पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सोमनाथरस too 3 सोमभवा का वरतन। पर चढाई की और यहाँ से करोडों की सपत्ति उसके हाथ सोमपा-सज्ञा पुं० १ सोमयज्ञ करनेवाला। २ पितरो की, विशेषकर लगी। मूर्ति तोडने पर उसमे से भी बहुमूल्य हीरे पन्ने प्रादि ब्राह्मणो के पितृपुरुपो की एक श्रेणी । ३ ब्राह्मण । रत्न निकले थे। आस पास के लोगो ने महमूद के काम मे सोमपात्र--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ सोम रखने का वरतन । २ सोम पीने बाधा दी थी, पर वे सफल नही हुए। अनतर वह देवशर्मा का वरतन। नामक एक ब्राह्मण को वहाँ का शासक नियुक्त कर गजनी लौट गया। चौलुक्यराज दुर्लभराज ने उसमे सोमनाथ का सोमपान-सज्ञा पु० [सं०] सोम पोने की क्रिया । सोम पीना । उद्धार किया। इसके बाद राठौरो ने उसपर अधिकार जमाया। सोमपायी-वि० [स० सोमपायिन्] [वि॰ स्त्री० मोमपायिनी] सोम पीनेवाला। सोमपान करनेवाला। पर सन् १३०० मे यह फिर मुसलमानो के अधिकार मे आ गया । सन् १९४८ के पहले तक यह जूनागढ के नवाब वश सोमपाल--सज्ञा पु० [म०] १ मोम का रक्षक । २ गधर्व, जो मोम के शासनाधीन रहा। इसे सोमनाथ पट्टन या सोमनाथ पत्तन की रक्षा करनेवाले माने गए हैं। भी कहते हैं । सन् १९४८ मे देश को स्वतत्रता घोषित होने सोमपावन-वि० [स०] सोमपान करनेवाला । जो सोमपान करता हो। पर विभिन्न देशी राज्यो की तरह यह भी भारत सघ मे सोमपिती-सज्ञा स्त्री॰ [स० सोम + पानी] रगडा हुअा चदन रखने समिलित कर लिया गया। सोमनाथरस-सज्ञा पुं॰ [स०] वैद्यक मे एक रसौषध जिसके सेवन से सोमपोति---सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १. सोमपान । २ सोमयज्ञ । प्रमेह को अनेक प्रकार की व्याधियाँ दूर होती हैं । विशेष-इसके बनाने की विधि इस प्रकार है-फरहद मोमपीती-सज्ञा पु० [स० सोमपीतिन्] सोमपान करनेवाला। सोम पीनेवाला। (पारिभद्र) के रस मे शोधा हुआ पारा दो तोले और मूसाकानी के रस मे शोधी हुई गधक दो तोले, दोनो की कज्जली कर सोमपीथ-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] सोमपान । सोम पीने की क्रिया । उसमे आठ तोले लोहा मिलाकर धीकुमार के रस मे घोटते सोमपोथी-वि० [स० सोमपीथिन्] सोमपान करनेवाला । सोमपायी। हैं। फिर अभ्रक, वग, खपरिया, चाँदी, सोनामक्खी तथा सोना सोमपुत्र---सज्ञा पु० [सं.] सोम या चद्रमा के पुन । बुध । एक एक तोला मिनाकर घीकुमार के रस मे भावना देते है। सोमपुर-सज्ञा पु० [स०] १ सोम का नगर। २ पाटलिपुत्र का एक इसकी दो दो रत्ती की गोली बनाई जाती है जो शहद के साथ नाम [को०)। खाई जाती है। इसके सेवन से सब प्रकार के प्रमेह और सोम- रोग का निवारण होता है। सोमपुरुष-सज्ञा पुं० [स०] १ सोम का रक्षक । २ सोम का अनुचर सोमनेत्र-वि० [स०] १ सोम जिसका नेता या रक्षक हो । २ सोम के सोमपृष्ठ--वि० [सं०] (पर्वत) जिस पर सोम हो । समान नेनोवाला। सोमपेय-सज्ञा पु० [स०] १ एक यज्ञ जिसमे सोमपान किया जाता सोमप-वि० [सं०] १ जिसने यज्ञ मे सोमरस का पान किया हो । २. था। २ सोमपान | सोम पीने की क्रिया। सोमरस पीनेवाला। सोमपायी। सोमपा। सोमप-सञ्ज्ञा पुं० १ सोमयज्ञ करनेवाला। २ विश्वेदेवा मे से एक सोमप्रदोष-सज्ञा पु० [स०] सोमवार को किया जानेवाला एक व्रत। सोमव्रत। का नाम । ३ स्कद के एक पारिषद का नाम । ४ हरिवश के विशेष-इस व्रत मे दिन भर उपवास करके सध्या को शिव जी अनुसार एक असुर का नाम । ५ एक ऋषिवश का नाम । ६ पितरो की एक श्रेणी। ७ बृहत्स हिता के अनुसार एक जनपद की पूजा कर भोजन किया जाता है। स्कदपुराण मे लिखा है कि यह व्रत मनस्कामना पूर्ण करनेवाला है। अाजकल लोग का नाम। सोमपति-सज्ञा पुं० [सं०] सोम के स्वामी इद्र का एक नाम। प्राय श्रावण के सोमवारो को ही यह व्रत करते है। सोमपत्र-सज्ञा पुं० [स०] कुश जाति की एक घास । डाभ । दर्भ । सोमप्रभ-वि० [मं०] सोम या चद्रमा के समान प्रभावाला। कातिवान् । सोमपद-सज्ञा पुं० [सं०] १ हरिवश के अनुसार एक लोक का नाम । सोमप्रवाक-सञ्ज्ञा पु० [स०] सोमयज्ञ मे धोपणा करनेवाला। २ एक तीर्थ का नाम जिसका उल्लेख महाभारत मे है। सोमबधु-सज्ञा ॰ [सं० सोमबन्धु] १ कुमुद । २ सूर्य । ३ सोमपरिश्रयण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सोम निचोडने का कपडा । वह वस्त्र सोमबसी-सज्ञा पु० [स० सोमवशीय] दे० 'सोमवशीय'। उ०-परी जिससे सोम निचोडते हैं [को०] । भीर सोमेस सोमवसी सहाय भय । मार मार उचरत सेन चतुरग सोमपर्याणहन--सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सोमपरिश्रयण' । हयग्गय ।-पृ० रा०, ११६५६ । सोमपर्व-सञ्ज्ञा पुं० [स० सोमपर्वन्] सोम उत्सव का काल । सोमपान सोमबेल-सज्ञा झो० [स० सोम + हिं० वेल] गुलाँदनी या चांदनी का पौधा। करने का उत्सव या पुण्यकाल । सोमपा-वि• [सं०] १ जिसने यज्ञ मे सोमपान किया हो। २ सोम- सोमभक्ष-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सोम का पीना । सोमपान । पान करनेवाला । सोमपायी। सोमभवा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] नर्मदा नदी का एक नाम । या दास ।