पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

संगण' ४६१४ संगलग सगण'--वि० १ जो गणो से युक्त हो । सायियो या दल से युक्त । सगभत्ता -मा पु० [हिं० माग+भात] एक प्रकार का मान जो सदल बल । २ मेना से युक्त । ममैन्य (को०] । साग मिनाकर बनाया जाता है। इसमे पकाते समन चावल में सगता--सज्ञा स्त्री॰ [म० शक्नि] १ शिव को मार्या, पार्वती। (डि०)। साग मिला देते है। २ शक्ति । ताकत । वल । सामर्थ्य । सगर'-सज्ञा पु० [हिं० तगर] तगर का फूल और उसका पौधा । सगतिक-वि० [स०] १ उपमर्ग मे युक्त (को०)। @२ जिसकी सगर'-पद्मा पुं० [म०] १ अयोध्या के एक प्रसिद्ध मूर्यवशी राजा कही गति हो। अगतिक का विलोम । जो बहुत धर्मात्मा तथा प्रजारजक थे। सगती+-मन्ना स्त्री० [म० शक्ति] १ पार्वती । (डि०) । २ एक अस्त्र । विशेष -इनका विवाह विदर्भ राजकन्या केशिनी ने हुअा था। उनकी शक्ति । ३ ताकन । बल । दूसरी स्त्री का नाम मुमति था। इन स्त्रिया महित मगर ने सगदा--मज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का मादक द्रव्य जो अनाज से हिमालय पर कठोर तपस्या की। इसमे मतुष्ट होकर महर्षि बनाया जाता है। भृगु ने आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी पहली स्त्री मे तुम्हारा वश सगन'--सज्ञा पुं० [म० सगण] १ छद शास्त्र का एक गण । चलानेवाला पुन होगा, और दूसरी स्त्री मे ६० हजार पुत्र होगे। 'सगण"। सगर की पहली स्त्री से प्रसमजम नामक पुत्र उत्पन्न हुआ जो सगना-सञ्ज्ञा पुं० [म० शकुन, हिं० सगुन] दे॰ 'शकुन' । जैसे, वडा उद्धत था। उसे सगर ने अपने राज्य मे निकाल दिया । सगनौती। इसके पुत्र का नाम अशुमान था। सगर की दूसरी स्त्री मे साठ सगनौती--मन्ना मी० [हिं० शकुनौती] २० 'शकुनौती' । हजार पुन्न हुए। एक बार सगर ने अश्वमेध यज्ञ करना चाहा । सगपन--मचा पु० [हिं० सगापन] दे॰ 'सगापन' । अश्वमेध का घोडा इद्र ने चुरा लिया और उसे पाताल मे जा छिपाया । सगर के पुत्र उसे टूटते हूँ ढते पाताल मे जा पहुंचे। सगपहता, सगपहिता--सक्षा पु० [म० शाक प्रहित] दे० 'सगपहतो' । वहाँ महर्षि कपिल के समीप अश्व को बंधा पाकर उन्होने सगपहतो, सगपहिती-सञ्चा स्त्री० [हिं० साग + पहिती। एक प्रकार उनका अपमान किया । मुनि ने क्रुद्ध होकर उन्हे शाप देकर की दाल जो साग मिलाकर बनाई जाती है। भस्म कर डाला। अपने पुन्ना के न आने पर सगर ने अशुमान विशेष--प्राय लोग सगपहिती बनाने के लिये उडद को दाल मे को उन्हे ढूढने के लिये भेजा। अशुमान ने पातान मे पहुंच चना, पालक या बथुए का साग मिलाते हैं। कभी कभी कर मुनि को प्रसन्न किया और वहाँसे घोडा लेकर अयोध्या अरहर की दाल भी मिलाकर बनाई जाती है। पहुँचा। अश्वमेध यज्ञ समाप्त करके सगर ने तोस सहत्र वर्ष सगपिस्ता-सञ्ज्ञा पुं० [फा०] लिनोडा । बहुवार । राज्य किया। राजा भगीरथ इन्ही के वश के थे । सगपु-सधा पुं० [स०] अमरवल्ली। सगर-वि० विप मिला हुया । विपाक्त [को०] । सगबग-वि० [अनु॰] १ सरावोर । लथपथ । उ०—(क) वरसावत सगर'-सज्ञा पुं० [स० सागर] सागर । तालाव । बहु सुमन को सौरभ मद धारि । सगबग विंदु मरद सो, ब्रज सगरा-वि० [स० सकल] [वि० सी० सगरी] सव। तमाम। पूरा की चलत बयारि ।--अविकादत्त (शब्द०)। (ख) पिय समग्र । सकल । कुल। चूम्यो मुंह चमि होत रोमाचन सगबग ।-व्यास (शब्द०)। २ । द्रवित । उ०-मुरली नलिका सो अमी नाथ रहे वगराय । सगरा-सशा पुं० [स० सागर, १ तालाब । २ झील । सगवग होत पपान जिहिं सूखे तरु हरिराय । -(शब्द०)। सगरी-सहा सी० [स०] एक प्राचीन नगरी का नाम । ३ परिपूर्ण । उ०-कित तूट्यो रतिराज साज सब सजि सुख सगर्भ'-वि० [स०] १ एक ही गर्भ से उत्पन्न । सहोदर। सगा । पागे । किहि सुहाग सगवगे भाग काके पुनि जागे ।- (शब्द०)। (भाई, बहन आदि) । २ रहस्य युक्त । तात्पर्य युक्त । जिसमे ४ शकित । डरा हुआ। भीत । भीतर कुछ हो। उ०-नारद वचन सगर्भ महेतू । सु दर सब सगबग-क्रि० वि० तेजी से। जल्दी से । चटपट । उ०-उतरि पलंग गुननिधि वृपकेतू । —मानस, १७२ । ३ जिसके पत्ते खुले न ते न दियो है धरा पै पग तेऊ सगबग निसि दिन चली जाती हो (को०) । ४ अनुरूप । समान (को०)। है।-भूपण (शब्द०)। सगर्भ-सना पुं० सगा भाई [को०)। सगवगना पु-त्रि० अ० [अनु० सगवग+ हिंना (प्रत्य॰)] १ सगर्भा-सञ्चा खी० [सं०] १ वह स्त्री जिसे गर्भ हो । गर्भवती स्त्री। लथपथ या सरावोर होना। उ०-तन पुलकित किहिं हेतु २ सहोदरा । मगी वहन । कपोलन परि गई पीरी। रोम सेद सगवगे चाल हू भई अधीरी। सगभ्य-वि० [स०] एक हो गर्भ से उत्पन्न । महोदर । सगा (भाई, -प्रबिकादत्त (शब्द॰) । २ दे० 'सगबगाना' । वहन आदि)। सगबगाना-क्रि० अ० [अनु० सगबग] १ लथपथ होना। किसी सगल+-वि० [हिं० सकल] दे० 'सकल' । वस्तु से भीगना या सरावोर होना। २ सकपकाना। शक्ति सगलगी -सज्ञा स्त्री० [हिं० सगा+लगना] १ किसी से बहुत सगापन होना । भयभीत होना। ३ हिलना डुलना । दिखाने की क्रिया। बहुत प्रापसदारी दिखलाना । .