पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४५८

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सेव ७०७८ सेवनी मे गिरते और पकते जाते हैं । यह अधिकतर नमकीन होता है । सेवग-सज्ञा पुं० [सं० सेवक दे० 'सेवक' । उ०---यह विचारि सिंव पर गुड मे पागकर मीठे सेव भी बनाते हैं। कै मदिर गए और आप एक सेवग कनै राखि सिव को पोडस सेवर २-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सेवा] दे० 'सेवा' उ०-कर जो सेव तुम्हारी प्रकार पूजन करयो। ह० रासो०, पृ० १६१ । सो सेइ भो विष्णु, शिव, ब्रह्म मम रूप सारे।—सूर (शब्द०)। सेवडा-मशा पु० [स० श्वेतपट, प्रा० सेग्रवड,सेवड, अयवा सं० श्वेताम्बर प्रा० सेप्रवर, सेबर, सेवरा, सेवडा] १ जैन माधुग्रो का एक सेव--सज्ञा पु० [स० सेव, सेवि, मि० फा० सेब] दे० 'सेव' । उ०-- भेद । उ०-श्री शकराचार्य जी ने उस काम कोतुक वाद को कहुँ दारव दाडिम सेव कटहल तूत अरु जभीर हैं। -भूषण इस ढग से समझ के कुवादी सेवडो को वाद मे परास्त ग्र०, पृ० १५1 किया।-भक्तमाल, पृ० ४६७ । २ एक ग्राम देवता । सेव'-सज्ञा पु० [सं०] दे० 'सेवन' [को०] । सेवडा-सज्ञा पुं० [हिं० सेव+डा (प्रत्य॰)] मैदे का एक प्रकार का सेवक'-सचा पुं० [स०] [ग सेविका, सेवकनी, सेवकिन, सेवकिनी] मोटा सेव या पकवान जो खस्ता और मुलायम होता है। १ सेवा करनेवाला । खिदमत करनेवाला । भृत्य । परिचारक । सेवति:-सज्ञा स्त्री० [मं० स्वाति, सेवाति] दे० 'स्वाति' (नक्षत्र) । नौकर ! चाकर । उ०—(क) मन्त्री, भृत्य, सखा मो सेवक याते उ०-शशिहिं चकोर रविहिं अरविंदा। पपिहा को सेवति कहत सुजान ।—सूर (शब्द॰) । (ख) सिसुपन तें पितु, मातु, कर विदा।-गोपाल (शब्द॰) । वधु, गुरु, सेवक, सचिव सखाउ । कहत राम विधु बदन रिसोहैं सपनेह लखेउ न काउ |--तुलसी (शब्द०)। (ग) व्याहि के सेवती-मज्ञा ना० सं०] गुलाब का एक भेद जिसके फूल सफेद रंग के आई है जा दिन सो रवि ता दिन सो लखी छांह न वाकी। हैं होते है । सफेद गुलाव । चैती गुलाब । गुरु लोग सुखी रघुनाथ, निहालन है सेवकनी सुखदा की। विशेष-वैद्यक मे यह शीतल, तिक्त, कटु लघु ग्राहक, पाचक, रघुनाथ (शब्द॰) । (घ) उन्होने क्षीरोद नामक एक सेवकिन वर्णप्रसाधक, विदोषनाशक तथा वीर्यवर्धक कही गई है। से कहवा भेजा। गदाधरसिंह (शब्द०)। (च) अष्टसिद्धि पर्या-शतपत्नी । सेमती। कणिका। चारुकेशा । महाकुमारी । नवनिद्धि देहुँ मथुरा घर घर को। रमा सेवकिनी देहुँ करि कर ग घाटया । लक्षपुष्पा । अतिमजुला। जोरै दिन जाम ।—सूर (शब्द०)। २ भक्त । अाराधक। उपासक । पूजा करनेवाला। जैसे,—देवी का सेवक । उ०- सेवधि-सज्ञा पु० [स०] दे॰ 'शेवधि' । मानिए कहै जो वारिधार पर दवारि नौ अंगार वरसाइबो वतावै सेवन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] [वि० सेवनीय, सेवित, सेव्य, सेवितव्य] १ बारि दिन को। मानिए अनेक विपरीत की प्रतीति, पैन भीति परिचर्या । खिदमत । २, उपासना। आराधना। पूजन । ३ आई मानिए भवानी सेवकन को।-चरणचद्रिका (शब्द०)। प्रयोग। उपयोग । नियमित व्यवहार । इस्तेमाल । जैसे,- ३ व्यवहार करनेवाला। काम मे लानेवाला । इस्तेमाल करने सुरासेवन, औषधरोवन । ४ छोडकर न जाना । वास करना । वाला । जैसे,—मद्यसेवक । ४ पडा रहनेवाला। छोडकर कही लगातार रहना । जैसे,-तीर्थसेवन, गगा-तट-सेवन। ५ सयोग। न जानेवाला। वास करनेवाला। जैसे,—तीर्थसेवक । ५ उपभोग । जैसे,—स्त्रीमेवन । ६ सीना। गूंथना। ७ बोरा । सीनेवाला। दरजी। ६ वोरा । ८ बांधने की क्रिया। बांधना (को०)। ६ दूर दूर पर सीना सेवक-वि०१ सेवा करनेवाला। समान करनेवाला। २ अभ्यास या टांके लगाना (को०)। या अनुगमन करनेवाला । ३ परतन । आश्रित (को०) । सेवना–सचा पुं० [हिं० सावा] सावां की तरह को एक घास जो चारे सेवकाई-सक्षा स्री० [सं० सेवक + आई (प्रत्य॰)] सेवक का काम । के काम मे आती है और जिसके महीन दाने बाजरे मे मिलाकर सेवा। टहल । खिदमत । उ०-(क) करि पूजा सब विधि मरुस्थल मे खाए भी जाते हैं । सेवई । सर्वई । सेवकाई । गयउ राउ गृह विदा कराई । —तुलसी (शब्द०)। सेवना-क्रि० स० [सं० सेव+ हिं० ना (प्रत्य॰)] दे० 'सेना'। (ख) नाना भांति करहु सेवकाई । अस कहि अग्र चले जदुराई । उ०—हम सेवत वारी वागसर सरिता वापी कूपतट । खोवत -सवलसिंह (शब्द०)। हैं यौ ही आपु को भए निपट ही निघरघट । बज. प., सेवकालु-सज्ञा पुं० [स०] दुग्धपेया नामक पौधा । निशाभग । पृ० १२५ सेवकी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सेवक + ई (प्रत्य॰)] १ सेवावृत्ति । सेवना--सज्ञा स्त्री० [०] दे० 'सेवन' (को०] । सेवकता। सेवक धर्म । उ०—ताके पास तीन तूंबा, काँधे पर सेवनी'-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ सूई। सूची। सिवनी । २ सीवन । तो खासा को, पीछे पीठ पर तो मर्यादी सेवकी को, आगे कटि जोड । टाँका । सधिस्थान । ३ शरीर के वे अग जहां सीवन सी पर बाहिर को, या भांति सो रहै आवें।-दो सौ वावन०, दिखाई देती हो। (ऐसे स्थान सात हैं पाँच मस्तक मे), एक भा० २, पृ० ४३ । २. दासी । सेविका। टहलुई । उ०—(क) जीभ मे और लिंग मे एक । ४ जुही । जूही। दायज वसन मनि धेनु धन हय गय सुसेवक सेवकी। -तुलसी सेवनीर-सशा सी० [सं० सेविन्, सेविनी] दासी। उ०-निज (शब्द०) । (ख) सेवको सदा की वारवधू दस वीस आई ए हो सेविनी पहिचानि के वहई अनुग्रह आनिहै । करिहैं पवित्र रघुनाथ छकी वारुनी अमल सो|--रघुनाथ (शब्द०)। चरित्न मेरी जीभ अवगुण बानि है। --गुमान (शब्द॰) ।