पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/७८

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3 ४८९४ सस्कार ससूचित भेद खोनना । ३ कहना सुनना। ४ डाँटना डपटना। भला मसृष्टहोम -मसा पुं० [म०] अग्नि और सूर्य की एक ही मे मिली बुरा कहना । मर्त्सना करना। फटकारना। ५ जताना । हुई पाहुति । इगित करना । सकेतित करना। ससृष्टि :--सया स्त्री० [स०] १ एक साथ उत्पत्नि या आविर्भाव । २ एक मे मेल या मिलावट । मियण । ३ परम्पर संबंध । लगाव । ससूचित-वि० [सं०] १ प्रकट किया हुआ । जाहिर किया हुआ। २ डाँटा डपटा हुआ। जिमे कुछ कहा सुना गया हो । ४ हेनमेन। घनिष्ठता। मेल मुग्राफिकत । ५ बनाने की निया या भाव। मयोजन । रचना। ६ एकत्र करना । जो सूचित किया गया हो । जताया हुआ । इकट्ठा करना। जुटाना। ७ सग्रह । ममूह । गशि । ८ ससूची-वि० [सं० समूचिन्] [वि॰ स्त्री० ससूचिनी] १ प्रकट करने- दो या अधिक कामालकागे का ऐमा मेल जिसमे मा परम्पर वाला। २ जतानेवाला। ३ मला वुग कहनेवाला। फटकारने- निरपेक्ष हो, अर्थात् एक दूसरे के प्राश्रित, अतर्भूत आदि न वाला । दे० 'ससूचक' । हो। ६ महभागिता। माझेदारी (को०)। एक ही ससूच्य-वि० [स०] १ प्रकट करने योग्य । २ जताने लायक । ३ परिवार मे मिल जुनकर रहना । ० 'ममृष्टत्व'-२ । जिसे जताना या प्रकट करना हो । ४ भला बुरा कहने योग्य। ससृष्टो-पझा पु० [म० मसृष्टिन्] १ टवारे के बाद फिर मे एक जिसे भला बुरा कहना हो, या जिसके लिये भला बुरा मे हो जानेवाले मवधी । २ माझीदार । भागीदार (को०] । कहना हो। मसेक--मज्ञा पु० [स०] अन्छी तरह पानी अादि का छिडकाव या ससृति-सहा स्त्री० [म०] १ जन्म पर जन्म लेने की परपरा । अावा- मिचाई। गमन । भवचक्र । २ समार। जगत् । उ०--देव पाय मताप ससेचन-मना पुं० [म०] अच्छी तरह नर करना, मोचना या छिडकाव घन छोर ममृति दीन भ्रमत जग जोनि नहिं कोपि त्राता। कग्ना (को०] । —तुलसी (शब्द०)। ३ अनवरतना । मातत्य । नैरतर्य । प्रवाह ससेवन-मसा पु० [म०] [वि. ममेयित, ममेवनीय, ममेन्य] १ (को०)। ४ गति । दशा । अवस्था (को॰) । पूर्णतया नेवन । हाजिरी में रहना। नौकरी बजाना। २ ससृष्ट'-वि० [स०] १ एक साथ उत्पन्न या प्रावित । २ एक खूब इस्तेमाल करना । व्यवहार करना। उपयोग मे लाना । मे मिला जुला। सश्लिप्ट । मिश्रित । ३ सबद्ध । परस्पर वरतना। ३ लगाव मे रहना। मपर्क रखना (को०)। लगा हुा । ४ अतर्भूत । अतर्गत । शामिल । ५ जो जायदाद मसेवा-समाग्दी० [स०] १ व्यवहार को ज्यिा या भाव । २ पूजा । का बँटवारा हो जाने पर भी समिलित हो गया हो (भाई अर्चन। । ३ हाजिरी । सेवा । ४ प्रवृत्ति । झुकाव [को०। आदि) । ६ हिला मिला हुआ। बहुत मेल किए हुए । ससेवित--वि० [म०] १ भलीभाँति उपयोग में लाया हुआ। २ बहुत परिचित । मपन्न किया हुआ । अजाम अच्छी तरह मेवा किया हुप्रा (को०) । ८ किया हुआ । बनाया हुआ। रचित । निर्मित । ६ वमनादि द्वारा शुद्ध किया हुआ। कोठा माफ ससेविता--वि० [२० नमेवितृ] व्यवहार मे लानेवाला। उपयोग मे किया हुआ । १० जुटाया हुअा। इकट्ठा किया हुआ । सगृहीत । ११ स्वच्छ वस्त्रादि से युक्त (को०)। १२ मिला जुना। मसेवी-वि० [स० ममेविन्] १ व्यवहार करनेवाला । उपयोग विभिन्न प्रकार का (को०)। १३ प्रभावित । अभिभूत । करनेवाला । २ सेवा टहल करनेवाला को०] । आक्रात । जैसे, रोगससृष्ट । ससेव्य--वि० [सं०] १ सेवा या पूजा करने योग्य । सेव्य । २ यौ०--ससृष्टकर्मा = भले बुरे हर प्रकार के कर्मोवाला। जिसके व्यवहार्य पो०] । मो-सज्ञा पु० [हिं० साम] श्वास । प्राणवायु [को०] । कर्म भले और बुरे दोनो हो । ससष्टभाव = आत्मीयता । निकट सपर्क। ससृष्टमैथुन । ससृष्टरूप = (१) मिले जुले स्प या सस्करण --सज्ञा पुं० [स०] १ ठीक करना । दुरस्त करना । मजाना। प्राकृतिवाला । (२) घालमेल वाला । मिलावटी । समृष्टहोम । २ शुदु करना। सुधार करना। ३ परिष्कृत करना । सुदर या अच्छे रूप में लाना । -मरा पु० १ घनिष्ठता। हेलमेल । निकट का सबध । २ ४ द्विजातियों के लिये विहित पुराणानुसार एक पर्वत का नाम । सस्कार करना। ५ पुम्नको ती एक बार की छपाई । प्रावृत्ति (अाधुनिक)। ६ शवदाह करना (को०)। ससृष्टता--भज्ञा स्त्री॰ [स०] 'मनृप्टन्व' [को०] । सम्कतव्य-वि० [स०] १ व्यवस्थित या तैयार करने योग्य । ससृष्टत्व-समा यु० [स०] १ ससृष्ट होने का भाव। २ स्मृति के २ परिप्कार करने योग्य किो०] । अनुमार जायदाद का बँटवारा हो जाने के पीछे फिर एक मे सस्कर्ता-सञ्ज्ञा पुं० [म०] १ सस्कार करनेवाला। २ शुद्ध करनेवाला । शोधक (को०)। ३ भोजन पकानेवाला। पाचक (को०)। ससृष्टमैथुन-वि० [स०] [वि॰ स्त्री० ममृप्टमैथुन] १ जो मैथुनरत ४ वह जो छाप या मुद्रा डालता हो (को०)। हो । २ जो मभोग कर चुका हो। जो मैथुन कार्य संपन्न कर सस्कार--सज्ञा पु० [स०] १ ठीक करना। दुरुस्ती। सुधार । २ चुका हो [को०] । दोप या त्रुटि का निकाला जाना। शुद्धि । ३ सजाना। अच्छे दिया हुआ। लानेवाला [को०] । ससृष्ट- होना या रहना।