पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४६२

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सेहा सेहिक ७०५२ विशेष-ऐसे लोग या तो तीन हजार सवार या सैनिक रख सकते संघवक-वि० [सं० सैन्धवक वि० सी० सैधविकी) संघव सबधी । थे या तीन हजार सैनिको के नायक वनाए जाते थे। संघवपति-सज्ञा पुं॰ [सं० सैन्धव ( -- सिंध निवासी) + पति ( = राजा)] सहा--सञ्ज्ञा पु० [स० सन्धि, हिं० सेंध ] कूप्रां खोदनेवाला । सिंधवासियों के राजा, जयद्रथ । उ०-सोमदत्त शशिविंद सेहिथाना-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० सेहथना] वह बुहारी या कूचा जिससे सुवेशा । सैधवपति अरु शल्य नरेशा ।-सवलमिह (शब्द॰) । खलिहान साफ किया जाता है। सैधवादिचूर्ण-सज्ञा पुं० [० सैन्धवादि चूर्ण] एक अग्निदीपक चूर्ण जिसमे सेधा नमक, हरें, पीपल और चीतामून वरावर सेही-सज्ञा स्त्री० [स० सेधा, सेधी, प्रा० सेह] लोमडी के आकार का पडता है। एक जतु जिसकी पीठ पर कडे और नुकीले कांटे होते हैं । साही। खारपुश्न । उ०~-सेही सियाल लगूर बहु कुड कदम भरि तर संघवायन -सबा पुं० [सं० सैन्धवायन] १ एक ऋपि का नाम । २ उनके वशज। रहिय । पिप्प सु जीव कवि चद ने तुच्छ नाम चौपद कहिय ।-पृ० रा०, ६।६४ । सैघवारण्य-सशा पुं० [सं० सैन्धवारण्य] महाभारत में वरिणत एक विशेप--क्रुद्ध होने पर यह जतु कांटो को खडे कर लेता है और वन का नाम। इनसे चोट करता है । लवाई मे ये काटे एक बालिश्त तक सैघवी-मन्ना स्त्री० [सं० सैन्धवी] सपूर्ण जाति की एक रागिनी । होते है। विशेष-यह भैरव राग को पुत्रवधू मानी गई है। यह दिन के सेहुड, सेहुडा-सञ्चा मा० [स० सेहुण्ड, सेहृण्डा] थूहर । सेहुड । दूसरे पहर की दूसरी घडी में गाई जाती है। इसकी स्वर- सेहुँड@t-सज्ञा पुं० [स० सेहुण्ड] थूहर का पेड। उ०-छतो नेह लिपि इस प्रकार है--धा सा रे म म प प ध ध। सा निध कागद हिए भई लखाय न टाँक । विरह तचे उघरयो सु प्रव घप प म ग ग ग ग रे सा। धा सा रे म म ग रे गरेमप सेहुँड को सो आँक ।-विहारी (शब्द०)। गरे। नि नि ध म प म गरे। प प म रे ग ग ग रे सा। किसी किसी के मत से यह पाडव है और इसमे रि वजित है। सेहुाँ-सञ्ज्ञा पुं॰ [?] एक प्रकार का चर्मरोग जिसमे शरीर पर भूरी संघी-सज्ञा स्रो० [सं० सन्धी] एक प्रकार को मदिरा जो खजूर या भूरी महीन चित्तियाँ सी पड जाती हैं। ताड के रस से बनती है। ताडी। सेहबान-सज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का करमकल्ला जिसके बीज विशेष-वैद्यक मे यह शीतल, कपाय, अम्ल, पित्तदाहनाशक तथा से तेल निकलता है। वातवर्धक मानी गई है। सेह्र-सज्ञा पुं० [प्र०] १ इद्रजाल । कीमियागरी। २ यत्र मन। संघुक्षित--संज्ञा पुं० [० संन्धुक्षित] एक साम भेद का नाम । यौ०-सेहवयान = ललित एव मुग्ध करनेवाली भाषा का व्यवहार संधू-सा स्त्री॰ [सं० सिन्धू, सैन्धवी] दे० 'संघवी' । उ०-करि लावदार दीरथ दवान। गहि सेल सांग हुव सावधान। केतेक करनेवाला । सेह्रसाज = कीमियागर । जादूगर । सेह्रसाजी धीर सधी कमान । केतेन तेग राखी भुजान । गुन गाइक किय इद्रजाज । जादूगरी। वोरन वयान । सेंधू सुर पूरिय तिही थान । -सूदन (शब्द०)। सैदूर-वि० [स०] सिंदूर से रेंगा हुया । २ सिंदूर के रग का । सिंदूरी। संपुल-सज्ञा पुं० [अ० सेम्पुल] नमूना । जैसे,—कपडे का संपुल । सैदेही-वि० [स० सह + देहिन] सदेह । सशरीर । प्रत्यक्ष। उ०- करसी तप्ति मगहर गया कवीर भरोस राम । सदेही साई संह'-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० संही! १ सिंह सवधी। सिंह का । २ सिंह के समान । मिल्या दादू पूरे काम। दादू० पृ० ३४६॥ सह-कि० वि० [हिं० सौंह) दे० 'सौंह। संघ-सज्ञा स्त्री० [सं० सन्धि] दे॰ 'सधि' । उ०--ता पच्छ सामत संहल-वि० [सं०] [वि० सी० सहली] १ सिंहल द्वीप सबधी । सिंहल नाथ मिलि एक सुवत्तिय । भोरा राइ दिसान संघ सगपन की द्वीप का । २ सिंहली । सिंहल मे उत्पन्न । कथ्थिय । -पृ० रा०, १२ । पृ० ४५५ । संधव-सज्ञा पुं॰ [स० संन्धव] १ सेंधा नमक । विशेष दे० 'सेधा' । सैहलक-सचा पुं० [सं०] पीतल (फो०] । २ सिंध देश का घोडा । सिंधी घोडा । ३ सिंघ के राजा जयद्रथ सैहली-सहा मी० [सं०] एक प्रकार की पीपल । सिंहली पीपल । का नाम । ४ एक प्रदेश का नाम । सिंधु देश (को०)। ५ विशेष-वंद्यक के अनुसार यह कटु, उष्ण, दीपन, कोष्ठशोधक, प्राकृत भाषा मे निबद्ध एक प्रकार की गीत सरचना (को०)। कफ, श्वास और वायुनाशक है। ६ सिंध देश का निवासी। पर्या-सर्पदडा । साक्षी। उत्कटा। पार्वती। शैलजा। ब्रह्म- यौ०-संधवखिल्य, सैधवधन = नमक का डला। सैधवचूर्ण भूमिना । लबबीजा । ताम्रा। अद्रिजा । सिंहलस्था। जीवला। नमक का वूरा । संघव शिला = एक प्रकार का पत्थर जो लवदडा । जीवनेत्री । जीवाला । कुरुवी। मुलायम होता है। सैहाद्रिक-सञ्ज्ञा पुं० [०] एक प्राचीन जाति का नाम । संघव-वि० १ सिंध देश मे उत्पन्न । २ सिंध देश का । सिंधुदेशीय । सैहिक'-सज्ञा पुं० [सं०] सिंहिका से उत्पन्न, राहु । सिंहिका का ३. समुद्र सवधी । समुद्रीय । ४ समुद्र मे उत्पन्न । पुत्र । सैहिकेय। जादू टोना।