पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४९८

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सौगध ८०१८ सौजन्यता व्यापार करनेवाला। गधी। २ सुगध । खुशबू । ३ अगिया क्रि० प्र०--देना। -मिलना। -लाना। घास। भूतृण । कतृण। ४ एक वर्णसकर जाति जिसका सौगाती--वि० [हिं० सौगात + इ (प्रत्य॰)] १ मौगात के लायक । उल्लेख महाभारत मे है। उपहार के योग्य। २ उत्तम । बढिया। उमदा । सौगव'--वि० सुगधयुक्त । सुगधित । खुशबूदार। सौघा --वि० [हिं० महंगा का अनु.] सस्ता। अल्प मूल्य का। कम सौगध-सशा स्त्री० दे० 'सौगद' । दाम का । महँगा का उलटा। उ०--महंगे मनि कचन किए सौगधक - मज्ञा पुं० [स० सौगन्धक] नीला कमल । नील कमल । मोघो जग जल नाज ।—तुलसी ग्र०, पृ० ६७ । सौगधिक'-सज्ञा पुं० [स० सौगन्धिक] १ नील कमल । नील पद्म । सौचन--सज्ञा पुं० [स० शौच] दे० 'शौच' । उ०--सकल सौच करि २ लाल कमल । रक्त कमल । ३ सफेद कमल । श्वेत कमल। जाइ नहाए। नित्य निवाहि मुनिहि सिर नाए ।-तुलसी (शब्द॰) । (ख) मन उनमेख छुटत नहिं कवही सौच तिलक कलार। ४ गधतृण । भृतृण । रामकपूर । ५ रुसा घास । रोहिप तृण । ६ गवक । गधपाषाण । ७ पुखराज । पद्म- पहिरे गल माला ।-भीखा० श०, पृ० ३१ । राग मरिण। ८ एक प्रकार का कीडा जो श्लेष्मा से उत्पन्न सौचि-सज्ञा पुं० [म.] दे० 'सौचिक' । होता है। (चरक) । ६ सुगधित तेल, इन आदि का व्यवसाय सौविक-सशा पु० [सं०] सूची कर्म या सिलाई द्वारा जीविका निर्वाह करनेवाला । गवी। उ०-सौगधिक नव नव सुगधियाँ प्रभु करनेवाला । दरजी । सूचिक । सूत्रभित् । के लिये निकाल रहे । --साकेत, पृ० ३७४ । १० एक प्रकार सौचिक्य--सज्ञा पुं॰ [सं०] सूचिक का कार्य । दरजी का काम । सीने का नपु सक जिसे किसी पुरुष की इद्रिय अथवा स्त्री की योनि का काम। सूघने से उद्दीपन होता है। नासायोनि। (वैद्यक)। ११ सोचित्ति-मशा पु० [सं०] वह जो सुचित्त का अपत्य हो । सुचित्त दालचीनी, इलायची और तेजपत्ता इन तीनो का समूह । का पुत्र । त्रिसुगवि । १२ भागवत मे वर्णित एक पर्वत का नाम । १३ सौचकि-सज्ञा पु० [सं०] यज्ञ मे एक प्रकार की अग्नि । हीरक । हीरा ।-बृहत्स हिता, पृ० ३७७ । सौचुक-सज्ञा स० [स०] भूतिराज के पिता का नाम । सौगधिक-वि० सुगधित । सुवासित । खुशबूदार। सौचुक्य-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] सूचक का भाव या कर्म । सूचकता। सौगधिक वन-मज्ञा पुं० [सं० सौगन्धिक वन] १ कमल का घना झुड। कमल का वन या जगल । २ एक तीर्थ का नाम ।- सौज-सशा स्त्री० [सं० शय्या, मि० फा०, साज] उपकरण । सामग्री। (महाभारत)। साज सामान । उ०—(क) कहाँ लगि समुझाऊँ सूर सुनि जाति मिलन की प्रोधि टरी । लेहु संभारि देहु पिय अपनी बिन सौगधिका-सज्ञा स्त्री० [सं० सौगन्धिका] १ एक प्रकार की पद्मिनी। प्रमान मव सौज धरी।-सूर (शब्द०)। (ख) जन पुकारे २ वाल्मीकि रामायण में वर्णित कुबेर की नगरी की नदी हरि पै जाइ । जिनको यह सब सौज राधिका तेरे तनु सव लई का नाम। छंडाइ।--सूर (शब्द०)। (ग) जिन हरि सौज चोरि जग सौगधिपत्रक-सज्ञा पुं॰ [स० सौगन्धिपत्रक] सफेद वर्वरी। श्वेतार्जका । खाई। विगत दसन ते होहि बनाई।-रामाश्वमेध (शब्द॰) । सोगध्य--सज्ञा पुं० [स० सौगन्ध्य] सुगधि का भाव या धर्म । सुग- (घ) अलि सुगध बस रहे लुमाई । भोग सौज सब सजी धना । सुगवत्व । बनाई।- रामाश्वमेध (शब्द०)। सौगत--सज्ञा पुं० [म०] १ सुगत (बुद्ध) का अनुयायी। बौद्ध । सौज'--वि० [स० सोजस्] दे० 'सौजा' । २ धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । सौज-सज्ञा पुं॰ [स० श्वापद, प्रा० सावज्ज, साउज] दे० 'सौजा'। सौगत-वि०१ सुगत सबधी । २ सुगत मत का। सौजना@+-क्रि० अ० [हिं० सजना] शोभा देना। भला जान सौगतिक - सज्ञा पुं० [स०] १ बौद्ध धर्म का अनुयायी । २ बौद्ध पडना । उ०-बरुनि वान अस ओपहँ बेधे रन बन ढाँख । भिक्षु । ३ नास्तिक । शून्यवादी। ४ अनीश्वरवादी । सौजहिं तन सव रोवां पखिहि तन सब पांख । —जायसी सौगम्य-सञ्ज्ञा पुं० [स०] सुगम का भाव । सुगमता । अासानी । (शब्द०)। सौगरिया-सञ्ज्ञा पु० [हिं० सौगर + इया (प्रत्य॰)] क्षत्रियो की सौजन्य-सज्ञा पुं० [स०] सुजन का भाव । सुजनता। भलमनसत । एक जाति या वश। उ०-गौर सुगोकुल रामसिंह परताप उ०-उसके उदार सोजन्य के अभाव मे ग्रथ का भली प्रकार कमठ कल। रामचद्र कुल पाडु भेद चहुँवान खग्ग खुल । मूरत से सपन्न हो सकना कठिन ही था।-अकवरी०, पृ० १० । राम प्रसिद्ध कुसल तन अरु पाखरिया। पैम सिंह प्रथिसिंह २ उदारता । पौदार्य । ३ कृपा । करुणा । अनुकपा (को०)। अमरवाला सौगरिया । -सुजान०, पृ० २१ । ४ मित्रता। सौहाद (को०)। सौगात-सञ्ज्ञा ली [तु० सौगात] वह वस्तु जो परदेश से इष्ट मित्रो सौजन्यता-सज्ञा स्त्री० [सं० सौजन्य - हिं० ता (प्रत्य)] दे. को देने के लिये लाई जाय । भेट । उपहार । नजर । तोहफा । 'सौजन्य' । उ०-क्यो महाशय, यही सौजन्यता है ।---अयोध्या जैसे-हमारे लिये ववई से क्या सौगात लाए हो? सिंह (शब्द०)।