पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४८९

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सोलही ८००है सोषक सेंदुर से मांग भरना, महावर लगाना, भाल पर तिलक लगाना, सीगोवानी। उ०--सोवनसिंगी कपिला गाई । -वी० चिबुक पर तिल बनाना, मेहदी लगाना, सुगध लगाना, आभूषण रासो, पृ० २५। पहनना, फूलो की माला पहनना, मिस्सी लगाना, पान खाना सोवना@ --क्रि० प्र० [स० स्व प्, प्रा० सुव, सोव + हिं० ना और होठो को लाल करना ये सोलह बातें है। (विशेष विवरण (प्रत्य॰)] दे० 'सोना' । उ०--(क) क्योकरि झूठी मानिये के लिये 'शृगार' और 'पोडश शृगार' शब्द भी देखिए)। सखि सपने की बात । जो हरि हरयो सोवत हियो सो न पाइयत सोलही-सहा बी० [हिं० सोलह + ई (प्रत्य॰)] दे० 'सोरही' । प्रात ।--पद्माकर (शब्द०)। (ख) पथ थकित मद मुकित सोला-सचा पुं[देश॰] एक प्रकार का ऊँचा झाड । मुखित सर सिंधुर जोवत। काकोदर कर कोश उदर तर केहरि सोवत। -केशव (शब्द०)। विशेष—यह प्राय सारे भारत की दलदली भूमि मे पाया जाता है । यह वर्षा ऋतु मे फूलता है। इसकी डालियां बहुत सीधी सोवनार--सज्ञा पुं॰ [स० स्वपनागार] शयनकक्ष । शयनागार । और मजबूत होती हैं। सोला हैट नाम की अग्रेजी ढग की टोपी उ.--यो बड जूड तहाँ सोवनारा |--जायसी ग्र०, पृ० १४६ । इन्हीं डालियो के छिलको से बननी है। सोवा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० सोपा] एक शाक । दे० 'सोपा'। उ०-साग चना सँग सव चौराई। सोवा अरु सरसो सरसाई।-सूर सोला-वि० [हिं० सोलह] दे॰ 'सोलह' । उ०-वारा कला सोष (शब्द०)। सोला कला पोप । चारि कला साध अनत कला जीव ।- सोवाक-सहा पु० [स०] सुहागा। गोरख०, पृ० ३१। सोवाना-क्रि० स० [हिं० सोवना का प्रे० रूप] दे० 'सुलाना' । सोलाना-क्रि० सं० [हिं० सुलाना] दे० 'सुलाना' । उ०-प्रभुहि सोवाय समाल उतारी। लियो आपने गल महें सोलाली-सक्षा स्त्री॰ [देश०] पृथ्वी । (डिं०)। धारी। -रघुराज (शब्द०)। सोलिक-वि०, सज्ञा पु० [मं०] दे० 'सोल' । सोवारी'-सज्ञा पु० [२] पद्रह मात्रामो का एक ताल जिसमे पांच सोल्लास-वि० [सं०] उल्लासयुक्त । प्रसन्न । आनदित । आघात और तीन खाली होते है। इसका बोल यह है,- सोल्लास'-क्रि० वि० उल्लास के साथ । प्रानंदपूर्वक । धिन धा धिन धाकत तागे दिनतो तेटे कता गदिधेन धा। सोल्लुठ'--वि० [सं० सोल्लुण्ठ] परिहासयुक्त । व्यग्य, हास्य से युक्त। सोवारी@R-सञ्ज्ञा स्त्री० [देशी] सवारी। उ०-सोवारी रहट घाट चुटकी के साथ। को सीस प्रकार पुर विन्यास कथा कहुनो का।-कीति०, यो०-सोल्लुठकथन, सोल्लुठभाषण, सोल्लुठभापित, सोल्लुठ- पृ०२८। वचन = परिहासयुक्त । व्यग्य, हास्य से युक्त वाक्य । सोवाल'- वि० [स०] काले या धूए के रग का । धुधला। धूमला। सोल्लुठ-सचा पुं० व्यग्य । परिहास । चुटकी । सोवाल'-मक्षा पु० धूम्र वर्ण। धुंधला रग । धूएं का रंग । सोल्लुठन-वि०, सज्ञा पुं० [सं० सोल्लुण्ठन] दे० 'सोल्लुठ' । सोवियत-सज्ञा पु० [९० सोवियत्] १ रुस का आधुनिक शासनतन। सोल्लुठोक्ति-सन्ना स्त्री० [सं० सोल्लुण्ठोक्ति] परहासयुक्त वचन । २ रूस मे किसी भी प्रदेश, गाँव या जिले की वह सभा जो मज- व्यग्योक्ति । दिल्लगी। वोली ठोली । ठट्टा । चुटकी। दूरो, सिपाहियो, निर्वाचित प्रतिनिधियो से तैयार की गई हो। सोल्लेख-क्रि० वि० [स०] अलग अलग उल्लेखपूर्वक । स्पष्टत [को० सोवैया -सज्ञा पुं० [हिं० सोवना + इया (प्रत्य॰)] सोनेवाला। सोवज-सज्ञा पुं० [हिं० सावज] दे० 'सावज', 'सोजा' । उ०--जब उ०-धमक कछु यो भ्रम के उठि आवै पावति छाह सोवैयन तें।-(शब्द०)। सोवज पिंजर घर पाया वाज रह्या वन माही।-दादू (शब्द॰) । सोवडा-सचा पुं० [स० सूतका, प्रा० सूडा] वह कोटरी जिसमे सोन्नन, सोन्नन्न-सञ्ज्ञा पु० [स० स्वर्ण] दे० 'सुवर्ण'। सोना। उदा०-दस रती सोयन के खरीचा। कबीर सा०, पृ० ८८३ । स्त्रियाँ बच्चा जनती है । सूतिकागार । सौरी । सोशल-वि० [अ०] १ समाज सबधी। सामाजिक । जैसे,-सोशल सोवणी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० शोधनी] बुहारी । झाडू । (डि०) । कानफरेस। २ समाज मे मिलने जुलनेवाला। मिलनसार। सोवन-संज्ञा पुं० [स० स्वपन, प्रा० सोवण, हिं० सोवना] सोने सोशलिज्म-सञ्ज्ञा पु० [अ०] दे० 'समाजवाद' । की क्रिया या भाव । उ०-सुरापान करि सोवन जाने । कबहुँ सोशलिस्ट-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] 'समाजवादी'। न जान्यो गहन कमाने ।-रघुराज (शब्द०)। सोष-वि० [स०] खारी मिट्टी मिला हुआ । क्षार मृत्तिका से मिश्रित । सोवन'-सच्चा पुं० [सं० स्वर्ण, प्रा० सोवण्ण, अप० सोवण] स्वर्ण । सोषक-सञ्ज्ञा पु० [स० शोषक] १ दे० 'शोषक'। उ०-सम प्रकास सोना । उ०-सु दरि सोवन वर्ण तसु अहर अलत्ता रगि । केसरि तम पाख दुहुँ नाम भेद विधि कीन्ह । ससि पोषक सोषक समुझि लको खीण कटि कोमल नेन कुरगि।-ढोला०, दू० ८७ । जग जस अपजस दीन्ह !-मानस, १७ । २ समाज का वह यो०-सोवनवानी =स्वणिम । सोने के वर्णवाला। सुनहरा । व्यक्ति या वर्ग जो न्यूनतम पारिश्रमिक एव सुविधा देकर उ०-सोवनवानी घूघरा चालण रइ परियारण। --ढोला०, मजदूरो, मेहनत कश वर्ग का शोषण करता है। आधु०) । दू० ३४३ । सोवनसिंगी स्वर्णमडित शृगवाली । सोने से मढी विशेप दे० 'शोषक'-६। । हिं० श० १०-६०