पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४७४

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सोता' ७०६४ सोद्योग वैरिवधुवरन कलानिधि मलीन भयो सकल सुखानो परपानिप सोत्सग-वि० [सोत्सङ्ग] शोकाकुन । दु गित । को सोत है।-मतिराम (शब्द०)। सोत्सर्ग समिति-राशा सी० [सं०] मत मन्त्र प्रादि का इस प्रकार सोता' -सरा पु० [स० स्रोत] १ जल की बराबर वहनेवाली या यत्नपूर्वक त्याग करना जिामे रिमी व्यगितको ट या जीव निकलनेवाली छोटी धारा। करना। चश्मा। जैसे-पहाड का को प्राघात न पहुँचे। (जा)। सोता, कएँ का सोता। उ०—(क) भूख लगे सोता मिले सोत्सव-वि० [सं०] १ उतावयुका । उत्तरगहित। • प्रफन्न । उथरे अरु विन मैल। पी तिनको पानी तुरत लीजो अपनी प्रसन्न । युश । ३ हपं या उ नागगुप्त । उत्साह पनि । गैल।- लक्ष्मणसिंह (शब्द॰) । (य) दस दिसा निर्मल मुदित सोत्सुक--वि० [सं०] १ उत्गुालाया । उन्गुणाहित । उत्करिन । उडगन भूमिमडल सुरा छयो। सागर सरित मोता सरोवर २ जिशामायान । जानने की रामना गे गुगा । गिनातु (फो०)। मवन उज्वल जल भयो ।--गिरिधरदास (शब्द०)। २ नदी ३ शोगयुषन । गोगानु । मोवान्वित (फो०) । की शाखा । नहर । उ०—जिसका (जमना की नहर फा) एक सोत्सेक-० [सं०] अभिगानी । घगयी। । सोता पश्चिम मे हरियाने तक पहुंचकर रेगिस्तान मे गप सोत्सेव-पि०11०] ऊँचाईययन । उच्च । ऊंचा। जाता है ।--शिवप्रसाद (शब्द०)। ३ मूल । उद्गम । परपरा । सोच--राया पु[सं० पोथ] ३० "गोय' । सोता--वि० [स० सोत] उत्पन्न करनेवाला । सतान उत्पन्न करने- सोदयुभ-मरण में० [d० मोदकुम्भ] एक प्रकार का ग य जो पिारो मैं वाला को०] । उद्देश्य में किया जाता है। सोतिया-सरा सी० [हिं० सोता+इया (प्रत्य॰)] सोता। उ०-~नी दस नदिया अगम बहे सोतिया, विने मे पुरइन दहवा सोदधित्व-वि० [सं०] लघु । प्रत्य । गोरा । म । लागल रे री ।--कबीर (शब्द॰) । सोदन- म० [देश॰] शीदे पाम पागर का एा टुगाडा सोतिहा।--सज्ञा पुं० [हिं० सोता + इहा (प्रत्य॰)] कूषां जिसमे सोते जिगपर गू से छेरकर वेल पटे बना होते है । विशेप-जिस गपडे पर वेन बुटा या होगा, पर उरी का पानी पाता है। रखकर बारीक गर बिठा देते हैं, जिम आपटे परतान सोती--सज्ञा स्त्री० [हिं० सोता] स्रोत । धारा। सोता । उ०-तेहि बन जाता है। जिगोप्राधार पर बेन पटे कारे जाते है। पर पूरि धरी जो मोती। जवुना मांझ गांग कह सोती।- जायसी (शब्द०)। सोदय'-वि० [सं०] १ व्याज मा नूद गमेन । मिथुरा। २ मारा शीय गहो ो उदय से मरद्ध (के)। ३ पनवग्न उगने- सोती-सा सी० [स० स्वाति] दे० 'स्वाती' । उ०--एक वर्ष वरप्यो नहिं सोती । भयो न मानसरोवर मोती। -रघुराजसिंह सोदय'-पश सं० व्याज सहित मूल धन । अमन मय मृद । वाला (फो०)। (शब्द०)। सोती-सशा पुं० [स० श्रोत्रिय, प्रा० सोत्तिय] दे० 'श्रोत्रिय' । सोदर-सपा पुं० [सं०] [स्त्री. मोदरा, सादरी] सहोदर भ्राता । सगा भाई। सोतु--सञ्ज्ञा पुं० [स०] सोम निकालने की क्रिया । सोदर'-वि• एक गम मे उत्पन्न । सोत्कठ-वि० [म० सोतरण्ठ] १ उत्पाठायुक्त । लालसायुक्त । २ शोक सोदरा-सश क्षी० [सं०] सहोदरा भगिनी। सगी बहिन । या पश्चात्तापयुक्त । उनमना । सोत्कप-वि० [स० सोत्कम्प] कांपता हुग्रा। हिलता डुलता हुआ। सोदरी-मग सी० [सं०] २० 'सोदरा'। उ०-काम की दुहाई के कपित [को०] । सुहाई सगी माधुरी को इगि के मदिर में काई उपजनि है। सोत्क-वि० [स०] जिसे उत्कठा हो। उत्कठापूर्ण । सोत्कठ । सुरनि की सूरी किधी मोदह लो मोदरी फि चातुरी को माता ऐसी बातनि सिजति है। केशव (शब्द०)। सोत्कर्ष - वि० [म०] उत्कर्षयुक्त । उत्तम । दिव्य । सोत्तरपएव्यवहार--सज्ञा पुं॰ [सं०] पाराशर स्मृति के सोदरीय-वि० [सं०] २० 'सोदर'। अनुसार इस प्रकार की शर्त कि वाद विवाद मे जो जीते, वह हारनेवाले से सोदक-वि० [सं०] १ परिणाग मे युका । फनयात । २ कगूरे या इतना धन ले। बुजियो से युक्त (को०)। सोत्प्रास'--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ चाटु । प्रिय वात । २ व्याजस्तुति । सोदक-सज्ञा पुं० गान का पूरक जो अतिम हो [को० । ३ शब्दयुक्त हास्य । सशब्द हास्य । यया--सोत्प्रास पाच्छुरित- सोदर्य -वि० सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सहोदर'। कमवच्छुरितक तथा अट्टहासो महाहासो हास प्रहास इत्यादि ।- सोदागर-मशा पुं० [फा० सौदागर] ३० 'सौदागर'। उ०-ना शब्दरत्नावली (शन्द०)। ४ व्यग्यवाक्य या कथन (को॰) । साथ मे सोदागर बोहोत पाए।-दो सौ बावन०, पृ० १६८ । सोत्प्रास--वि० १ वढाकर कहा हुया । अतिरजित । २ अतीव । सोद्यम-वि० [सं०] १ सचेष्ट । सनिय । २ युद्धार्थ कृतनिघचय [को०। अत्यत । ३ व्यग्ययुक्त । जिसमे व्यग्य हो। सोद्योग-वि० [म०] १ उद्योगी । कर्मशील । उद्योग में लगा हुमा। सोत्प्रेक्ष--वि० [स०] १ उपेक्षा के योग्य । २ उदासीनतापूर्वक । २ शक्तिशाली । मजबूत । हिंसक । ३ खतरनाक (को०)।