पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/५०७

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सौरपत ६०२७ सौराष्ट्रिक सौरपत-सज्ञा पुं० [स०] सूर्योपासक । सूर्यपूजक । विशेष-सूर्य एक वर्ष मे क्रम से मेप, वृष ग्रादि बारह राशियो का सौरपरिकर--सज्ञा पु० [स०] सूर्य के चारो ओर भ्रमण करनेवाले भोग करता है। एक राशि मे वह प्राय ३० दिन तक रहता है। ग्रहो का मडल । सौर जगत् । प्राय इतने दिन का ही एक सौरमास होता है। दे० 'दिन' शब्द का विशेप। सौरपि--प्रज्ञा पु० [स०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋपि । सौरभ-मज्ञा पुं० [स०] १ सुरभि का भाव या धर्म । सुगध । खुशबू । सौरवर्ष-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'सौर सवत्सर' । महक। उ०--निविध समीर सुगन सौरभ मिलि मत्त मधुप सौरसवत्सर--सञ्चा पुं० [सं०] उतना काल जितना सूर्य को मेप, वृप गुजार ।--सूर (शब्द०)। आदि बारह राशियो पर धूम आने मे लगता है। एक मेष यौ०-सौरभवाह = पवन। उ०--नहीं चल सकते गिरिवर राह । सक्राति से दूसरी मेष सक्राति तक का समय । न रुक सकता है सौरभवाह !-- पल्लव० पृ० १२। सोरभश्लथ मौर सहिता-सझा स्री० [स०] ज्योतिप विद्या का सिद्धातग्रय (को॰] । = सुगध की अधिकता से थकित। उ०--सौरभश्लथ हो जाते सौरसर--सक्षा पु० [स०] १ वस्तु, पदार्थ आदि जो सुरसा नामक पौधे तन मन, विछते झर झर मृदु सुमन शयन --युगात, पृ० ३५ । से निकला या बना हुआ हो। २ सुरसा का अपत्य या पुन । २ केसर । कुकुम । जाफरान । ३ तुबुरु नामक गधद्रव्य । तुवरु । ३ जूं। ४ नमकीन रमा या शोरवा । ४ धनिया। धान्यक । ५ वोल। हीराबोल । वीजाबोल । सौरस-वि० सुरसा सबधी । सुरसा नामक पौधे का [को॰] । ६ एक प्रकार का मसाला। ७ प्राम । अाम्र। उ०--सौरभ सौरसा--सज्ञा स्त्री० [स०] जगली बेर । पहाडी बेर (को०] । पल्लव मदन विलोका । भयउ कोप कपेउ त्रयलोका ।---तुलसी सौर सिद्धात-सज्ञा पुं० [स० सौर सिद्वान्त] ज्योतिष विद्या का एक (शब्द०)। ८ एक साम का नाम । ६ मदगध (को॰) । सिद्धातग्रथ। सौरभ-- वि० १ सुगधित। सुगधयुक्त । खुशबूदार । २ सुरभि मौरसूक्त--सञ्ज्ञा पु० [सं०] ऋग्वेद के एक सूक्त का नाम जिसमे सूर्य (गाय) से उत्पन्न । की स्तुति है । सूर्यसूक्त। सौरभक-सज्ञा पु० [सं०] एक वर्णवृत्त का नाम जिसके पहले चरण सौरसेन--सञ्ज्ञा पु० [स० शूरसेन] दे० 'श्रसेन' और 'शौरसेन' । मे सगण, जगण, सगण और लघु, दूसरे मे नगण, सगण, जगण सौरसेनी--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] एक भाषा । विशेष दे० 'शौरसेनी' । और गुरु, तीसरे मे रगण, नगण, भगण और गुरु तथा चौथे मे सौरसेय-सञ्ज्ञा पु० [स०] स्कद का एक नाम । कातिकेय । सगण, जगण, सगण, जगण और गुरु होता है। उ०--सब सौरसैधव-वि० [सं० सौरसैन्धव] १ गगा का। गगा सबधो। २. त्यागिये असत काम । शरण गहिए सदा हरी। दुख भी जनित गगा से उत्पन्न। (जैसे, भीष्म) । जायें टरी । भजिए अहो निशि हरी हरी हरी। सौरसैधव-सज्ञा पु० सूर्य का घोडा। सौरभमय-वि० [सं०] सौरभयुक्त । सुगधयुक्त । सुगधित । सौरस्य-सज्ञा पु० [स०] सुरसता । रसीला होने का भाव । सौरभित-वि० [सं० सौरभ + इत] सौरभयुक्त । महकनेवाला । सुग- सौराज्य-सज्ञा पुं० [स०] अच्छा राज्य । सुराज्य । सुशासन । धित । खुशबूदार। सौराटी-सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक गगिनी। (सगीत)। सौरभी-सन्या स्त्री० [सं०] १ धेनु । गाय । २ सुरभि गाय की पुत्री (को०] । सौराव--सज्ञा पु० [स.] नमकीन रसा या शोरवा । सौरभुवन--सञ्ज्ञा पु० [स०] सूर्यलोक । सौराष्ट्र-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ गुजरात काठियावाड का प्राचीन नाम । सौरभेय'–सञ्चा पु० [स०] १ सुरभि का पुत्र, साँड । वृषभ । २ पशुप्रो सूरत (सुराष्ट्र) के आसपास का प्रदेश । सोरठ देश । २ उक्त का झुड (को०)। प्रदेश का निवासी। ३ कुदुरु नामक गधद्रव्य । शल्लकी नियसि । सौरभेय-वि० १ सुरभि सवधी। सुरभि का। २ महक । सुगध । ४. काँसा। कास्य । ५ एक वर्णवृत्त का नाम । खुशबू (को०)। सौराष्ट्र--वि० सोरठ प्रदेश का। सौरभेयक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] साँड । वृप । सौराष्ट्रक'--सशा पु० [स०] १ सौराष्ट्र या सोरठ प्रदेश का रहने- सौरभेयी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ गाय । गो। २ महाभारत के अनुसार वाला । २ पचलौह । ३ एक प्रकार का विप । एक अप्सरा का नाम । ३ सुरभि गाय की पुत्री (को०) । सौराष्ट्रक'--वि० १ सौराष्ट्र या सोरठ प्रदेश सवधी । २ सोरठ देश मे सौरभ्य---सञ्ज्ञा पु० [स०] १ सुगध । खुशबू । २ मनोज्ञता। सुदरता । उत्पन्न । खूबसूरती। ३ गुण गौरव । कीति । प्रसिद्धि । नेकनामी। ४ सौराष्ट्र मृत्तिका-सज्ञा स्त्री० [स०] गोपीचदन । सदाचरण । सद्व्यवहार । ५ कुवेर का एक नाम । सौराष्ट्रा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] गोपीचदन । सौरभ्यद-सज्ञा पुं० [स०] सुगधित द्रव्य । एक गधद्रव्य (को०] । सौराष्ट्रिक'--वि० [म०] सौराष्ट्र या सोरठ देश सवधी। गुजरात सौरमास-सञ्चा पु० [स०] वह महीना जो सूर्य के किसी एक राशि मे काठियावाड सवधी। रहने तक माना जाता है। उतना काल जितने तक सूर्य किसी सौराष्ट्रिक --सञ्ज्ञा पु० १ सोरठ देश का निवासी। २ कांस, नाम राशि मे रहे। एक सक्राति से दूसरी सक्राति तक का समय । की धातु । ३ एक प्रकार का विषैला कद ।