पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४५१

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मे से एक। सेतुबंधन ७०७१ सेनजित् सेतुववन-पञ्ज्ञा पुं० [स० सेतुबन्धन] १ सेतुनिर्माण पुल बाँधना। सेन'-सज्ञा पुं० [स०] १ शरीर। तन । देह । २. जीवन । ३ बगाल २ पुल । ३ वांध । सीमा की मेड । की वैद्य जाति की उपाधि । सेतुवध रामेस्वर--सज्ञा पुं० [स० सेतुबन्धरामेश्व.] दे॰ १ 'सेतुबंध' यो०--सेनकुल = दे० 'सेनवश'। और २ 'रामेश्वर'। ४ एक भक्त नाई। सेतुभेत्ता---शा पु० [स० सेतुभेतृ] वह व्यक्ति जो पुल, बाँध आदि विशेष--इसकी कया भक्तमाल में इस प्रकार है। यह रीवां के को तोडता हो किो०] । महाराज की सेवा मे था और बडा भारी भक्त था। एक दिन सेतुभेद -सशा पु० [स० सेतु का भग हाना । पुल का टूटना। वाँध साधुसेवा में लगे रहने के कारण यह समय पर राजसेवा के का टूटना। लिये न पहुँच सका । उस समय भगवान् ने इसका स्प वरकर सेतुभेदी-मज्ञा पुं० [म० सेतु भेदिन् | दती । उदुबरपर्णी । तिरोफल । राजभवन मे जाकर इसका काम किया। यह वृत्तात ज्ञात होने सेतुभेदो-वि० १ मर्यादा, सोमा अादि का विनाशक । २ निरोधक । पर यह विरक्त हो गया और राजा भी परम भक्त हो गए। बाधक (को०)। ५ एक राक्षस का नाम । ६ दिगवर जन साधुअो के चार मैदो सेतुवा -नशा पु० [१० सक्तु, सक्क, हिं० सतुया], दे० 'सतुआ' और 'सत्तू' ।उ०---सोइ भुजाइ सेतुवा बनवायो। तामे चारिउ माग सेन'--वि० [सं०] १. जिसके सिर पर कोई मालिक हो। मनाथ । लगायो। -रघुनाथदास (शब्द०)। २ आश्रित । अधीन । तावे । सेतुवृक्ष-सञ्ज्ञा पुं० [स०] वरुण वृक्ष । वरना । सेन--सज्ञा पु० [सं० श्येन, प्रा० सेण। बाज पक्षी। उ०--ज्यो सेतुशैल---पज्ञा पु० [स०] वह पहाड जो दो देशो के बीच मे हो। गच काँच विलोकि सैन जड, छाँह आपने तन की। टूटत अति सरहद का पहाड। आतुर अहारवस, छति विसारि पानन की।--तुलसी (शब्द०)। सेतुषाम -सज्ञा पु० [स० सेतुपामन्] एक साम का नाम । सेन --मज्ञा स्त्री० [स० सैन्य, प्रा० सेण] दे० 'सेना' । उ०-- सेत्र-वि० पु० [स०] बेडी। जजीर । बधन । शृखला। हय गय सेन चलं जग पूरी । -जायसी (शब्द॰) । सेथिया-सञ्ज्ञा पुं० [तेलगू चेट्टि, चेट्टिया, हिं० सेठिया नेत्रो की सेना -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० सन्धि] दे० सेंध' । चिकित्सा करनेवाला। आंखो का इलाज करनेवाला। सेना-मचा पु० [हिं० सैन] सकेत । इशारा । उ०-(क) तासो बहू ने सेन ही मो नाही करो।--दो सौ बावन०, भा० १, सेथील-अव्य० [स० सहित] दे० 'सहित'। उ०काधा सेयी टूट कर जमी पडो वा जीह 1-~बाँकी० ग्र०, भा॰ २, पृ० ५५ । पृ० २६० । (ख) अपने घर इन चारो को सेन दै कै पचराइ ले गई।-दो सौ बावन०, भाग १, पृ०७२। सेद-~-मज्ञा पुं० [स० स्वेद, प्रा० सेद] दे॰ 'स्वेद' । उ०—कान में कामिनी के यह आनिकै बोल परयो जनु वज्र सो नायो । सूखि सेना --शा पु० [स० शयन] दे० 'शयन'। उ०--(क) सो श्री गोवधननाय जी को उत्यापन किए। पाछ सेन पर्यत की सव गयो अंग, पीरो भयो रंग, सेद कपोलन मे सँग धायो ।- सेवा ।-दो सौ बावन०, भा॰ २, पृ० २३ । (ख) श्री नवनीत रघुनाथ बदीजन (शब्द०)। प्रिय जी को उत्थापन ते सेन पर्यत की सेवा सो पहोचि • • • सेदज-वि० [स० स्वेदज ] दे० 'स्वेदज' | उ०-~-बिन सनेह दुख होय न कैसे । शुक मूपक सुत सेदज जैसे ।-रधुनाथदास सुबोधिनी को कथा कहे ।-दो सी वावन०, मा० २, पृ० ६६ । यो०-सेन आति = शयनकाल की प्रारती। उ०--श्री ठाकुर जी (शब्द०)। की सेन प्राति करि के अपने घर तें चलतो।-दो सी बावन०, सेदरा--सज्ञा पु० [फा० सेह (= तीन) + दर (= दरवाजा)] वह भा०, पृ० २६ । सेनभोग = शयनकालीन भोग। उ०--पाछे मकान जो तीन तरफ से खुला हो । तिदरी। सेन भोग धरि श्री ठाकुर जी की रसाई पोति, भाग सगइ, ग्राति सेदिवस-वि० [भ०] [वि० सी० सदुपी] बैठा हुगा । उपविष्ट (को०] । करि .. मुरारीदास सोवते ।--दो मी वावन०, भा०, सेदु:--सजा पु० [सं०] महामारत मे वरिणत एक राजा का नाम । पृ० १०२ सेद्धव्य-वि० [स०] १ निवारण योग्य । हटान या दूर करने योग्य । सेनक--सा पु० [स०] १ हरिवंश वरिणत शबर को एक पुत्र का २ जिमे हटाना या दूर करना हो । नाम । २ एक वैयाकरण का नाम । सेघर--सज्ञा पु० [स०] १ निषेध । निवारण । मनाही । २ जाना। सेनजित्'-वि० [स०] सेना को जीतनेवाला । पहुचना । ३ दुम । पुच्छ। (को०)। सेनजित् --ससा पुं० १ एक राजा का नाम । २ श्रीकृष्ण के एक पुत्र सेध-वि० दूर ररनेवाला । हटानेवाला (को०] । का नाम । विश्वजित् के एक पुत्र का नाम । ४ बृहत्लार्मा के एक सेधक-१० [सं०] प्रतिरोधक । हटाने या रोकनेवाला । पुत्र का नाम। ५ कृशाश्व के एक पुत्र का नाम । ६ विशद के सेधा-सा सी० [म०] साही नाम का जानवर जिसकी पीठ पर कांटे एक पुत्र का नाम। होते है। खारपुश्त । सेनजित्- --सश सी० एक अप्सरा का नाम ।