। शोभा के लिये चोरी करनेवाला । जैसे-से शिया चोर । यह बगीचो मे भी लगाया जाता है। आयुर्वेद मे यह कडवा, से घिया--सञ्ज्ञा पुं० [मं० मेट] १ ककडी की जाति की एक वेल चरपरा, कसैला, हलका, शीतल तथा विपदोष, वातपित्त, वमन, जिममे तीन चार अगुल के छोटे छोटे फल लगते हैं। कचरी । माथे की पीडा, आदि को दूर करनेवाला माना गया है। सेंध । पेहटा । २ एक प्रकार की ककडी । फट । पर्या० --सिंदूरपुष्पी । सिद्दर । तृणपुप्पी। रक्तबीजा। रक्तपुष्पी। विशेप-यह खेतो मे प्राय अापसे आप उपजता है। वीरपुप्पा । करच्छदा । शोणपुष्पी। ३ एक प्रकार का विप। से दुरिया-वि० सिंदूर के रग का । खूब लाल । से धिया-सज्ञा पुं० [मरा० शिंदे] ग्वालियर का प्रसिद्ध मराठा राज- यौ० -से दरिया आम = वह आम का फल जिसका छिलका वश जिसके सस्थापक रणजी शिंदे थे। लाल सिंदूर के रग का हो । से घी-मज्ञा स्त्री॰ [सिंध (देश, जहां खजूर बहुत होता है, मरा० से दुरी 1-सज्ञा स्त्री० [हिं० मेदुर + ई (प्रत्य॰)] सिंदूर के रग की लाल शिदी] १ खजूर । २ खजूर की शराब । मीठी शराव । गाय । उ० -कजरी धुमरी से दुरी धौरी मेरी गया। दुहि ल्याऊँ से धी-सज्ञा सी० [सं० सेट्] १. खेत की ककडी। फूट । २ कचरी। मैं तुरत ही तू करि दै छया।-सूर (शब्द॰) । पेटा। सेध'-मञ्ज्ञा श्री० [स० सन्धि] चोरी करने के लिये दीवार में किया से घु-सज्ञा पुं॰ [स० सिन्धु] समुद्र । सिंधु । उ०-- साधु के महिमा हुआ वडा छेद जिसमे से होकर चोर किसी कमरे या कोठरी कहि नहि जाई । जैसे सेंधु जल थाह न पाई।-सत० दरिया, मे घुसता है । सधि । सुरग । सेन । नकव । पृ० १२ । विशेष-सस्कृत के नाटक 'मृच्छकटिक' मे इसके अनेक प्रकार से घुर@-सज्ञा पु० [स० सिन्धु, हिं० सेधु + र (प्रत्य॰)] दे॰ वरिणत हैं। 'समुद्र' । उ०--एह भव से धुर कत सभ खाई। भंवर तरग क्रि० प्र०-देना ।—मारना ।-लगना। धार कठिनाई।-सत० दरिया, पृ०२०। सेंध'---संज्ञा स्त्री॰ [देश०] १ गोरखककडो। फूट । मृगेरु । २ से धुर@-तशा पु० [म० मिन्धुर] दे॰ सिंधुर । पहटा । कचरी। से धुर-सज्ञा पुं॰ [स० सिन्दूर] दे० 'सेंदुर' । से घना--क्रि० स० [हिं० सेंध + ना (प्रत्य॰)] सेंघ या सुरग लगाना । सेंबल-सशा पु० [स० शाल्मली, हिं० सेवर] दे० सेमल । से घना'--क्रि० स० [स० सन्धान] सबधित करना । स्थापित करना । उ.---यहु ससार से वल के सुख ज्यू तापर तूं जिनि फूल । सधान करना । उ०-पज सो पज सनेह मिल कर से धिय दारि -सतवानी०, भा०२, पृ०६२। सुधारि सुध भिर ।-पृ० रा०, १२ । ३६६ । सें भा-सशा पु० [देश॰] घोडो का एक वात रोग। सें चार-सञ्ज्ञा पु० [स० सैन्धव] एक प्रकार का नमक जो खान से से भु-सज्ञा पु० [स० स्वयम्भू] दे० 'स्वयंभू' । उ०-वर सिरदार निकलता है। सैधव । लाहौरी नमक । विभार से भु चहुमान नाह वर ।-पृ० रा० २५-३०७ ।