पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१०६

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हुया मोजन। हडरवेट ५४१८ हडरवेट-संज्ञा पुं० [ अ० हटेडवेट ] एक अग्रेजी तौल जो ११२ हदा--मजा पुं० [सं० हन्तकार] पुरोहित या ब्राह्मण के निय निकाला पाउ ड या प्राय १ मन १४॥ मेर की होती है। हडल मया पुं० [अ० हैंडन] १ बेंट । दस्ता। मुठिया । २ किसी विणेप-पजाब के रात्री ग्राहारगो मे यह प्रथा कि मोरे की कल या पेंच का वह भाग जो हाथ से पकडकर घुमाया रसोई मे कुछ अंश अपने पुरोहित के लिये अलग कर देते हैं। जाता है। इसी को हृदा कहते है। हडा-सञ्चा स्त्री० [स० हण्डा] १ परिचारिका । चेटिका । हवा '-अव्य० [हिं० हाँ गम्मति या न्वीपमूवक प्रव्या । हो । दासी । २ निम्न जातीय औरत । ३ मिट्टी का बडा पान । (राजपूनाना)। दे० 'हडा [को॰] । हवा - सगा पुं० [म हम्बा] दे॰ हमा' । उ०-शोक ने ली अफर प्राज हडा'- सज्ञा पुं० [सं० भाण्डक या हण्टा] पीतल या तावे का बहुत बडा डकार । वत्स हबा कर उठे डिडकार ।--मारुत, पृ० १८६ । वरतन जिसमे पानी भरकर रखा जाता है। यौ०-हबारव = दे० 'हमार। हडा' --अव्य० अपने ने निम्नन्म श्रेणी की औरत के लिये प्रयुक्त हवीरा- सज्ञा सी० [सं० हम्बीग] एक रागिनी । सबोधनात्मक अव्यय । हभा-सशश खी० [सं० हम्मा] गाय, बैल, बछडे यादि के घोलने का हडि का--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० इण्टिका] दे० 'हंडिया' । उ०-रोटी ऊपर शब्द । रंभाने का शब्द । पोइ के तवा चटायो पानि । पिचरि माहे हडिका, सुदर रांधी हभार- सज्ञा पुं॰ [म. म्भारव] रंभाना। चित्नाना । दे० 'हभा'। जांनि ।-सुदर० प्र०, भा॰ २, पृ० ७५६ । -(क) कद्रन्न गाव सपत्त वच्च । भार रियो सुर उच्च यौ०--हटिकासुन = मिटटी का लघृतम पान। मिट्टी का छोटा तच्च ।--पृ० रा०, १११५३ । (ख) छन छैन चोर मन भए वरतन। पग। हमार सब्द गो करि उनग !---पृ० ग, १५ । १८ । हडी-सज्ञा स्त्री० [स० हण्टी] दे० 'इंडिया', 'हांडी' । हमारव-सज्ञा पुं० [सं० हम्भार] हमा की ध्वनि । रंभाने का शब्द [को०] । हडीर--वि० [स० हिण्ड, प्रा० हिंड] हिंडन करनेवाला। चारो ओर हभाशब्द-सबा पुं० [सं० हम्गाशब्द] दे० 'हमा', 'हमारव' को ! भ्रमण करनेवाला। घूमनेवाला। उ०- तीन पनच धुनही हस-संशा पुं० [सं०] १ बत्तय के आकार का एक जलपक्षी जो वटी करन बडे कटन तडीर । सगुन विना पग ना घर, विकट बन बडी झोली में रहता है। हडीर ।- पृ० ग०, ७७६ । विशेप-इसकी गरदन वत्तम्ब से लवी होती है और कभी कभी हडे-प्रव्य [सं० हण्डे] दे० ह्डा' । उसमे बहुत मुदर घुमाव दिखाई पड़ता है । यह पृथ्वी के प्राय हढना-क्रि० अ० [हिं० हडना] दे० 'हडना' । उ०-वीर सब जग सब भागो मे पाया जाता है और छोटे छोटे जनजतुनो और हढिया मदिल कपि चढाइ । हरि विन अपनों को नही, देखे ठोकि उदिभद पर निर्वाह करता है। यद्यपि हम का रगत ही वजाइ ।-कबीर ग्र० पृ०६१ । प्रसिद्ध है, पर प्रान्ट्रेलिया में काले रंग के हम भी पाए जाते हैं हत-अव्य० [सं० हन्त] आश्चर्य, प्रसन्नता, करुणा, सौभाग्य, प्रारभ, योरप मे इमकी दो जानियां होती हैं-एव मृक हम' दूसरी खेद या शोक ग्रादि का सूचक शब्द । 'तूर्य हम'। मूक हम वोनते नहीं, पर तृयं हम की गावाज वडी हतकार-सज्ञा पुं० [स० हन्तकार] १ अतिथि या सन्यासी आदि के कडी होती है। अमेरिका मे भूरे और चितकबरे हस भी होते लिये निकाला हुअा भोजन जो पुष्कल का चौगुना अर्थात् मोर हैं । चितकबरे हम का सारा शरीर मफेद होना है, केवल मिर के सोलह अडो के बराबर होना चाहिए । २ 'हत' की ध्वनि । और गरदन कालापन लिए लासी रग की होती है। भारतवर्ष हन शब्द (को०)। मे हस मव दिन नही रहते हैं। वर्षाकाल मे उनका मानसरोवर हतव्य-वि० [म० हलव्य] १ वध्य । २ उल्लघनीय । ३ खडनीय आदि तिब्बत की झीलो मे चला जाना और शरताल मे लौटना (को०। प्रसिद्ध है। यह पक्षी अपनी शुभ्रता और सुदर चाल के लिये हता-सज्ञा पुं॰ [स० हत] [स्त्री॰ हत] १ माग्नेवाला । वध करनेवाला। बहुत प्राचीन काल से प्रसिद्ध है। कवियो मे तथा जनसाधारण जैसे,--शहता, पितृहता । २ लुटेरा । डाकू (को॰) । मे इसके मोती चुंगने और नीर-क्षीर-विवेक करने (दूध मे से पानी हतु-सज्ञा पुं० [स० हन्तु] १ मौत । मृत्यु । २ वृपभ । बल [को०] । अलग करने का प्रवाद चला पाता है जो कल्पना मात्र है। युरोप यौ०-हतुकाम = हनन या घातन की कामना से युक्त। वर्धेच्छुक । के पुराने कवियो मे भी ऐसा प्रवाद था कि यह पक्षी बहुत सुदर हन्तुमना - जो हनन करना चाहता हो। मारने की नीयत वाला। राग गाता है, विशेपत मरते समय। किसी शब्द के आगे लगकर यह शब्द श्रेष्ठता का वाचक भी होता है, जैसे, कुलहस । हतृमुख-सज्ञा पुं॰ [सं० हन्तुमुख] एक बाल ग्रह (को॰] । २ सूर्य । उ०—(क) हस बम, दशरथ जनक, गम लपन से हतोक्ति 1-सञ्चा स्त्री० [सं० हन्तोक्ति] करणा, खेद, दुख, सहानुभूति भाइ। --तुलसी (शब्द०)। (च) हम तुरगम-हम रवि, हस परक हत शब्द की उक्ति (को०] । मराल, सुब्द । हस जीव कह कहत कवि परम हत गोविंद । हनी-वि० [स० हन्नी] १ लूटनेवाली। २ मारनेवाली [को॰] । -अनेकार्थ०, पृ० १६० ।