पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/७६

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अदालत। होता है। के योग्य हो। ४८९२ ससादित ससत्, ससद् ४. चौवीस दिनो का एक यज्ञ । ५ समूह। ससर्गी-- सज्ञा पुं० १ मिन्न । सहचर । २ वह जो पैतृक गपत्ति का राशि (को०)। ६ किमी देश को चुने हुए जन प्रतिनिधिया विभाग हो जाने पर भी अपने भाइयो वा कुटुक्तिों आदि के की सर्वोच्च सभा (अ. पालमिट)। विशेप २० 'पामिट' । साय रहता हो। ससर्गी ---पहा मी० शुद्धि । सफाई । मसत्, ससद्-वि० १ साथ साय वैठनेवाला । २ यज्ञ में बैठने या भाग लेनेवाला [को०)। ससजन-पचा पु० [स०] [वि. ससर्जनीय, मजित, ममयं१ सयोग होना । मिलना । २ जुडना । सवढ होना। ३ अपनी ससद-सक्षा पु० [स०] १ एक यज्ञ जो २४ दिन का होता था। योर मिनाना । राजी करना। ४ हटाना । दूर करना । त्याग २ दे० 'पार्लामेट । करना । छोडना। ५ शुद्धता । स्च्छना । सफाई (को॰) । ससदन--मज्ञा पु० [स०] विपाद । खेद । खिन्नता को०] । ससर्जनोय-वि० [स०] जो ममर्जन के योग्य हो। ससनाना-क्रि० अ० [अनुध्व० दे० 'सनसनाना' । सर्जित-वि० [स०] जिसका समर्जन किया गया हो । ससय-सञ्ज्ञा पुं० [स० सशय] दे० 'सशय' । उ० -अम निज हृदय मसज्य–वि० [१०] जा मसर्जन के योग्य हो । विचारि तजु ससय भजु रामपद । -मानस, १/११५ । ससप-मज्ञा पुं० [स०] १ रेगना। सरकना। २ जिनकना। धीर ससरए-सज्ञा पु० [सं०] [वि० ससरणीय, ससरित, समृत] १ चलना । धोरे चराना। ३ वह अविक माम जो जय मामनाले वप में सरकना । गमन करना। २ सेना की अवाध यात्रा। ३ एक जन्म से दूसरे जन्म मे जाने की परपरा । भवचक्र । ४ समार । ससपए-पज्ञा पु० [म० वि० समर्पणीय, मर्पित, समी] १ जगत् । ५ राजपथ । सडक। रास्ता। ६ नगर के तोरण रेगना । मरकना । २ सिमाना। धीरे धीरे चलना। ३ के पास यात्रियो के लिये विश्राम स्थान। शहर के फाटक के चढन। । ४ महसा अाक्रमण । अचानक हमला। पास मुसाफिरो के ठहरने का स्थान। बर्मशाला। सगय । ७ युद्ध का प्रारभ । लडाई का छिडना । ८ वह मार्ग जिमसे ससपणाय -वि॰ [स०] जो रेगने, खिमरने, चटने या एकाएक याक्रमण होकर बहुत दिनो से लोग या पशु आते जाते हो । विशेष-बृहस्पति ने लिखा है कि ऐसे मार्ग पर चलने से कोई ससर्पित-वि० [स०] १ जिसने ससर्पण किया हो। २ जिसपर मसर्पण किया जाय। (जमीदार भी) किसी को नहीं रोक सकता। ससी-वि० [स० ससपिन्] [वि० सी० ससर्पियो] १ रेंगनेवाना। ससर्ग-सज्ञा पुं० [स०] १ सवध । लगाव। सपर्क। २ मेल । सरकनेवाला। २ खिसकने या धोरे धोरे चलनेवाला। ३ मिलाप । सयोग । ३ सहवास । समागम । सग। साथ । फैननेवाला । मचार करनेवाला। ४ पानी के ऊपर तैरनेवाना। ४ स्त्री पुरुप का सहवास। मैथुन । ५ घालमेल । घपला। उतरानेवाना (मुश्रुत)। अस्तव्यस्तता । ६ वात, पित्तादि में से दो का एक साथ प्रकोप। (सुश्रुत)। ७ जायदाद का एक मे होना । इजमाल शराकत । ससह -वि० [सं०] बराबरी वाला । जो समान हो को०] । साझेदारी । ८ वह विंदु उहाँ एक रेखा दूमरी को काटती हो। ससा'-मज्ञा प० [म. मगय] दे० 'मशय'। उ० नत जोनन पर पटक्यो कसा। (शुल्वसूत्र)। ६ रन जब्त । परिचय । घनिष्टता। १० मो अनान मम वाी समा।-गोपाल ममवाय (को०)। ११ अवधि (को०)। १२ स्थायित्व । (शब्द०)। स्थिरता । सातत्य (को०)। ससा -मचा पु० [म० श्वास, हिं० सॉस, मासा श्याम । प्राणवायु । उ०—कबीर ससा जीव मे, कोई न कहै समुभाइ । नाना वाणी ससगंज-वि० [सं०] जो ससर्ग या लगाव से उत्पन्न हो (को०। बोलता गो कित गया विलाइ।-कवीर ग०, पृ० ३१ । ससर्गदोप-सञ्ज्ञा पुं० [म०] वह बुराई जो किसी के साथ रहने से पावे । सगत का दोप। मसा-सा पुं० [हिं० सॅडसा] दे० 'संउमा'। 30-मसा खूटा सुख भया मित्या पियारा कत ।-कबीर ग्र०, पृ० १५ । ससगविद्या-सञ्ज्ञा पी० [स०११ लोगो से मिलने जुलने का हुनर। समाद-मज्ञा पुं० [म०] १ जमावडा। गोष्ठी। २ समा। समाज । व्यवहारकुशलता। २ सामाजिक विज्ञान । समाज विज्ञान (को०)। ससभिाव-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ ससर्ग का अभाव । मवध कान ससादन--पशा पुं० [स०] [वि० समादनीय, समादित, ससाध] १ होना । २ न्याय मे अभाव का एक भेद । किमी वस्तु के जुटाना । एकत्र करना। २ तरतीव में लगाना। क्रम- सबध मे दूसरी वस्तु का अभाव । जैसे,--घर मे घडा नही है। बद्ध करना। विशेप दे० 'अभाव' । ससादनाय--व० [सं०] ससादन करने योग्य। जिमका समादन ससर्गी-वि० [स० ससगिन्] [वि० पी० समगिरणी १ समर्ग या लगाव रखनेवाला । २ ममर्ग प्राप्त । सयुक्त। युक्त (को०)। ससादित-वि० [स०] १ एकर किया हुआ। जुटाया हुआ । २ तर ३ परिचित । रन्त जन्तवाला । हेली मेलो (को०)। तीव दिया हुआ । लगाया हुआ । सजाया हुआ। मडली। किया जाय।