पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/९४

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सक्षणि ४६१२ सखुनचोन सक्षरिण-वि० [स०] सेवा करने के योग्य । सेव्य । सखा --- सज्ञा स्त्री० [अ० सखा] दे० 'सखावत' को०] । सक्षत-वि० [स०] क्षतयुक्त । अक्षत का उलटा । व्रणयुक्त | चुटल । सखावत-मजा स्त्री० [अ० मखवत] १ सखी या दाता होने का भाव । दानशीलता । २ उदारता । फैयाजी । सक्षम-वि [स०] १ जिसमे क्षमता हो। क्षमताशाली। २ काम करने के योग्य । कार्य में समर्थ । ३ जो क्षमाशील हो। क्षमा सखिता--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ मनी होने का भाव । २ बधुता । मैत्री । दोस्ती। से युक्त (को०)। सक्षार-वि० [सं०] खारी । क्षारयुक्त । नमकीन (को०) । सखित्व-मज्ञा पुं० [स०] बधुता । मित्रता । दोस्ती । सख-सञ्ज्ञा पुं० [स० सखि शब्द का कर्ताकारक एकवचन] १ सखा । सखिपूर्व' '-रया पुं० [स०] बता । मिन्नता। मित्र । माथी। (समासात मे) जैसे,---वमतसख, सचिवमख ।। सखिपूर्व-जिसमे पहले मिवता रही हो किो०)। २ एक प्रकार का वृक्ष । मखिल -वि० [म०] मित्रता मे युक्त । मैत्रीपूण । दोस्ती से भरा हुआ सखता-वि० [अ० मरुन] दे० 'मख्न । (को०] । सखतोग -सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० सख्त + ई] दे० 'सस्ती' । सखो-सद्या स्त्री० [स०] १ सहली। सहचरी | मगिनी । २ साहित्य सखत्व-सज्ञा पुं० [स०] सखा होने का भाव । सखापन । मित्रता । ग्रथो के अनुमार वह स्त्री जो ना.यका के माथ रहती और दोस्ती। जिससे वह अपनी कोई बात न छिपावे । सखर'-सज्ञा पु० [स०] एक राक्षस का नाम । विशप -सखी का चार प्रकार का कार्य होता है-मटन, शिक्षा, सखर-वि० [हिं० सखरा] १ दे० 'सखरा' । २ खरा । चोखा । उपालम और परिहाम। कटु । ३ 'खर' राक्षस से युक्त । जहाँ 'खर' को चर्चा हुई ३ एक प्रकार का छद जिसके प्रत्येक चरण मे १४ मानाएं और हो। उ०-सखरसुकोमल मजु, दोपरहित दूप णसहित । अत मे एक मगरण या एक यगण होता है। इसको रचना मे -मानस,१११४ । अादि से अत तक दो दो कलें होती है-२+२+२+२+२ सखरच -वि० [फा० शाहखर्च] दिल खोलकर व्यय करनेवाला । सर्च +२ और कभी कभी २+३+३+२+२+२ भी होता है करने मे जो कजूस न हो। और विराम ८ और ६ पर होता है । विरामभेद के अनुसार. सखरजी-वि० [हिं० सखरच] दे० 'सखरच' । कवियो ने इसके दो भेद किए है-(१) विजात और (२) सखरण-सज्ञा पुं० [हि० शिखरन] दे० 'शिखरन' । मनोरम । सखरस-सहा पुं० [स० सख ? +हिं० रस] मक्खन । नैनू । यौ०-सखी भाव । सखी संप्रदाय । सखरा' -सञ्ज्ञा पुं० [स० सक्षार] १ खारा । क्षारयुक्त । २ निखरा का सखो-वि० [अ० सखी] दाता । दानो। दानशील । जैसे,—मखो से उलटा । दे० 'सखरी'। सूम भला जे तुरत दे जबाव । (कहावत)। सखरा-सञ्ज्ञा पु० [हिं० निखरी] वह भोजन जो वी मे न पकाया सखोभाव-मज्ञा पुं० [स०] वैष्णवो के अनुसार भक्ति का एक प्रकार गया हो । कच्ची रसोई । दे० 'सखरी' । जिममे भक्त अपने आपको इष्टदेवता श्री कृष्ण आदि की सखरी-सञ्ज्ञा सी० [हिं० निखरा या निखरी का उल्टा] कच्ची पत्नी या सखी मानकर उपासना करता है। रसोई । कच्चा भोजन । जैसे, दाल, भात, रोटी आदि जो सखोसप्रदाय-सक्षा पुं० [स० सखी सम्प्रदाय] वैष्णवो का एक सप्रदाय । हिंदू लोग चौके के बाहर या किसी अन्य आदमी के हाथ की विशेष--इस सप्रदाय मे भगवत्प्राप्ति के लिये गोपीभाव को नही खाते औरजिसमे छूत मानते हैं। विशेप दे० 'निखगे। एकमात्र उन्नत साधन माना गया है। इसके प्रवर्तक स्वामी मखरो- सज्ञा स्त्री॰ [स० शिखर] छोटा पहाड पहाडी (डि०)। हरिदासजी हैं। यह सप्रदाय निवार्क मत की ही एक अदातर सखस-सज्ञा पु० [फा० शस्स] दे० 'शख्स' । शाखा हे। सखसावन-सञ्ज्ञा पु० [फा० शस्स+हिं० श्रावन, अथवा स० सुख+ सखुमा -सधा पु० [सं० शाल] शालवृक्ष । माखू । विशेष-दे० 'शाल'। शयन या सुखासन] १ पालकी । पीनस । २ पारामकुरसी। सखुन-सक्षा पु० [फा० सुखन] १ बातचीत । वार्तालाप । २ कविता। ३ पलग। काव्य । उ०-जुल्म हे गर न दो मखुन की दाद । कहर है गर सखार-सज्ञा पु० [स० सखिJ१ वह जो सदा साथ रहता हो । साथी न करो मुझको प्यार ।-कविता की, भा० ४, पृ० ४६० । सगी । २ मिन । दोस्त । ३ सहयोगी। सहचर । ४ एक ३ कौल । वचन । जैसे,-मर्दो का सखुन एक होता है। वृक्ष (को०)। ५ साहित्य मे वह व्यक्ति जो नायक का सहचर मुहा०-सखुन देना = वचन हारना । वादा करना। सखुन हो और जो सुख दुख मे उसके समान सुख दुख को प्राप्त हो । डालना = (१) कोई बात कहना।' कुछ चाहना या मांगना । विशेष-सखा चार प्रकार के होते है--पीठमर्द, विट, चेट और उ०-सखुन उन्ही पर डाले जो हँस हँस रखे मान । - विदूषक । (शब्द०)। (२) प्रश्न करना। पूछना । सवाल करना। ६ पत्नी की बहन का पति । साढ़, (को०)। ४ कथन । उक्ति । यौ०-सखाभाव = मित्रता। सखाविग्रह =प्रापसी तकरार। सखुनचीन-सचा पुं० [फा० सुखनची ] चुगुलखोर । चवाई। इधर मिनो की लडाई। उधर वात लगानेवाला।