पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४६६

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1 सैन्य ७०८६ सरंधी सैन्य-वि० सेना सबधी । फौज का । फौजी । विशेष-मधवा स्त्रियो के सीमत अर्थात् मांग मे लगाने के कारण सैन्यकक्ष-सज्ञा पुं० [सं०] सेना का पार्श्व भाग । दे० 'सेनाकक्ष' । सिंदूर का यह नाम पन। सैन्यक्षोभ-सा पु० [सं०] सेना का विद्रोह । फौज की बगावत । सैम--मश पुं० [देश॰] धीवरी के एक देवता या भूत । सैन्यघातक-वि० स०] सेना का विनाश करनेवाला [को०] । सैयद--शा पुं० [अ०] [म्री० सैयदा, सैयदानी, संदानी] १. मुहम्मद साहब के नाती हुमन के वश का प्रादमी। २ मुसलमानो के सैन्यघातकर-वि० [सं०] दे॰ 'सन्यघातक' । चार वर्गों या जातियो मे दूमरी जाति । उ०--सैयद अशरफ पीर सैन्यनायक-पशा सं० [सं०] सेना का अध्यक्ष । सेनापति । पियारा । जेइ मोहि दीन्ह पथ उजियारा।-जायसी (शब्द०)। सैन्यनिवेशभूमि -मशा लो० [स०] वह स्थान जहाँ सेना पठाव डाले। सैयदा, सैयदानी-समग मी० [अ०] १ सैयद वर्ग या जाति की स्त्री। शिविर । पडाव । छावनी। २ संयद की पली । सैदानी [को०] । सैत्यपति--सशक्षा पुं० [स०] सेनापति । मैयाँल:-सग पुं० [सं० स्वामी, हि० माई', या सं० बजन, प्रा० सैन्यपाल-सज्ञा पु० [स०] सेनापति । सयण] स्वामी । पति । उ०-(क) सयां भये तिलंगवा बहुप्ररि सैन्यपृष्ठ-सज्ञा पुं० [स०] फौज का पिछला हिस्सा । सेना का पश्चात् चली नहाय !--गिरिधर (शब्द) । (ख) अपने संयां बांधी भाग । प्रतिग्रह । परिग्रह । चदावल । पाट । ल रे बेची हाट हाट । कबीर (शब्द॰) । सैन्यमुख-सशा पु० [सं०] दे० 'सेनामुख' । सैया--मशा स्त्री० [सं• शय्या] दे० 'शय्या' । उ०-मैया प्रसन सैन्यवास-पशा पुं० [प०] पडाव । छावनी। वसन सुन होई। कल्पवृक्ष नामक तरु सोई 1--गोपाल सैन्यशिर-सज्ञा पुं० [सं० सैन्यशिरस्] सेना का अग्रभाग । (शब्द०)। सैन्यसज्जा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] सेना की तैयारी [को॰] । सैयादमा पुं० [अ०] १ व्याध । बहेलिया । शिकारी । २ सैन्यहता-सञ्ज्ञा पुं० [सं० सैन्यहन्त] शवर के एक पुत्र का नाम (को॰] । मछुमा । मल्लाह। 30-यक लोक यक वेद दो दरिया के सैन्याधिपति-सशा पुं० [सं०] सेनापति । किनारे । संयाद के काबू मे हैं सब जीव बेचारे। -कवीर म०, सैन्याव्यक्ष-सज्ञा पुं० [सं०] सेनापति । पृ० १५०॥ सैन्योपवेशन---सा पुं० [सं०] सेना का पडाव । सैयार'--वि० [अ०] घूमनेवाला । भ्रमण करनेवाला फिो०] । सैफ-सज्ञा स्त्री० [अ० सैफ ] तलवार । उ०-(क) यो छबि पावत हैं सैयारमा पुं० ग्रह । नक्षत्र । तारक [को०] । लखो अजन प्रांजे नन । सरस वाढ सैफन धरी जनु सिकलीगर मैयारा-सशा पुं० [अ० सैयारह] वह ग्रह जो सूर्य की परिक्रमा करे । मैन । -रसनिधि (शब्द०) । (ख) कोउ कहीत भामिनि नक्षत्र । तारक (को०)। भृकुटि विकट विलोकि श्रवण समीप लौं । ये साफ सैफ कर सैयाल-वि० [अ०] जो ठोस न हो। द्रव । तरल । जैसे-जल, तेल कतल नहिं छमै जानि तिय सजनी पलो।-रघुराज (शब्द०) मादि पदार्य (को०] । यौ०-सफ जवान = वह जिसकी जवान सत्य हो । जिसकी वाणी सैयाह-समा ५० [अ०] पर्यटक या धुमतू व्यक्ति । या कथन पुर प्रसर हो। सैफवान = नलवार लटकानेवाला सैयाही-सहा स्त्री० [अ०] घूमना। फिरना। सैरसपाटा करना । परतला। पर्यटन (को०] । सैफग--सञ्ज्ञा पुं० [स० शतफल ] लाल देवदार । विशेष-इसका सु दर पेड चटगांव से सिक्किम तक और कोकण सैरध्र--सज्ञा पुं० [सं० सैरन्ध्र] [नी० सैरन्ध्री] १ गृहदास। घर तथा दक्षिण से मैसूर, मालाबार और लका तक के जगलो मे का नौकर । २. एक सकर जाति जो स्मृतियो मे दस्यु और पाया जाता है। इसकी लकडी पीलापन लिए भूरे रंग की प्रयोगवी से उत्पन्न कही गई है। होती है और मेज, कुरसी, वाजो के सदूक आदि बनाने के काम सैरध्रिका-सरा सी० [सं० मैरन्ध्रिका] परिचारिका । दासी । पाती है। सैरध्री-सका सी० [सं० सैरन्ध्री] १ सैरध्र नामक सकर जाति की सैफा--सा पुं० [अ० सैफह] जिल्दसाजो का वह औजार जिससे स्त्री। २ अत पुर या जनाने मे रहनेवाली दासी। अत पुर वे किताबो का हाशिया काटते है। की परिचारिका । महल्लिका । ३ वह कारीगर स्त्री जो सैफी'--वि० [अ० सैफ (= तलवार)] तिरछा । तिर्यक् । उ०-- दूसरो के घरो मे काम करे। स्वतता शिल्पजीवनी । ४. नेहनि उर आवत लखौ जबही धीरज सैन । सैफी हेरन में पटे द्रौपदी का एक नाम। कैफी तेरे नैन ।--रसनिधि (शब्द०)। विशेष-जब पांचो पाडवो ने छनवेश मे मत्स्य देश के राजा सैफी--सज्ञा सी० [अ० मैफी] १ माला। सबीह । २ एक अभिचार । विराट के यहां सेवावृत्ति स्वीकार कर ली थी, तब द्रौपदी ने मारण का एक प्रयोग [को०] । भी उनके साथ एक वर्ष तक 'सैरध्री' का काम किया था। सैमतिक-मज्ञा पुं॰ [म० सैमन्तिक] सिंदूर । सेंदुर । इसी से द्रोपदी का नाम संरनी पड़ा । -