पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४५६

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सेराना' ७०७६ मलार' सेराना@-कि० अ० [सं० शीतल, प्रा० सीग्रड, हिं० सीयर मीरा ---जायगी। (गन्द) । (ग) देखि जाताजाल हाहापार दमकय १ ठडा होना । शीतल होना। उ०--नैन मेराने, भूखि गइ, सुनि, कायो धगे वरो धाए दीर बाबान है। लिए नृल मेत देखे दरस तुम्हार ।--जायसी (शब्द०)। २ तृप्त होना । पान परिघ प्रदन दर, माजन मी धीर धरे बनबान हैं।-- तुष्ट होना । ३ जीवित न रहना । जीवन ममाप्त होना। ४ तुलमी (शब्द०)। समाप्त होना। खतम होना। उ०-उठ्यो असारा नृत्य विशेष-यद्यपि यह शब्द कादरी में पाया है, तथापि प्राप्त हो जान सेराना । अपने गृह सुर कियो पयाना ।--सबल (शब्द०)। ५ पडता है, मस्कृत नहीं। चुकना । तै करना । करने को न रह जाना। उ०--पथी कहाँ मेल'--मपा श्री० [दशी० मेनि ( = र)]ी। माना | ३०- कहाँ सुमताई । पथ चले तर पथ सेराई । —जायसी (शब्द॰) । मापो की मन पर्ने मुडमान गते में जाने रहने लग। सेराना--कि० स १ ठढा करना। शीतल करना। २ मूर्ति, प्रतीक -लत्तू (गन्द०)। आदि जल मे प्रवाहित करना या भूमि मे गाटना। जैसे सेला-ज्ञा पुं० [देश॰] नाय गे पानी उनी ने | TT TT बग्नन । ताजिया सेराना। मेल'-सग पुं० [सं० मिना ( = एक पाया जिमा यों में रने उनले सेराब-वि० [फा०] १ पानी से भरा हुअा। २ मीचा हुमा । तरापोर । थे) अथवा देगी नि (= रज्ज)] १ एक प्रार या मन क्रि० प्र०-होना। का रस्सा जो पहाडी मे पुरा बनाने के काम मे प्राता है । २ यौ0-सेराव हासिल = जर वेज । उपजाऊ । लाभकर । हल में लगी हुई वह नली जिगमे ने होर कुंद मे का बीज जमीन पर गिरता है। सेराबी-सज्ञा मी० [फा०] १ मरा । सिंचाई । २ तरी । सेराल?-सचा पु० [स०] हलका पीलापन । सेल-सपा पुं० [अ० शेन तोर का वह गोना निममें गोलियां ग्रादि भरी रहती है। (फौज)। सेराल'--वि० हल्का पीला। पीताभ । यो०--न का गोना। सेराह-सज्ञा पुं० [स०] दूध के समान सफेद रंग का घोडा । दुग्ध मेलखडी-मश को [देश० मेटि] दे० 'नियो', 'बडिया' । वर्ण का अश्व । उ०-मृति बनाने के लिये सेलवडी नाई जाती थी।-हिंदु० सरीवर-सशा स्त्री॰ [देशी] रय्या । वीथी। तग गली । उ०--(1) मम्यता, पृ०१६ । ढोलउ नरवर मेरियां धण पूगल गलियांह ।-ढोला०, दू० १८६ । (ख) सेरी कबीर मांकडी चचल मनवां चोर ।-कवीर मेलग--समा पुं० [सं०] लुटेरा । सार। ग्र०, पृ० २२७ । सेलना-पि० अ० [सं० मेन, रेन (3 जाना)] मर जाना । चल सेरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० श्रेणी, मेणी, मेडि, सेढी, हि० सीटी] दे० वमना। जैगे--वर मेल 1 । (बाजार)। 'सीढी' । उ०--बाह्य लक्ष्य पोर बहुतेरी। सो जान जो पाव सेला'--पा पु० मि० शानक (छि, मटनी का मेहरा)] सेरी।--मु दर० ग्र०, भा० १, पृ० १०५। १ रेशमी चादर या दुपदा । २ फा। गनी शिरोध । सेरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा०] १ तृप्ति । सतोप । २ मन भरना। अघाने उ.-मोज कुद ना भूगन नयेता धरै कोऊ पाग मेला कोज मज माजला गो।--गोपाल (Tन्द०)। का भाव । ३ ऊबने की स्थिति या भाव । ऊब । सेरीना-सज्ञा स्त्री० हिं० सेर] अनाज या चारे का वह हिस्सा जो मेला'मा पु० [स० पानि] वर धार जो भूसी घाटने से पहले कुछ असामी जमीदार को देता है। उपाल लिया गया हो। मुजिया धान । सेरु--वि० [स०] बांधनेवाला। जयाडनेवाला। सेलान-वि० [हिं० न( = घूमगा), अग्या म० शेत, प्रा० सेल, मेल्ल] १ घुमार। स्वच्छनी । मनमोगी। २ ठिताना । सेरुश्रा--सज्ञा पु० [सं० सेर ( = एक तौल)+ हिं० उवा (प्रत्य॰)] टिकान । उ०--यांगो मे दी नही, ब्द पावै जान । मन वैश्य । (सुनार)। बुध तहां पहुँचे नहीं, कौन यह सेना71-दरिया० बानी, सेरुला-मज्ञा पुं० [देशज] दे० 'सेरवा' । पृ०२२। सेरुराह--सञ्ज्ञा पु० [स०] वह सफेद घोडा जिसके माथे पर दाग हो । सेलानी-० [हिं० मैलानी] २० सेनानी' । उ०--मन तूं निपट सेरुवा-सज्ञा पुं० [स० स्वर, प्रा० सेर ( = स्वतन)] १ स्वेच्छाचारी। भयो मेलानी । ते मत सीव नहिं मानी।-राम० वर्ग०, पृ०४३ । स्वैराचारी । २ मुजरा सुननेवाला या वेश्यागामी । (वेश्या)। सेलार@रसमा पु० [सं० सेगल ( = हाका पीना)] अश्व को एक सेरू-सशा पु० [स० शेलु] लिसोडे का पेडा । लमेडा । उत्तम जाति । उ०—-मुलताणी पर मन बसी नुहँगा नई सेर्प्य वि० [स०] १ ईर्ष्यायुक्त । ईर्ष्यालु । डाह करनेवाला । २ ईर्ष्या सेलार । हिरणाखी हमि नइ कहा प्राण हेडि तुपार ।-- पूर्वक (को०)। ढोला०, दू० २२६ । सेल-सञ्ज्ञा पुं० [३० शल्य, प्रा० सेल अथवा देश० सेल्ल] बरछा। सेलार'- पु० [देश॰] एक प्रकार का उदयच या गीत ।--रघु० भाला। साँग। उ०-(क) वरसहिं वान सेल घनघोरा । रू०, पृ० १३४॥ 1